नई दिल्ली: साल 1995 में 13 मई का दिन, दो बच्चों की मां एलिसन हरग्रीव्स ने माउंट एवरेस्ट की चोटी से अपने अपने बेटे और बेटी को एक रेडियो संदेश भेजा और कहा, "मेरे प्यारे बच्चों, टॉम और केट के लिए, मैं दुनिया के सबसे ऊंचे स्थान पर हूं, और मैं तुमसे प्यार करती हूं." इस जीत के साथ वह बगैर ऑक्सीजन सिलेंडर के संसार की सबसे ऊंची पर्वत चोटी - 29,029 फीट पर अकेले पहुंचने वाली पहली महिला बन गईं. दुनिया के महानतम पर्वतारोहियों में से एक, हरग्रीव्स ने अपने चढ़ाई के लिए उन रस्सियों का सहारा नहीं लिया था जो चढ़ाई पर दूसरों दूसरे पर्वतारोहियों द्वारा डाली जाती हैं. उनसे पहले केवल इटली के पर्वतारोही रेनहोल्ड मेसनर ने इस तरह से एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी.
हरग्रीव्स एक इनोवेटिव ब्रिटिश पर्वतारोही और लेखक थीं, जिनकी कहानी ने भविष्य की महिला पर्वतारोहियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया. वह शेरपा की मदद के बिना, अपने गियर या बोतलबंद ऑक्सीजन के उपयोग के बिना एवरेस्ट को फतह करने वाली पहली महिला थीं. वह एक ही मौसम में Alps की सभी छह महान चोटियों को फतह करने वाली पहली पर्वतारोही भी थीं.
हरग्रीव्स का जन्म 1962 में इंग्लैंड के डर्बीशायर के मिल टाउन बेलपर में हुआ था. उन्होंने यहीं अपना लगभग पूरा जीवन व्यतीत किया. जीवन के शुरुआती दिनों में ही उन्हें आउटडोर लाइफ का आनंद लेने का भरपूर मौका मिला. वह खुद एक हिलवॉकर्स की बेटी थीं और छोटी उम्र में ही यॉर्कशायर और स्कॉटलैंड की चोटियों पर लंबी पैदल यात्राओं में घूमना शुरू कर दिया था. अपनी एक टीचर, जो पर्वतारोही पीटर बोर्डमैन की पत्नी थी, उनसे प्रभावित होकर हरग्रीव्स ने 13 साल की उम्र में रॉक क्लाइम्बिंग शुरू कर दी थी.
जब वह बगैर ऑक्सीजन के माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली महिला बनीं, उन्हें सम्मान मिलने के साथ साथ आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा. उस समय महिलाओं को करियर के क्षेत्र में आगे बढ़ता देखना दुनिया के लिए नया था. वह अपने दो छोटे बच्चों को घर पर छोड़कर चढ़ाई पर गई थीं. इसी बात को लेकर कई अखबारों ने उन्हें लिए कड़वे शब्द भी लिखे. हालांकि, लोगों की बाते कभी उनके कदम रोक नहीं सके. दुर्भाग्यवश, ऐवरेस्ट फतह के ठीक 3 महीने बाद ही एक दुर्घटना में उनकी मौत हो गई.
हरग्रीव्स की मौत 33 वर्ष की कम उम्र में एक चढ़ाई दुर्घटना में हो गई थी. इतने कम समय में ही वह सोलो क्लाइंबिंग की पुरानी सभी सीमाएं तोड़ गईं. एक ऐसे समय में जब महिला पर्वतारोही होना अपने आप में दुर्लभ था, उनके द्वारा रचे गए कीर्तिमानों ने आगे आने वाले जनरेशन को भी प्रेरित किया. अपने आखिरी इंटरव्यू में हरग्रीव्स ने कहा था, "अगर आपको दो विकल्पों में से चुनना हो, तो हमेश कठिन विकल्प को चुनें. अगर आप नहीं करते हैं तो आपको इसका पछतावा होगा. कम से कम यदि आप कठिन काम का प्रयास करते हुए असफल भी होंगे, आपने कोशिश की होगी."