यूक्रेन और रूस के बीच बढ़ रही गर्मा-गर्मी, कारोबारियों को सता रहा अपने माल का डर

बातचीत से विवाद सुलझ जाए, ताकि बंदूक चलाने की नौबत ना आए.

Update: 2022-02-12 02:06 GMT

यूक्रेन और Russia के बीच जारी गतिरोध पर लेटेस्ट अपडेट ये है कि यूक्रेन के पड़ोसी देश बेलारूस में Russia की सेना के युद्ध अभ्यास के बाद अब दक्षिण-पश्चिम में भी Russia की नौसेना युद्धाभ्यास करने के लिए पहुंच गई है. विदेश से जितना सामान यूक्रेन में आता है, उसकी ज्यादातर सप्लाई Black Sea के रास्ते ही होती है. इसलिए यूक्रेन का आरोप है कि युद्धाभ्यास के बहाने Russia उसके ट्रेड रूट को बाधित कर रहा है. अमेरिका ने भी Russia पर तनाव बढ़ाने का आरोप लगाया है और राष्ट्रपति Joe Biden ने यूक्रेन में अपने सभी नागरिकों को अमेरिका लौटने के लिए अलर्ट जारी किया है.

रूस ने की घेराबंदी
Russia की सेनाओं ने यूक्रेन की तीन तरफ से घेरेबंदी कर रखी है. Russia के 30 हजार सैनिकों का बेलारूस में युद्धाभ्यास चल रहा है, जिसे अमेरिका ने युद्ध का तनाव बढ़ाने वाली कार्रवाई बताया है. यूक्रेन के सहयोगी देशों को Russia के हमले का डर पहले से कहीं ज्यादा महसूस हो रहा है. सीमा पर पैदा हुआ तनाव यूक्रेन में भारतीय मूल के कारोबारियों को भी महसूस होने लगा है. यहां इनकी संख्या तो कम है, लेकिन यूक्रेन में इन भारतीय कारोबारियों का प्रभाव बहुत ज्यादा है. विशेष रूप से यूक्रेन के दवा उद्योग यानी Pharmaceutical Business पर भारतीय मूल के लोगों का वर्चस्व है.
'यूक्रेन के लोगों में पहली बार ऐसा डर'
यूक्रेन से अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए हम यूक्रेन की सबसे बड़ी Pharmaceutical कंपनी के ऑफिस पहुंचे, जिसके निदेशक राजीव गुप्ता पिछले 34 साल से कीव में हैं. उन्होंने वर्ष 1991 में सोवियत संघ से अलग होकर यूक्रेन को स्वतंत्र देश बनते देखा है. वर्ष 2004 में यूक्रेन का Orange Revolution के गवाह रहे हैं और साल 2014 में Crimea पर Russia का कब्जा होता भी देख चुके हैं. लेकिन पहली बार वो यूक्रेन के लोगों को डरा हुआ देख रहे हैं.
लोग स्टॉक करने लगे सामान
वहां के लोगों का कहना है कि हम Black Sea के जिस रास्ते से सामान मंगाते हैं, उसमें रुकावट आई है. इसलिए हम स्टॉक जमा कर रहे हैं. हम भारत और यूरोप के देशों से सामान मंगाते हैं, जिसकी सप्लाई में बाधा आने वाली है, चाहे युद्ध हो या ना हो. आपने भी देखा होगा कि Black Sea में (युद्धपोतों की) भीड़ बढ़ गई है और हमारा सारा सामान उसी रास्ते से आता है.
सीमा पर ऐसे हालातों के बीच संभव है कारोबार?
सीमा पर शांति के बिना किसी देश में कारोबार नहीं हो सकता और भारतीय उद्योगपतियों की चिंता युद्ध में उलझे यूक्रेन की परेशानी बढ़ा सकती है. क्योंकि यूक्रेन में दवा की जरूरत भारत से ही पूरी होती है. वर्ष 2019 में यूक्रेन ने 14 करोड़ 60 लाख डॉलर यानी लगभग 1100 करोड़ रुपये की दवा भारत से खरीदी थी. आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि यूक्रेन में भारत की 860 Pharmaceutical कंपनियां 4 हजार तरह की दवाइयों की सप्लाई करती हैं.
डर के साए में जी रहे व्यापारी
लेकिन वर्तमान हालात से भारतीय कंपनियों के कारोबार पर भी खतरा मंडरा रहा है, जिनमें काम करने वाले ज्यादातर लोग यूक्रेन के ही हैं. इस मामले में एक भारतीय कारोबारी राजीव गुप्ता का कहना है कि वर्ष 2014 में जो हुआ, वो थोड़ा डरावना था, लेकिन 2014 की क्रांति सिर्फ सिटी सेंटर तक सीमित थी, इसलिए उसका सीधा असर आम लोगों पर नहीं पड़ा था, लेकिन 2014 का अप्रत्यक्ष असर हुआ था. बिजनेस का बहुत नुकसान हुआ था. अगर अभी की बात करें, तो स्थानीय लोग डरे हुए नहीं हैं. हां, हमें लगता है कि साइबर अटैक जैसी घटनाएं हो सकती हैं, लेकिन सीधा हमला नहीं होने वाला.
लोगों के पास तैयार हैं प्लान-B
लोग कहते हैं कि हमें Plan- B तो तैयार रखना ही होता है. मुझे 99.9% विश्वास है कि युद्ध नहीं होगा, लेकिन आपको हर स्थिति के लिए तैयार रहना होता है. अगर पहले विश्व युद्ध की तरह गलती से यहां युद्ध शुरू हो गया, तो मैं बातें बंद करके Plan-B में जुट जाऊंगा. अगर युद्ध शुरू हुआ तो हमारा पहला कदम क्या होगा? हम युद्ध का अनुमान तो नहीं लगा सकते, लेकिन हम पहला कदम क्या उठाएंगे, इसकी तैयारी तो कर ही सकते हैं.
कारोबारियों को सता रहा अपने माल का डर
Black Sea में Russia के युद्धपोत आ चुके हैं, जिससे भारतीय उद्योगपतियों को भारत और दूसरे देशों से सामान मंगाने में दिक्कत हो रही है, लेकिन सबसे बड़ी चिंता ये है कि इन कारोबारियों के गोदाम Russia की सीमा के नजदीक हैं और अगर Russia की सेना थोड़ा भी आगे बढ़ी, तो इनके गोदाम में रखा स्टॉक Russia के कब्जे में चला जाएगा. ये खतरा तो है, जिसका सामना करने के लिए ये अभी से मन को मजबूत बना रहे हैं.
अमेरिकी लोगों की वापसी से बच्चों में दहशत
एक कारोबारी का कहना है कि मेरा गोदाम रूस की सेना के बहुत नजदीक है. मेरे बच्चे यहां अमेरिकन स्कूल में पढ़ते हैं, जहां के शिक्षकों को अमेरिका भेज दिया गया. इससे बच्चे बहुत घबरा गए थे. वे रोज मुझसे पूछ रहे थे कि क्या होने वाला है? हम लोग कहां रहने वाले हैं? पहले दिन मेरे बेटे और बेटी ने पूछा कि हम किस देश में जा रहे हैं पापा? मैंने पूछा कि क्या हुआ, तो उसने बताया कि मेरे टीचर्स और साथ पढ़ने वाले अमेरिकी बच्चे चले गए. मैंने कहा कि हम कहीं नहीं जा रहे हैं. यहां हमारा घर है और हम यहीं रहेंगे.
बातचीत में सबका फायदा
युद्ध के साए में यही सोच भारतीय मूल के दूसरे उद्योगपतियों की भी है, वो कुछ भी करके यूक्रेन में संभावित बुरा समय गुजारने के लिए तैयार हैं. इन कारोबारियों के लिए यूक्रेन की शांति जरूरी है और शांति के लिए इनकी भी आखिरी उम्मीद यही है कि बातचीत से विवाद सुलझ जाए, ताकि बंदूक चलाने की नौबत ना आए.


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