भारत और चीन के बीच 20 महीने से जारी है सीमा विवाद, सेना है मुस्तैद तो जानें कहां हैं कमियां
उपयुक्त क्षमताओं को विकसित करने के लिए रणनीतिक सोच जरूर पैदा कर सकती है।
भारत और चीन की सेनाएं करीब 20 महीने से एलएसी पर एक-दूसरे के सामने तैनात हैं। पूर्वी लद्दाख अकेला इलाका नहीं है जहां चीन ने घुसपैठ की कोशिश की हो। चीन यही डोकलाम में भी कर चुका है और अरुणाचल प्रदेश, सिलीगुड़ी कॉरिडोर जैसे इलाकों पर भी नजरें गड़ाए हुए है। साल 2020 में चीन और भारतीय की सेनाएं गलवान घाटी में एक-दूसरे से भिड़ गई थीं। इस हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हुए और चीन के भी कई सैनिक मारे गए। इसके बाद से तनाव चरम पर पहुंच गया और चीन को लेकर भारत ने नए सिरे से रणनीति तैयार की।
बुधवार को सीडीएस जनरल बिपिन रावत का एक हेलिकॉप्टर क्रैश में निधन हो गया। जनरल रावत चीन के सामने सबसे बड़ी चुनौती थे। उनके जाने से रक्षा मोर्चे पर देश को वाकई बहुत बड़ी क्षति हुई है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या क्षेत्र में चीन के खतरे से निपटने के लिए भारत पर्याप्त कदम उठा रहा है? टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए अपने लेख में ले. जनरल (रि.) डी. एस. हूडा ने इसका जवाब दिया है-
1975 के बाद 2020 में एलएसी पर गई जान
सवाल यह है कि क्या चीन को टक्कर देने के लिए भारत सही रास्ते पर है? इसका जवाब देने के लिए हमें भारत की ओर से उठाए गए कदमों को देखना होगा, चाहें वह लद्दाख पर जारी मौजूदा तनाव को लेकर हों या चीन के दीर्घकालिक खतरे से निपटने के लिए रणनीति तैयार करना हो। यह स्वीकार करना होगा कि पिछले साल पीएलए (People's Liberation Army) के निर्माण और बड़ी संख्या में घुसपैठ ने भारतीय सेना को चौंका दिया था। शुरुआत में इन गतिविधियों को नजरअंदाज करने के प्रयास किए गए और उम्मीद जताई गई कि इस संकट को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझा लिया जाएगा। हालांकि यह उम्मीद जून 2020 की गलवान हिंसा में बुरी तरह टूट गई और 1975 के बाद से पहली बार एलएसी पर किसी सैनिक ने जान गंवाई।
डेढ़ साल में एलएसी पर मजबूत हुई भारतीय सेना
भारत ने इसका मजबूती और दृढ़ता से जवाब दिया, चाहें वह सैन्य रूप से हो या रणनीतिक रूप से। पिछले डेढ़ साल में भारतीय सेना ने अपनी रक्षात्मक ताकत को मजबूत किया है और तिब्बत में पीएलए की तैनाती की बराबरी की है। एलएसी पर इन्फ्रास्ट्रक्चर और इलेक्ट्रॉनिक सर्वेलांस को बेहतर करने के लिए उचित कदम उठाए गए हैं। आक्रामक वाहिनी सहित बड़ी सेना को पाकिस्तान के मोर्चे से उत्तरी सीमा की ओर फिर से तैनात कर दिया गया है।
'भारत-चीन के संबंध पहले जैसे नहीं'
कूटनीतिक रूप से भारत ने जोर देकर कहा है कि एलएसी के हालात ने द्विपक्षीय संबंधों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है और अब दोनों देशों के बीच 'व्यापार पहले जैसा नहीं है।' हाल ही में सिंगापुर में ब्लूमबर्ग न्यू इकोनॉमिक फोरम में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि हम अपने संबंधों के एक बुरे दौर से गुजर रहे हैं क्योंकि उन्होंने (चीन) समझौतों का उल्लंघन करते हुए कई कदम उठाए हैं जिसके लिए उनके पास कोई ठोस जवाब नहीं है। यह इस बारे में पुनर्विचार करने का संकेत देता है कि वे हमारे संबंधो को कहां ले जाना चाहते हैं।
दीर्घकालिक चुनौती से निपटने के लिए बनानी होगी रणनीति
मेरी नजर में शुरुआती चोट के बाद भारत ने लद्दाख में मौजूदा गतिरोध का डटकर मुकाबला किया। लेकिन जब हम चीन की दीर्घकालिक चुनौती से निपटने के लिए भारत की रणनीति पर नजर डालते हैं तो इसमें कुछ मूलभूत कमियां नजर आती हैं। भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की अनुपस्थिति पहली कमी है जो हमारे बाहरी खतरों से निपटने के लिए एक व्यापक योजना के विकास में बाधा है। चीन की ओर से भारत के राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक उद्देश्यों के लिए चुनौतियों को स्पष्ट रूप से संबोधित करने की जरूरत है। खतरों को स्पष्ट रूप से समझने के बाद हम उनका मुकाबला करने के लिए एक दृष्टिकोण तैयार कर सकते हैं।
भारत की विदेश नीति को दिशा तय करनी होगी
भारत वर्तमान में कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संगठनों से जुड़ा है जैसे क्वाड, जो क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को जवाब देने के लिए बने हैं। एनएसएस इन व्यवस्थाओं और भारत की वार्ता रणनीति की अपेक्षाओं और सीमाओं को परिभाषित करने में मदद करेगा। भारत अपनी दोनों सीमाओं पर और अफगानिस्तान से इस्लामी आतंकवाद जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है और व्यापार और तकनीक का इस्तेमाल अब हथियार के रूप में हो रहा है। इन परिस्थितियों में, भारत की विदेश नीति के विकल्पों और दिशा पर गहन विचार करने की आवश्यकता है।
बजट से चीन का मुकाबला करना मुश्किल
एनएसएस एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और एक सैन्य क्षमता विकास योजना के निर्माण में भी सहायक होगी। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्त एक सकारात्मक कदम है और यह तीनों सेवाओं की खरीद प्राथमिकता को आगे लाने में मदद करेगा। हालांकि क्षमता का विकास दो चीजों पर निर्भर करता है, बजट और रणनीति। राष्ट्रीय रणनीति के अभाव में सेना अपने आधुनिकीकरण की योजना मुख्य रूप से बजट के आधार पर बनाने के लिए मजबूत होती है। यह एक गंभीर समस्या है क्योंकि भारत और चीन के रक्षा बजट का अंतर आने वाले समय में लगातार बढ़ता रहेगा। भारतीय सेना बजट के मामले में चीन की सेना का मुकाबला नहीं कर सकती लेकिन उपयुक्त क्षमताओं को विकसित करने के लिए रणनीतिक सोच जरूर पैदा कर सकती है।