भारतीय मूल की वो खतरनाक महिला जासूस, जिसकी बहादुरी से घबरा गई थी हिटलर की सेना
हमारे देश में आम लोगों को शायद ही 13 सितंबर की तारीख की अहमियत पता होगी. इस तारीख के नाम ऐसा इतिहास दर्ज है, जिसे पढ़कर हर भारतीय को गर्व होगा. इसी दिन भारतीय मूल की ब्रिटिश जासूस, नूर इनायत खान (Noor Inayat Khan) ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन के लिए जर्मनी में जासूसी की थी और 13 सितंबर वर्ष 1944 को नाजियों ने उनकी हत्या कर दी थी.
मॉस्को में हुआ था नूर का जन्म
नूर का जन्म वर्ष 1914 में Russia के मास्को में हुआ था. वो मैसूर के शासक रहे टीपू सुलतान की वंशज थीं और उनके पिता हजरत इनायत खान टीपू सुल्तान के पड़पोते थे. नूर की मां, Ora Ray Baker (ओरा रे बेकर) अमेरिकी महिला थीं, जिन्होंने बाद में अपना नाम बदलकर अमीना शारदा बेगम रख लिया था. बाद में उनका परिवार मॉस्को से लंदन आ गया था. जहां नूर एक वॉलंटियर के तौर पर ब्रिटिश सेना में शामिल हो गईं. वर्ष 1943 में वो, ब्रिटिश सेना की एक सीक्रेट एजेंट बन गईं .
नूर (Noor Inayat Khan) को एक रेडियो ऑपरेटर के तौर पर ट्रेन किया गया और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जून, 1943 में उन्हें फ्रांस में नाजियों की जासूसी के लिए भेज दिया गया. इस तरह के अभियान में पकड़े जाने वाले लोगों को हमेशा के लिए बंधक बनाए जाने का खतरा रहता था. लेकिन नूर ने पेरिस में तीन महीने से ज़्यादा वक़्त तक सफलतापूर्वक अपना खुफिया नेटवर्क चलाया और नाजियों की जानकारी ब्रिटेन तक पहुंचाई.
1943 में धोखे का शिकार हुईं नूर
अक्टूबर 1943 में नूर धोखे का शिकार हो गईं. उनके एक सहयोगी की बहन ने उनका राज जाहिर कर दिया क्योंकि वो लड़की नूर की खूबसूरती से जलती थी. इसके बाद पेरिस में जर्मन सीक्रेट पुलिस गेस्टापो ने 13 अक्टूबर 1943 को उन्हें एक अपार्टमेंट से गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद ब्रिटिश खुफिया ऑपरेशन के बारे में जानकारी निकलवाने के लिए नूर को बुरी तरह प्रताड़ित किया गया.
कहते हैं कि जर्मनी के एजेंट्स, नूर (Noor Inayat Khan) का असली नाम तक नहीं पता कर पाए. उन्हे ये भी कभी पता नहीं लगा कि वो भारतीय मूल की थीं. कैदी के रूप में एक वर्ष गुजारने के बाद नूर को जर्मनी के एक यातना शिविर में भेज दिया गया. जहां 13 सितंबर 1944 को नाजियों ने उन्हें तीन अन्य महिला जासूसों के साथ गोली मार दी. मौत के वक्त उनकी उम्र महज 30 वर्ष थी. ब्रिटिश इतिहास में उल्लेख मिलता है कि मौत के वक्त नूर ने भारत की आजादी का नारा लगाया था.
ब्रिटेन-फ्रांस ने दिया सर्वोच्च मेडल
दूसरे विश्वयुद्ध में उनकी अहमियत इतनी थी कि नूर (Noor Inayat Khan) की मौत के बाद फ्रांस ने उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान, Croix de Guerre (क्वा डी गेयर) से नवाजा था. जबकि ब्रिटेन ने उन्हें मरणोपरांत वर्ष 1949 में जॉर्ज क्रॉस (George Cross) से सम्मानित किया. वर्ष 2012 में लंदन में नूर की तांबे की एक प्रतिमा लगाई गई . ये पहला मौका था जब ब्रिटेन में किसी मुस्लिम या फिर एशियाई महिला की प्रतिमा लगी. ये प्रतिमा नूर के उस मकान के नजदीक स्थित है, जहां वो बचपन में रहा करती थीं. नूर के शताब्दी वर्ष 2014 में ब्रिटेन की रॉयल मेल ने नूर इनायत खां के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया था.
अब हम आपको नूर इनायत खान (Noor Inayat Khan) के जीवन के उस पहलू के बारे में बताते हैं जिसको जानकार आपके लिए ये अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाएगा कि वो दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान कैसे एक ब्रिटिश जासूस बनी होंगी.
सूफी संगीत के प्रति गहरी रूचि
नूर की जिंदगी पर एक किताब भी लिखी गई है जिसका नाम है - The Spy Princess, The Life Of Noor Inayat Khan. इस किताब की लेखिका श्राबणी बसु है. इस किताब के मुताबिक पंद्रहवी सदी के सूफी संत जुमा शाह के वंश से जुड़ी होने की वजह से नूर को सूफी संगीत से बेहद लगाव था. वो गाने भी लिखती थीं. वीणा भी बजाती थीं और उन्होंने बच्चों के लिए कहानियां भी लिखीं. ये खूबियां उन्हें विरासत में मिलीं.
इन वजहों से बन गईं ब्रिटिश जासूस
उनके पिता हज़रत इनायत ख़ान ने भारत के सूफ़ीवाद को पश्चिमी देशों तक पहुंचाया था. नूर (Noor Inayat Khan) एक राष्ट्रवादी महिला थीं और महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू की प्रशंसक भी थीं. वो आजाद हिंदुस्तान का सपना देखती थीं. ब्रिटिश साम्राज्य की विरोधी होने के बावजूद नूर ने ब्रिटेन के लिए जासूसी की और एक मिसाल क़ायम भी की, क्योंकि उनका मानना था कि ब्रिटेन ने उनके परिवार को शरण दीं थी, इसलिए वो भी ब्रिटेन के लिए कुछ करना चाहती थी.
किताब के मुताबिक नूर (Noor Inayat Khan) चाहती थीं कि दूसरे विश्वयुद्ध में शामिल होने वाले भारतीय सैनिकों में से कुछ सैनिकों को ब्रिटिश सैन्य सम्मान हासिल हो, ताकि युद्ध में भारतीय सैनिकों की वीरता को हमेशा याद रखा जाए. शायद यही सोचकर उन्होंने ब्रिटिश जासूस बनने का फैसला लिया था. जिन्हें ब्रिटेन के लोग अपनी पहली WAR HEROINE मानते हैं और अपने कर्तव्य को सबसे ऊपर रखने के लिए आज हम भी उन्हे याद कर रहे हैं.