चीन के रेगिस्तान में एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइल का कर रहा परीक्षण, निशाने पर है अमेरिका
यही वजह है कि चीन का अमेरिका के साथ तनाव बढ़ गया है.
चीन शिंजियांग के तकलामाकन रेगिस्तान (Taklamakan desert) में एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइल (एएसबीएम) का परीक्षण कर रहा है. इस बात की जानकारी कुछ रिपोर्ट्स में दी गई है. पिछले साल नवंबर में अमेरिकी नेवल इंस्टीट्यूट की ओर से मैक्सार द्वारा जारी तस्वीरों के अनुसार, चीन ने तकलामाकन रेगिस्तान में मिसाइल रेंज में अमेरिकी नौसेना के फोर्ड-क्लास एयरक्राफ्ट कैरियर का फेक मॉडल भी तैयार किया है. (तस्वीर- Maxar)
मैक्सार ने सैटेलाइट के जरिए मिली जानकारी में बताया कि चीन ने जहाज जैसे आकार का 75 फीट मीटर बड़ा टार्गेट तैयार किया है. उसने एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइल भी तैयार की हैं, ताकि उससे समुद्र में मौजूद युद्धपोतों को निशाना बनाया जा सके (China Missile Test). रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि ये परीक्षण प्रशांत क्षेत्र को ध्यान में रखकर किए गए हैं क्योंकि चीन दक्षिण चीन सागर में कई देशों के साथ विवाद में उलझा हुआ है. अमेरिकी जहाज भी इस क्षेत्र में बार-बार देखे गए हैं, जिसपर चीन नाराजगी व्यक्त करता है. (तस्वीर- Maxar)
चीन कई सालों से एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइलों को विकसित कर रहा है, जिनमें विमानवाहक पोतों (सैन्य विमानों को एक से दूसरे स्थान तक ले जाने वाले जहाज) से बाहर निकालने वाली मिसाइलें भी शामिल हैं (China Ballistic Missile). नवंबर की सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि चीन ने एक विमान वाहक सहित अमेरिकी नौसेना के युद्धपोत के फेक मॉडल तैयार किए हैं. जिसका मकसद प्रशांत क्षेत्र में दिखने वाले अमेरिकी हथियारों को निशाना बनाना है. (तस्वीर- Maxar)
चीन अमेरिका के जिन हथियारों को निशाना बनाने की फिराक में है, वो उसके (अमेरिका) सबसे शक्तिशाली हथियार हैं. मैक्सार टेक्नोलॉजी की सैटेलाइट तस्वीरें में दिखाया गया कि चीन के पश्चिमी शिंजियांग क्षेत्र के तकलामाकन रेगिस्तान में अमेरिकी नौसैनिक जहाजों के फेक मॉडल बनाए गए हैं. अमेरिकी युद्धपोतों के मॉडल बनाकर चीन एक तरह से उन्हें निशाना बनाने की प्रैक्टिस कर रहा है. तस्वीरों में कम से कम एक विमानवाहक पोत के आकार का मॉडल और दूसरा विध्वंसक दिखाई दे है. (तस्वीर- Maxar)
रिपोर्ट्स में ये जानकारी सामने आई है कि चीन काफी वक्त से हथियारों के परीक्षण के लिए इस इलाके का इस्तेमाल कर रहा है. हालांकि चीनी विदेश मंत्रालय का कहना है कि उसे स्थिति के बारे में नहीं पता. इस समय चीन अपने हथियारों को तेजी से अपग्रेड करने में लगा हुआ है. कई हथियार क्षेत्रीय संघर्ष की स्थिति में सबसे महत्वपूर्ण अमेरिकी युद्धपोतों को बेअसर करने में मदद करने के लिए डिजाइन किए गए हैं. पेंटागन (अमेरिकी रक्षा विभाग के मुख्यालय) के अनुसार, इनमें DF-21D मिसाइल शामिल है, जिसकी मारक क्षमता 930 मील (1,500 किलोमीटर) से अधिक है.
यह चीन से पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में विमान वाहक सहित जहाजों के खिलाफ लंबी दूरी के सटीक हमले करने की क्षमता रखती है. इससे चीन ने ये दिखाने की कोशिश की है कि उसके क्षेत्र में होने वाले संघर्ष में अगर कोई तीसरा देश दखल देता है, तो वो उसे बख्शेगा नहीं. दरअसल अमेरिकी नौसेना नियमित रूप से दक्षिण चीन सागर और ताइवान के आसपास अभियान चलाती है, जो चीन को पसंद नहीं है.
चीन लगभग पूरे विवादित जलक्षेत्र पर अपना दावा करता है और ताइवान को भी अपने क्षेत्र का हिस्सा बताता है. उसका इतना तक कहना है कि वह जरूरत पड़ने पर बलप्रयोग से ताइवान को चीन में शामिल कर लेगा (China War Practice). दूसरी तरफ उसकी DF-26 मिसाइल अपनी बेहतर रेंज के साथ दक्षिण चीन सागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र सहित विशाल क्षेत्रों को कवर कर सकती है. मध्यवर्ती दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल को तीन साल पहले चीनी रक्षा बलों में शामिल किया गया था.
चीन इस साल मिसाइलों को खुलेआम टेस्ट कर रहा है (China Powerful Missiles). मैक्सार टेक्नोलॉजी की सैटेलाइट तस्वीरों के मुताबिक, पीएलए ने DF-26 इंटरमीडिएट-रेंज बैलिस्टिक मिसाइल (आईआरबीएम) को पूर्वी हिस्से में शेडोंग प्रांत में एक प्रशिक्षण स्थल पर तैनात किया हुआ है.
चीनी रक्षा बल कथित तौर पर 1000 से 2000 समुद्री मील की दूरी से एक विमानवाहक पोत पर मिसाइल दाग सकते हैं. चीन इस साल मिसाइलों को खुलेआम टेस्ट कर रहा है (China Powerful Missiles). मैक्सार टेक्नोलॉजी की सैटेलाइट तस्वीरों के मुताबिक, पीएलए ने DF-26 इंटरमीडिएट-रेंज बैलिस्टिक मिसाइल (आईआरबीएम) को पूर्वी हिस्से में शेडोंग प्रांत में एक प्रशिक्षण स्थल पर तैनात किया हुआ है.
चीन दक्षिण चीन सागर (South China Sea) के अधिकांश हिस्से पर दावा करता है. जापान ने लंबे समय से कहा है कि वह चीन के विशाल सैन्य संसाधनों और क्षेत्रीय विवादों से खतरा महसूस कर रहा है. इसके अलावा ताइवान जलडमरूमध्य अमेरिका और चीन के बीच संघर्ष का एक और कारण है. चीन को 1979 से कूटनीतिक रूप से मान्यता देने वाले अमेरिका ने ताइपे यानी ताइवान के साथ भी अपने संबंध बनाए रखे हैं और उसका सबसे महत्वपूर्ण सैन्य सहयोगी बना हुआ है.
अमेरिका चीन के खतरे से इस देश को बचाने की बात भी करता है. हाल के महीनों में चीनी वायु सेना (China Air Force) ने ताइवान के हवाईक्षेत्र में कई बार घुसपैठ की है. अमेरिका को डर है कि चीन कभी भी ताइवान पर हमला कर सकता है. यही वजह है कि चीन का अमेरिका के साथ तनाव बढ़ गया है.