अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में भारत और चीन के बीच तनातनी, कमांडर स्तर की बातचीत के बाद ये मसला सुलझा
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि चीन जानबूझकर तवांग सेक्टर में झड़पों को अंजाम देकर भारत की सैन्य तैयारियों की जांच करता है।
पूर्वी लद्दाख के बाद अब अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में भारत और चीन के बीच तनातनी की रिपोर्ट्स हैं। हालांकि, कमांडर स्तर की बातचीत के बाद ये मसला सुलझ गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक दोनों देशों के सैनिक पेट्रोलिंग के दौरान भिड़ गए थे। तवांग में चीनी सैनिक घुसने की कोशिश कर रहे थे जिसे भारतीय सैनिकों ने नाकाम कर दिया और खदेड़ दिया। लेकिन चीन की तवांग में क्या दिलचस्पी है? तवांग को चीन का हिस्सा क्यों बनाना चाहता है चीन, आइए जानते हैं।
शुरू से समझते हैं दिलचस्पी की वजह
1914 में ब्रिटेन, चीन और तिब्बत के बीच शिमला में एक कॉन्फ्रेंस हुआ। इसमें बॉर्डर से जुड़े अहम फैसले लिए गए। ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किलोमीटर की सीमा खींची गई। इसके तहत तवांग (अरुणाचल प्रदेश) को भारत का हिस्सा माना गया। लेकिन इस कॉन्फ्रेंस का कोई लिखित रिकॉर्ड नहीं रखा गया। चीन के प्रतिनिधियों ने तत्काल वाले मैप पर तो साइन किए लेकिन बाद में डिटेल्ड मैप पर साइन नहीं किए।
चीन इसके बाद से कहता है कि उसे धोखे और अंधेरे में रखते हुए मैकमहोन रेखा खींची गई। यही कारण है कि चीन मैकमहोन लाइन को मानने से इनकार करता रहता है। चीन का कहना है कि भारत और चीन के बीच आधिकारिक तौर पर बॉर्डर कभी तय ही नहीं हुआ। चीन का मानना है कि तिब्बत कोई संप्रभु देश नहीं है जो बॉर्डर को लेकर किसी भी एग्रीमेंट पर साइन करे। चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताता है और उसे दक्षिणी तिब्बत बताता है।
अब बात तवांग की
तवांग का सामरिक तौर पर बहुत अहम स्थान है। राजधानी ईटानगर से करीब 450 किलोमीटर दूर तवांग अरुणाचल प्रदेश का सबसे पश्चिमी जिला है। तवांग चीन के साथ ही भूटान के साथ भी बॉर्डर साझा करता है। ये तो हो गई लोकेशन वाली बात।
तवांग में दुनिया का दूसरा सबसे तिब्बती बौद्ध मठ है। तिब्बत की राजधानी ल्हासा के बाद सबसे बड़ा। इसे मठ को बेहद पवित्र माना जाता है। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि यह मठ चीनी शासन से दूर रहने के कारण अब तक अपने शुद्ध रूप में है। तवांग तिब्बती संस्कृति के अंतिम बचे केंद्रों में से एक है।
तवांग दो अक्साई चिन लो?
जब चीनी सैनिक तिब्बत को तबाह कर रहे थे तो इस मठ ने कई अमूल्य पांडुलिप और पुराने शास्त्रों को बचाया है। तवांग मठ देवता पालदेन ल्हामो या देवी द्री देवी को समर्पित है, जिन्हें तिब्बत का प्रमुख संरक्षक माना जाता है। मान्यता है कि यदि यह मठ गिर जाता है तो तिब्बत और तिब्बती बौद्ध धर्म हमेशा के लिए समाप्त हो जाएंगे। तवांग तिब्बती बौद्ध केंद्र का आख़िरी सबसे बड़ा गढ़ है जिसे चीन सालों से नष्ट करना चाहता है। इस मठ की विरासत बीजिंग और नई दिल्ली के बीच टकराव का केंद्र रही है। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि चीन जानबूझकर तवांग सेक्टर में झड़पों को अंजाम देकर भारत की सैन्य तैयारियों की जांच करता है।