अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडन और शी जिनपिंग के बीच हुई वार्ता, संबंधों में आ सकता है सुधार
बाइडन और शी जिनपिंग के बीच हुई वार्ता
दुनिया के दो सबसे धनी और ताक़तवर देशों के राष्ट्रपति मंगलवार को मिले, आमने-सामने प्रत्यक्ष रूप में नहीं, बल्कि वर्चुअली. वाशिंगटन में तब सोमवार शाम के पौने आठ बजे थे और बीजिंग में मंगलवार सुबह के पौने नौ. दोनों ने एक दूसरे को देखकर हाथ हिलाकर अभिवादन किया. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने चीन के राष्टपति शी जिनपिंग से मुखातिब होते हुए कहा कि "हमने विगत में बहुत सारा समय एक दूसरे से बात करते हुए बिताया है और मेरी आशा है कि आज शाम भी हम बेबाक बातचीत कर पाएंगे." शी ने जवाब में दोस्ताना स्वर में कहा कि "ये सामने बैठकर बात करने जैसा तो नहीं है, लेकिन मुझे अपने पुराने दोस्त से मिलकर बहुत ख़ुशी हुई है."
बस मीठी-मीठी बातें यहीं तक हुईं. इसके बाद का विचार-विमर्श एक स्वस्थ बहस तो कहा जा सकता है, लेकिन ऐसी बहस जिससे दोनों देशों के बीच का गतिरोध टूटा हो, ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा सकता. अमेरिका चीन संबंध अभी इतने खराब हैं कि अमेरिकी अधिकारी साफ़ कहते हैं कि चीन के साथ रिश्तों को मैनेज करना राष्ट्रपति बाइडन की विदेश नीति का सबसे बड़ा लक्ष्य है.
शुरू से ही दोनों नेताओं के बीच बातचीत जहां विवादित मुद्दों पर पहुंची, तो दोनों पक्ष अपने अपने जाने पहचाने स्टैंड पर अडिग खड़े दिखाई दिए. ताइवान के सवाल पर शी ने बाइडन को आगाह किया कि अगर ताइवान ने किसी भी तरह से अपनी स्वाधीनता की तरफ क़दम बढ़ने की कोशिश की, तो यह चीन के लिए उस "लाल लकीर" को लांघने सरीखा होगा जो चीन ने कार्रवाई करने के लिए खींच रखी है. सिर्फ इतना ही नहीं, चीन की सरकारी मीडिया के अनुसार राष्ट्रपति शी ने राष्ट्रपति बाइडन को साफ़ बता दिया कि अगर अमेरिका ताइवान की स्वतंत्रता को हवा देता है, तो वह "अपने हाथ जला बैठेगा."
जवाब में राष्ट्रपति बाइडन ने शी को आश्वस्त किया कि अमेरिका अभी भी अपनी "One China" पॉलिसी पर क़ायम है, जिसके अनुसार वह सिर्फ एक सार्वभौमिक चीन देश को मान्यता देता है. लेकिन साथ ही बाइडन ने भी साफ़ कर दिया कि अमेरिका ताइवान स्ट्रेट में यथास्थिति और शांति और स्थायित्व को कमज़ोर करने वाली किसी भी हरकत का पुरज़ोर विरोध करेगा.
Covid-19 के विषय में बाइडन ने पारदर्शिता पर जोर दिया
विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका का बयान ताइवान को यह समझाने के लिए दिया गया है कि वह अपनी स्वतंत्रता घोषित न करे, लेकिन उससे ज़्यादा ज़रूरी संदेश चीन के लिए था, कि वह ताइवान पर हमला करने का विचार छोड़ दे. राष्ट्रपति बाइडन ने शी से कहा कि यह दोनों देशों की ज़िम्मेदारी है कि उनकी प्रतिस्पर्धा खुले संघर्ष में न बदल जाए.
वर्चुअल शिखर मीटिंग के बाद अमेरिकी अधिकारियों ने भी बताया कि दोनों नेताओं के मिलने का खास मकसद दोनों देशों के बीच तनाव कम करना नहीं था, बल्कि यह सुनिश्चित करना था कि अमेरिका और चीन के बीच की स्पर्धा को ठीक से मैनेज किया जा सके, क्योंकि राष्ट्रपति बाइडन का इरादा इस विषय में साफ है, कि अमेरिका चीन को सभी क्षेत्रों में कड़ी टक्कर देगा.
Covid-19 के विषय में बाइडन ने पारदर्शिता पर जोर दिया ताकि भविष्य में बीमारियों को फैलने से रोका जा सके. मतलब साफ था कि चीन इस महामारी की उत्पत्ति और फैलाव में अपनी भूमिका को लेकर अभी भी सहयोग नहीं कर रहा है. अमेरिका कहता रहा है कि चीन को Covid-19 की उत्पत्ति की जांच करने वाले अंतरराष्ट्रीय जांच में पूरा सहयोग देना चाहिए. दोनों नेताओं ने उन विषयों पर भी बात की जिनमें अमेरिका और चीन सहयोग कर सकते है, मसलन Climate change, जिस पर चीन ने अमेरिका से सहयोग के लिए ग्लास्गो में पहले ही हामी भर दी है.
अमेरिका के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि विदेश नीति और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में उसे चीन के साथ विचार और अगर हो सके तो सहमति की कोशिश करनी पड़ेगी. अमेरिका मानता है कि उसे सबसे ज़्यादा परेशान करने वाले दो देश उत्तरी कोरिया और ईरान हैं. यह महज़ संयोग नहीं है कि इन दोनों के संबंध चीन से लगातार घनिष्ठ होते जा रहे हैं. चाहे व्यापार हो, सेमी कंडक्टर चिप्स की उपलब्धता, सैनिक आक्रामकता या शिनजियांग के वीघर लोगों के मानवाधिकार, चीन से अमेरिका के संबंधों के लिए ये सभी एक चैलेंज है.
चीन में सत्ता पर शी जिनपिंग की पकड़ अभी बहुत मज़बूत
राष्ट्रपति बाइडन ने बातचीत में शी से कहा कि दोनों नेताओं को विभिन्न विषयों पर कुछ लाइनें खींचनी पड़ेंगी ताकि जब ये दोनों देश किन्हीं विषयों पर असहमत हों तब भी आपसी समझबूझ बनी रहे और जिन विषयों में सहमति बने उनमें अच्छे से कामकाज हो. बाइडन ने कहा दोनों नेताओं में ऐसी समझ होनी चाहिए कि किसी को यह न सोचना पड़े कि सामने वाला सोच क्या रहा है.
समस्या यह है कि चीन में सत्ता पर शी जिनपिंग की पकड़ अभी बहुत मज़बूत है. इतनी मज़बूत कि पिछले हफ्ते ही उन्हें कम्युनिस्ट चीन के जनक, माओ ज़े दोंग, के समकक्ष दर्जा मिल गया है. ऐसी स्थिति में वे अमेरिका से बातचीत में बहुत लचीला रुख अपनाएंगे ऐसा लगता नहीं है. दोनों नेताओं की वर्चुअल बैठक एक अच्छी शुरुआत ज़रूर है लेकिन चीन और अमेरिका के बीच मधुर संबंधों की मंज़िल अभी बहुत दूर है.