ISI की कठपुतली है तालिबान, पैंटागन के पूर्व अधिकारी माइकल रुबिन का दावा

पाकिस्तान और उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी पर अफगानिस्तान पर कब्जा करने में तालिबान का समर्थन करने का आरोप लगाया गया है।

Update: 2021-09-05 10:16 GMT

तालिबान के भीतर चल रहे आंतरिक संकट को हल करने के लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के प्रमुख फैज हमीद ने काबुल का दौरा किया। खबरों के अनुसार, अफगानिस्तान में नई सरकार के गठन को लेकर तालिबान के गुटों के बीच झड़प हुई, जिसमें समूह के सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर घायल हुए हैं और फिलहाल पाकिस्तान में उनका इलाज चल रहा है।

अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट (एइआइ) के रेजिडेंट स्कालर माइकल रुबिन ने लिखा है कि हमीद की आपातकालीन काबुल यात्रा इस बात की पुष्टि करता है कि तालिबान केवल आइएसआइ की कठपुतली है। 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा करने वाला तालिबान पिछले कुछ दिनों से अफगानिस्तान में सरकार बनाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। हालांकि समूह ने अभी तक इस पर कोई बयान जारी नहीं किया है, लेकिन रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच सत्ता के बंटवारे को लेकर मतभेदों के कारण सरकार के गठन में देरी हुई है।

आफगानिसे्तान पर कब्जे में बाद से ही कहा जा रहा था कि तालिबान के शीर्ष नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ही नए अफगान शासन का नेतृत्व करेंगे, लेकिन सरकार गठन की घोषणा से पहले ही अपसी संघर्ष के दौरान वो घायल हो गए है और वर्तमान में पाकिस्तान में उनका इलाज चल रहा है। तालिबान में दरार का संकेत देते हुए रुबिन ने कहा कि हक्कानी और कई अन्य तालिबान गुट हबितुल्लाह को अपना नेता स्वीकार नहीं करते हैं।
पाकिस्तान के खुफिया प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद शनिवार को पाकिस्तानी अधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए काबुल पहुंचे। रुबिन लिखते हैं सरकार गठन में देरी ने मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के काबुल में एक राजनीतिक नेता बनने के प्रयासों को झटका दिया है। यह देरी तालिबान के भीतर एक बड़े संकट का संकेत दे सकती है, इसलिए हमीद की काबुल की आपातकालीन यात्रा पर पहुंचे।
पेंटागन के पूर्व अधिकारी ने कहा कि उनकी हालिया यात्रा से अफगान सरकार को गिराने में आइएसआइ का हाथ उजागर हो गया है। उन्होंने कहा कि वाशिंगटन के लिए एक बेहतर तरीका यह हो सकता है कि फैज हमीद और उसके संगठन को आतंकवादी के रूप में नामित करे, जिसने बहुत लंबे समय तक अफगानिस्तान को जख्म दिया है। पाकिस्तान और उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी पर अफगानिस्तान पर कब्जा करने में तालिबान का समर्थन करने का आरोप लगाया गया है।


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