अफगानिस्तान में तालिबान: भारत की चुनौती या पकड़ होगी मजबूत
अमेरिकी सेना ने वापसी शुरू होने से पहले अफगानिस्तान से उपकरण वापस करना
जनता से रिश्ता वेबडेस्क: अमेरिकी सेना ने वापसी शुरू होने से पहले अफगानिस्तान से उपकरण वापस करना और स्थानीय सेवा प्रदाताओं के साथ करार समाप्त करना शुरू कर दिया है। वहां से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ 20 साल पुराने युद्ध की समाप्ति भी हो जाएगी। अभी इस युद्धग्रस्त देश में लगभग 2,500 अमेरिकी सेना और लगभग 7,000 गठबंधन सैनिक मौजूद है। पिछले साल फरवरी में अमेरिकी सैनिकों ने अपने छोटे सैन्य अड्डों को बंद करना शुरू कर दिया था।
अमेरिकी फौज की वापसी 11 सितंबर के पहले पूरी हो जाएगी। अफगानिस्तान में भारत के ढेरों राजनयिक और कारोबारी हित निहित हैं। अमेरिकी फौजों की वापसी के बाद तालिबानी वहां मजबूत होंगे, इस बात के संकेत अभी से मिलने लगे हैं। यह स्थिति भारत के लिए चुनौतिपूर्ण है या आगामी दिनों में अफगान नीति का प्रभाव मजबूत पकड़ के रूप में सामने आएगा- यह सवाल उमड़ने लगा है।
अमेरिका ने क्या हासिल किया
अमेरिका ने 2,400 सैनिक खो दिए। मरने वाले अफगान सैनिकों, लड़ाकों और नागरिकों की संख्या दो लाख से अधिक है। ब्राउन यूनिवर्सिटी के अध्ययन के मुताबिक, अमेरिका ने 9/11 के हमले के बाद अफगानिस्तान, इराक, सीरिया और अन्य जगह 64 खरब डॉलर यानी (384 लाख करोड़ रुपए) खर्च किए। यह साफ हो गया है कि अमेरिका वहां से निकलना चाहता था और तालिबान शांति वार्ता के जरिए उसने राह तैयार की।
दूसरी ओर, अफगानिस्तान सरकार है, जिसे अपनी सुरक्षा के लिए खुद की सेना के भरोसे रहना पड़ेगा। अमेरिकी फौज की वापसी का एलान करते हुए राष्ट्रपति बाइडेन ने भारत और चीन समेत आसपास के शक्तिशाली देशों को अफगानिस्तान में अपनी भूमिका बढ़ाने को कहा। अहम यह है कि जिस तालिबान को दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति होने के बावजूद अमेरिका नहीं हरा पाया, वहां बाकी देश क्या कर पाएंगे?
भारत की भविष्य में भूमिका
फिलहाल अफगानिस्तान में दो सत्ता केंद्र हैं- एक, चुनी हुई सरकार और दूसरा, तालिबान। भारत वहां की चुनी हुई सरकार के साथ 20 साल से काम कर रहा है। वहां की संसद के निर्माण से लेकर बांध निर्माण व सड़कें बनाने तक कई परियोजनाओं का काम भारत कर रहा है। लेकिन तालिबान के साथ भारत का कभी भी रिश्ता नहीं बन पाया। पाकिस्तान और तालिबान का गठजोड़ जगजाहिर है। ऐसे में भारत सरकार और रणनीतिकारों की नजर अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी के बाद पैदा होने वाली परिस्थितियों पर टिकी हुई है।
अगर, तालिबान को भारत के साथ अच्छे संबंध बनाने की इच्छा होगी तो उसके पाकिस्तान के साथ रिश्तों में कड़वाहट आ सकती है। क्या तालिबान अपने पुराने दोस्त पाकिस्तान की कीमत पर भारत से दोस्ती करना चाहेगा? तालिबान पारंपरिक रूप से पाकिस्तानी खुफिया एजंसी आइएसआइ का करीबी है। अगर तालिबान सत्ता में आता है या मजबूत होता है तो वह पाकिस्तान के कहने पर भारत के हितों को नुकसान पहुंचा सकता है।
अफगानिस्तान को विकसित करने के लिए भारत ने अरबों डॉलर का निवेश किया है। भारत ने अफगानिस्तान को तीन अरब डॉलर से ज्यादा की सहायता दी है। भारत अब भी 116 सामुदायिक विकास की परियोजनाओं पर काम कर रहा है। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, पेयजल, ऊर्जा, खेल व प्रशासनिक ढांचे का निर्माण भी शामिल हैं। भारत काबुल के लिए शहतूत बांध व पेयजल परियोजना पर भी काम कर रहा है।
अफगानिस्तान में भारत की लोकप्रियता
अफगान शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए भारत नानगरहर प्रांत में कम लागत पर घरों का निर्माण शुरू करने जा रहा है। इसके अलावा बामियान प्रांत में बंद-ए-अमीर तक सड़क का निर्माण, परवान प्रांत में चारिकार शहर के लिए पीने के पानी के नेटवर्क को भी बनाने में भारत सहयोग दे रहा है। कंधार में भारत अफगान राष्ट्रीय कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय बना रहा है। इन सभी कार्यों के कारण भारत की लोकप्रियता अफगानिस्तान में बढ़ी है।
भारत ईरान के चाबहार परियोजना के जरिए अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोप में व्यापार को बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए भारत कई सड़कों का निर्माण कर रहा है, जो अफगानिस्तान से होते हुए भारत के माल ढुलाई नेटवर्क को बढ़ाएगा। अगर तालिबान ज्यादा मजबूत होता है तो चाबहार से भारत जितना फायदा उठाने की कोशिश में जुटा है, उसे नुकसान पहुंच सकता है। दूसरी ओर, तालिबान यदि अफगानिस्तान सरकार के साथ शांति करार कर लेता है तो उसपर होने वाले हमले बंद हो जाएंगे और तालिबान पर लगे सामाजिक, आर्थिक प्रतिबंध भी खत्म होंगे।
क्या कहते
हैं जानकार
भारत तो अफगानिस्तान की हर तरह से मदद कर रहा है। हम अफगानिस्तान की सेना को ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। भारत आगे मदद के लिए अपने सैनिक भी भेज सकता है। भारत के नजरिए से शांति रहे तो बेहतर है, क्योंकि पाक और तालिबान पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
– मेजर जनरल (रिटायर) पीके चक्रवर्ती, रक्षा विशेषज्ञ
अभी तक शांति वार्ताओं में भारत ने पीछे रहकर काम किया है, ताकि पाकिस्तान को ये न लगे कि भारत उसे तंग कर रहा है। अफगानिस्तान में भारत ने बड़ी भूमिका निभाई है। अमेरिका भी इस पूरे इलाके में भारत की भूमिका को मानता है। तालिबान को भी भारत की भूमिका का ध्यान रखना होगा।
– समीर पाटिल, फेलो, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन, गेटवे हाउस
उलझाने वाले सवाल
अफगानिस्तान के ज्यादातर हिस्सों पर तालिबान का कब्जा जारी है। एक अनुमान के अनुसार बड़े अफगान शहरों के अलावा हर जगह तालिबान ने अपना प्रशासन कायम किया हुआ है। उनकी सरकार, करों की उगाही और शरीयत अदालतें सक्रिय हैं। दोहा में तालिबान से समझौता हो जाने के बावजूद अफगान सेना उनके हमलों को रोकने में असमर्थ रही हैं।