तालिबान को अमेरिकी सेना की पूर्ण वापसी का इंतजार, अफगानिस्तान में हालात और बिगड़ने की संभावना
अमेरिकी सेना की पूर्ण वापसी का इंतजार
नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। अफगानिस्तान के 426 जिलों में से 212 जिलों में तालिबान ने बढ़त बना ली है इसके बावजूद उसके लिए काबुल की सत्ता अभी काफी दूर है। ना सिर्फ अफगानिस्तान की नेशनल सिक्योरिटी फोर्स (एएनएसएफ) तालिबान का जबरदस्त मुकाबला कर रही है बल्कि जिस तरह से अमेरिका, रूस, ईरान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान जैसे देशों में तालिबान को लेकर संशय बना है उसका भी असर आने वाले दिनों में दिखाई देगा। भारत अफगानिस्तान के पूरे हालात पर करीबी नजर रखने के साथ ही रूस, ईरान, अमेरिका और पश्चिम एशिया के देशों के साथ कूटनीतिक संपर्क बनाये हुए है।
शांति वार्ता के बहाने अमेरिकी सेना की पूर्ण वापसी का कर रहा इंतजार
भारत का आकलन है कि अगले दो से तीन महीने अफगानिस्तान के लिए अहम होंगे क्योंकि वहां हिंसक वारदातों में भारी बढ़ोतरी होने की आशंका है। अफगानिस्तान के हालात पर नजर रखने वाले कूटनीतिक सूत्रों का कहना है कि 19 जुलाई, 2021 तक वहां के जिन 212 जिलों पर तालिबान के कब्जे की पुष्टि हुई है, वहां भी हालात तेजी से बदल सकते हैं। अफगानिस्तान के जिला मुख्यालय और कस्बे भारत की तरह घनी आबादी वाले नहीं हैं। कुछ जिला मुख्यालयों में तो मुश्किल से गिने-चुने घर और दफ्तर ही मिलेंगे। तालिबान लड़ाकों का कोई भी एक दस्ता वाहन से जाकर वहां अपना झंडा लहरा देता है और फिर उसे अपने कब्जे में होने का बात करता है। लेकिन कुछ ही घंटे में सरकारी सैन्य बल उसे हटा देते हैं
समय काटने की कोशिश कर रहा है तालिबान
लेकिन यह सच है कि तालिबान दोहा, तेहरान, मास्को में चल रही शांति वार्ताओं की आड़ में ज्यादा से ज्यादा समय काटने की कोशिश कर रहा है। ऐसा लगता है कि तालिबान अगस्त के अंत तक का इंतजार कर रहा है, तब तक वहां से अमेरिकी सेना की पूरी तरह से वापसी हो जाएगी। उसके बाद तालिबान काबुल, कंधार, गजनी, हेलमंद जैसे शहरों पर हमला करने की रणनीति अपना सकता है। अभी तालिबान ने अफगान की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर धावा बोलने व कब्जा करने की रणनीति अपनाई है। तालिबान को लगता है कि इससे दूसरे देशों से मान्यता हासिल करने में मदद मिलेगी।
हालात पर नजदीकी नजर रखने के साथ ही रूस, ईरान, अमेरिका और पश्चिम एशियाई देशों के संपर्क में भारत
भारतीय पर्यवेक्षक यह भी मान रहे हैं कि पिछले दो-तीन हफ्तों में तालिबान को लेकर तमाम देशों के विचार में काफी बदलाव आया है। रूस, ईरान जैसे देश जो अभी तक अमेरिका के अफगानिस्तान से वापसी की लगातार मांग कर रहे थे उन्हें भी यह समझ आने लगा है कि आज का तालिबान तीन वर्ष पुराने तालिबान जैसा ही है
पड़ोसी देशों में आने वाले समय में परेशानी खड़ी कर सकता है तालिबान
तालिबान के सत्ता में आने के बाद वहां फैलने वाली अस्थिरता को लेकर अफगानिस्तान के साथ सीमा साझा करने वाले देश जैसे चीन, ईरान, रूस, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान चिंतित हैं। इनकी चिंता का कारण यह है कि तालिबान के साथ जो आतंकी हैं, वो इन देशों के लिए आने वाले दिनों में परेशानी पैदा कर सकते हैं। यही वजह है कि हाल ही में मास्को और ताशकंद में अफगानिस्तान को लेकर संपन्न बैठकों में तालिबान को लेकर काफी प्रतिकूल माहौल बना है।
ऐसे में अफगानिस्तान का भविष्य बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत समेत तमाम देश वहां की केंद्रीय सरकार को किस तरह की मदद मुहैया कराते हैं। अमेरिकी सेना की पूरी वापसी के बाद तालिबान शहरों पर कब्जा जमाने की कोशिश करेगा। ऐसे में अगर वहां की सेना को दूसरे देशों से मदद मिलती है तो तालिबान को सीमित करना आसान होगा।
तालिबान को पाकिस्तान से मिल रही है पूरी मदद
भारतीय खुफिया एजेंसियों को इस बात की पूरी जानकारी मिल रही है कि किस तरह से पाकिस्तान और वहां की सेना तालिबान को हर तरह से मदद दे रही है। तालिबान को लड़ाई में सारे असलहे पाक सेना दे रही है और लड़ाई में जो तालिबानी घायल हो रहे हैं उन्हें खैबर पख्तूनख्वा एवं बलूचिस्तान के शहरों में इलाज के लिए लाया जा रहा है।
चमन शहर स्थिति प्रमुख सरकारी अस्पताल और क्वेटा स्थित जिलानी अस्पताल में बड़ी संख्या में तालिबानी लड़ाकों का इलाज किया जा रहा है। यही नहीं स्थानीय प्रशासन ने मदरसों व दूसरे इस्लामिक इदारों को अफगान में जिहाद के लिए लड़ाकों को भर्ती करने की छूट दे दी है।
पाकिस्तान की तरफ से इस तरह का समर्थन अफगानिस्तान में हिंसा को और बढ़ावा देगा। भारतीय सूत्र बताते हैं कि पाकिस्तान एक वर्ष पहले तक दुनिया के समक्ष यह बोलता रहा है कि उसके यहां कोई तालिबान नहीं है लेकिन अब वह तालिबान के साथ अपने रिश्तों को भी छिपाने की कोई कोशिश नहीं कर रहा।