'अंधविश्वास' बना खौफनाक 'नरसंहार' का कारण... खुद को चर्च में बंद कर 700 लोगों ने लगा ली आग

अगर वो जीवित भी हैं तो उनका कुछ पता नहीं लगा.

Update: 2021-03-17 03:09 GMT

मेकशिफ्ट चर्च (Makeshift Church) के फर्श पर जली हुई लाशें बिखरी हुई थीं. टिन (Tin) की छत आग की लपटों के दबाव से गिर गई थी. बारिश लाशों (Dead Bodies) पर गिर रही थी, जिनमें से कुछ अभी भी सुलग रही थीं. कई जली हुई लाशें दीवारों से चिपकी हुई थीं, जैसे वो खुद को आग (Fire) की लपटों से बचाना चाह रहे हों. एक आदमी पीठ के बल लेटा हुआ था, उसके पैर फैल चुके थे और उसकी बाहें उसके सिर के ऊपर निकल चुकी थीं. एक बच्चे की लाश, जिसकी बाहें आंशिक रूप से गायब थीं, चर्च के दरवाजे के ठीक बाहर पड़ी हुई थी.

इस खौफनाक तस्वीर के पीछे है एक तारीख, '17 मार्च 2000′. क्या है इस तारीख का इतिहास और क्या है इस खौफनाक नरसंहार की कहानी, बताएंगे विस्तार से. 17 मार्च के तीन दिन बाद यानी 20 मार्च 2000 को छपी 'द गार्डियन' की एक रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस ने अनुमान लगाया कि रुंगुंगिरी के पश्चिमी युगांडा जिले में कानूनगू ट्रेडिंग सेंटर के 'Restoration of the Ten Commandments of God' चर्च में शुक्रवार सुबह एक सामूहिक आत्महत्या में 235 से अधिक पुरुष, महिलाओं और बच्चों की मौत हो गई. कुछ अपुष्ट खबरों के मुताबिक मरने वालों की संख्या 470 बताई गई. बीबीसी की रिपोर्ट में बताया गया कि इस नरसंहार में 700 लोग मारे गए थे.
सिर्फ राख और जले हुए मांस की बदबू
दक्षिण-पश्चिमी युगांडा के कानूनगू में लोगों को एक चर्च के अंदर बंद कर दिया गया था. दरवाजे और खिड़कियां बाहर से बंद कर दिए गए थे. घटना के दो दशक बीतने के बाद भी पीड़ित परिवारों के जख्म आज भी हरे हैं जिन्होंने अपनों को खोया. मृतक 'Restoration of the Ten Commandments of God' पंथ का हिस्सा थे, जिसका मानना था कि शताब्दी के अंत में दुनिया खत्म हो जाएगी.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक पहाड़ों पर रहने वाली अन्ना कबीरहो उस नरसंहार में जीवित बच गईं. वो शुक्रवार सुबह की उस गंध को अभी तक नहीं भूली हैं. रिपोर्ट में वो उस दृश्य को याद करते हुए कहती हैं कि सब कुछ धुएं, कालिख और जले हुए मांस की बदबू से ढका हुआ था. सब कुछ जैसे फेफड़ों में भर रहा हो. वो कहती हैं कि हर कोई बस भाग रहा था और हर तरफ आग जल रही थी. दर्जनों लाशें जली हुईं पड़ी थी जिन्हें पहचाना भी नहीं जा सकता था. गंध को दूर करने के लिए हमने नाक को पत्तियों से ढक रखा था. उन्होंने बताया कि कई महीनों के बाद भी हम मांस नही खा पाए.
पुलिस ने बताया 'Mass Suicide'
'द गार्डियन' की रिपोर्ट में लिखा है कि अनुयायियों ने खुद को चर्च में बंद कर पेट्रोल में डुबो लिया और फिर कथित तौर पर खुद को आग लगा ली. युगांडा की पुलिस ने जानकारी दी कि हमारे सामने एक सामूहिक आत्महत्या का मामला आया है. पुलिस ने कहा कि हम जानते हैं कि उस संप्रदाय के मुखियाओं ने इसकी योजना बनाई होगी.
रिपोर्ट के मुताबिक 'The Restoration of the Ten Commandments' संप्रदाय की स्थापना 1980 के दशक में पश्चिमी युगांडा में हुई थी. इसका संचालन दक्षिण और मध्य क्षेत्रों के साथ-साथ पड़ोसी रवांडा में सीमा पार से भी होता था. पुलिस के पास संप्रदाय के सदस्यों की सूची तो थी लेकिन ये नहीं पता चल पा रहा था कि घटना के वक्त वो चर्च में मौजूद थे या नहीं.
'वह दृश्य बहुत डरावना था'
घटना के बाद जब शवों की पहचान के लिए परिजनों को बुलाया गया तो वो लाशों के बजाय उनके अवशेष बटोर रहे थे. इसका असर लोगों के दिल और दिमाग पर भी हो रहा था. एक महिला जिसने अपने परिवार के 10 सदस्यों को खो दिया था, चेहरे पर मुस्कान के साथ इधर-उधर भटक रही थी, जैसे मानो कुछ हुआ ही ना हो. पुलिस प्रवक्ता ने बताया कि 'वह दृश्य बहुत डरावना था.' प्रवक्ता ने कहा कि दो या तीन लाशों को छोड़कर लग ही नहीं रहा था कि ये इंसानों के जले हुए अवशेष हैं.
पुलिस और स्थानीय लोगों का मानना था कि ये एक सामूहिक आत्महत्या का मामला था. स्थानीय ट्रेडिंग सेंटर के एक सुरक्षा अधिकारी स्टीफन मुजेंई बताते हैं कि मैं कानूनगू पुलिस स्टेशन में था जब कोई हमें बताने आया कि कुछ लोगों ने खुद को चर्च में बंद कर लिया है और आग लगा ली है. जब हम वहां पहुंचे तो देखा तो भयानक आग लगी हुई थी. हमने बहुत कोशिश की लेकिन हम कुछ नहीं कर सके. संप्रदाय के सदस्य बाहर से खिड़की दरवाजों को बंद करते देखे गए और फिर अंदर जाकर उन्होंने खुद को आग लगा ली.
स्वर्ग जाने की तैयारी में बेची प्रॉपर्टी
मौत से एक हफ्ते कुछ असामान्य गतिविधियों के संकेत मिले थे. अनुयायियों ने कथित तौर स्वर्ग में जाने की तैयारियों के लिए अपनी संपत्ति को बेचना शुरू कर दिया था. 14 मार्च को एक बड़ी पार्टी का आयोजन किया गया था, जिसमें चर्च की सजावट से लेकर खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था की गई. स्थानीय लोगों ने पंथ के सदस्यों को यह कहते सुना कि, 'यह चर्च नूह की नाव है, संकट की घड़ी में सब यहीं आएंगे.'
एक ग्रामीण ने बताया कि अनुयायियों से कहा गया कि इस साल एक निश्चित समय पर दुनिया खत्म हो जाएगी. पंथ के गुरुओं ने इसे सच कर दिया और अनुयायियों ने उन पर भरोसा किया और उनकी दुनिया सच में खत्म हो गई. नरसंहार के इतने साल बाद भी पंथ के किसी मुखिया पर मुकदमा नहीं चलाया जा सका. अगर वो जीवित भी हैं तो उनका कुछ पता नहीं लगा.


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