स्टडी में सामने आई ये बात: बच्चों में खेलकूद से कम हो सकता है डिप्रेशन का खतरा
उन्होंने बताया, 'खेलकूद में हिस्सा नहीं लेने वाले पांच वर्ष की उम्र के लड़कों को छह से दस साल की उम्र के दौरान डर, नाखुशी और थकावट का सामना करना पड़ सकता है।'
अच्छी सेहत में खेलकूद की भी अहम भूमिका होती है। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि नियमित रूप से खेलकूद यानी स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने से मानसिक समस्याओं के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है। स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने से खासतौर पर बच्चों को फायदा हो सकता है। अध्ययन के अनुसार, बचपन के शुरुआती दौर में स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने वाले लड़कों को जीवन में आगे चलकर डिप्रेशन (अवसाद) और एंग्जाइटी (व्यग्रता) जैसी मानसिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है।
अध्ययन के नतीजों को जर्नल आफ डेवलपमेंट एंड बिहेव्यरल पीडीऐट्रिक्स में प्रकाशित किया गया है। कनाडा की मांट्रियल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है। अध्ययन के मुताबिक, स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने वाले बालकों में इस तरह की समस्याओं का खतरा कम रहता है। ऐसे बच्चे किशोरावस्था में शारीरिक रूप से ज्यादा सक्रिय भी रहते हैं। यह निष्कर्ष 690 लड़कों और 748 लड़कियों पर किए गए एक अध्ययन के आधार पर निकाला गया है। पांच से 12 वर्ष की उम्र के दौरान इनकी गतिविधियों पर गौर किया गया।
अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता मैरी जोस हार्बेक ने कहा, 'हम स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने वाले स्कूली बच्चों और डिप्रेशन व एंग्जाइटी के बीच जुड़ाव को स्पष्ट करना चाहते थे। हम यह भी देखना चाहते थे कि क्या पांच से 12 वर्ष के लड़कों और लड़कियों से इसका अलग-अलग संबंध है या नहीं?' उन्होंने बताया, 'खेलकूद में हिस्सा नहीं लेने वाले पांच वर्ष की उम्र के लड़कों को छह से दस साल की उम्र के दौरान डर, नाखुशी और थकावट का सामना करना पड़ सकता है।'