स्टडी का दावा- लॉन्ग कोविड मरीजों के प्राइवेट पार्ट के साइज में आ रहा परिवर्तन
कोरोना वायरस नए-नए वेरिएंट्स में लोगों को अलग-अलग तरह की परेशानियां दे रहा है
कोरोना वायरस नए-नए वेरिएंट्स में लोगों को अलग-अलग तरह की परेशानियां दे रहा है. WHO ने चेतावनी दी है कि दुनियाभर में कोरोना की तीसरी लहर की शुरुआत हो चुकी है. इस बीच लॉन्ग कोविड को लेकर सामने आई एक स्टडी ने लोगों को हैरानी में डाल दिया है. एक इंटरनेशनल स्टडी में दावा किया गया है कि लॉन्ग कोविड (Long Covid) के 200 से ज्यादा लक्षण देखे गए हैं. स्टडी में दावा किया गया है कि लॉन्ग कोविड के मरीजों में लिंग का छोटा होना ( Smaller Penis), अर्ली मेनोपॉज (Early Menopause) और रोने में असमर्थता (Inability to Cry) जैसे कई अजीबोगरीब लक्षण दिखाई दिए हैं.
दुनियाभर में कोरोना के ऐसे भी मरीज मिले हैं जिनमें रिकवर होने के बाद भी लंबे समय तक लक्षण देखे जा रहे हैं. यह लक्षण कुछ हफ्तों तक या फिर 6 महीने तक भी कुछ मरीजों में देखे जा रहे हैं. इस स्थिति को 'लॉन्ग कोविड' का नाम दिया गया है.
द सन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की द्वारा कराई गई एक स्टडी में रिसर्चरों ने पाया कि लॉन्ग कोविड के मरीजों के दिमाग, फेफड़े और त्वचा सहित 10 अंग प्रणालियों (10 Organ Systems) में दिक्कतें आ रही हैं.
इसके अलावा रिसर्चरों ने पाया कि लॉन्ग कोविड के मरीजों में यौन रोग, खुजली, पीरियड साइकिल में बदलाव, मूत्राशय पर नियंत्रण खोना, दाद और दस्त जैसी समस्याएं भी देखने को मिल रही हैं.
रिसर्चरों का कहना है कि कुछ लॉन्ग कोविड मरीजों में लिंग के आकार में परिवर्तन, जम्हाई लेने में असमर्थता, रोने में असमर्थता, दिमागी कोहरा, भ्रम या कंपकपी से लेकर आक्रामकता और अर्ली मेनोपॉज जैसे लक्षण भी देखने को मिले हैं. मरीजों में दिखे इन लक्षणों ने रिसर्चरों को भी हैरानी में डाल दिया है.
स्टडी में नेशनल स्क्रीनिंग प्रोग्राम (National Screening Programme) चलाने की सलाह दी गई है. इसकी मदद से यह पता किया जा सकता है कि कितने लोग लॉन्ग कोविड से जूझ रहे हैं और उनमें किस-किस तरह के लक्षण दिखाई दे रहे हैं. इससे ये भी पता चल सकेगा कि उन्हें किस तरह के इलाज की जरूरत है और किन दवाइयों से कितने दिन में वो ठीक हो सकेंगे.
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के रिसर्चरों ने मांग की है कि लॉन्ग कोविड के 200 से ज्यादा लक्षणों को लेकर क्लीनिकल गाइडलाइंस बनाई जाएं ताकि कोरोना से जूझ रहे मरोजों की अन्य जांच भी हो सके. ये जांच सिर्फ दिल और फेफड़े से संबंधित न हो.
इस रिसर्च से जुड़ी सीनियर ऑथर एथेना अकरामी ने बताया कि इंग्लैंड में ज्यादातर पोस्ट-कोविड क्लीनिक्स में सिर्फ फेफड़ों से संबंधित जांच और इलाज हो रहे हैं. ये बात सही है कि बहुत से लोगों को सांस से संबंधित दिक्कतें हो रही हैं लेकिन कई लोगों में अन्य समस्याएं भी देखने को मिल रही हैं जिनपर ध्यान देना बेहद जरूरी है.