बोलिविया में सोशलिस्टों की वापसी के संकेत, एग्जिट पोल्स में मिली बढ़त

लैटिन अमेरिकी देश बोलिविया में रविवार को मतदान खत्म होने के कुछ घंटों के अंदर ही जारी हुए एग्जिट पोल्स ने इवो मोरालेस...

Update: 2020-10-19 16:22 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| लैटिन, अमेरिकी देश बोलिविया में रविवार (भारतीय समय के अनुसार सोमवार सुबह) को मतदान खत्म होने के कुछ घंटों के अंदर ही जारी हुए एग्जिट पोल्स ने इवो मोरालेस की पार्टी मूवमेंट टूवार्ड्स सोशलिज्म (मास) के निर्णायक जीत का एलान कर दिया। पिछले साल मोरालेस लगातार चौथी बार राष्ट्रपति चुने गए थे, लेकिन उसके बाद सेना की मदद से दक्षिणपंथी ताकतों ने उनका तख्ता पलट दिया था। तब से मोरालेस अर्जेंटीना में निर्वासन पर हैं। इस बार उनकी पार्टी की तरफ से पूर्व वित्त मंत्री लुइस आर्से उम्मीदवार थे। एग्जिट पोल्स में उन्हें 52 फीसदी वोट मिलने का अनुमान लगाया गया। अगर इस अनुमान की अंतिम रूप से पुष्टि हुई, तो आर्से मतदान के पहले ही दौर में चुन लिए जाएंगे।

बोलिविया की चुनाव प्रणाली के मुताबिक राष्ट्रपति चुनाव के पहले दौर के मतदान में जीतने की दो शर्तें तय हैं। पहली यह कि उम्मीदवार को 50 फीसदी से अधिक वोट हासिल करे। या फिर उसे 40 फीसदी से ज्यादा वोट मिलें और दूसरे नंबर पर रहे उम्मीदवार से उसका फासला 10 फीसदी वोटों से ज्यादा का हो। एग्जिट पोल्स के मुताबिक दूसरे नंबर पर चल रहे दक्षिणपंथी- कंजरवेटिव उम्मीदवार कार्लोस मेसा महज 32 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है। राष्ट्रपति के साथ-साथ रविवार को नई संसद के चुनाव के लिए भी वोट डाले गए। इसमें भी मास को सफलता मिलने का अनुमान जताया गया है। एग्जिट पोल्स के अनुमान मतदान पूर्व ओपिनियन पोल्स से मेल खाते हैं। उनमें भी मास को भारी समर्थन मिलने का अनुमान लगाया गया था।

पिछले साल मोरालेस पर चुनाव में गड़बड़ियां करने के आरोप लगाए गए थे। बोलिविया खनन पदार्थों से समृद्ध देश है। खासकर वहां लिथियम प्रचुर मात्रा में है, जिसे आज बेशकीमती खनिज समझा जाता है। मोबाइल फोन से लेकर लैपटॉप और अन्य तकनीकी उपकरणों के निर्माण में इसका उपयोग होता है। इसीलिए बोलिविया पर हमेशा विदेशी ताकतों की निगाह रहती है। 2006 के पहले वहां लगातार अमेरिका समर्थक दक्षिणपंथी ताकतों का शासन रहा। मगर 2006 में इवो मोरालेस मूलवासी समुदाय के पहले व्यक्ति बने, जो देश के राष्ट्रपति पद पर पहुंचे। अपने 13 साल के शासनकाल में उन्होंने कई प्राकृतिक संसाधानों का राष्ट्रीयकरण किया। इस दौरान आम जन की भलाई की नीतियां अपनाई गईं, जिससे मानव विकास के संकेतकों पर आम बोलिवियाई नागरिकों की स्थिति सुधरी। इसीलिए सोशल डेमोक्रेटिक नीतियां देश में खूब लोकप्रिय रही हैं।

2019 में हुआ चुनाव इसलिए भी विवादास्पद रहा, क्योंकि तब लगातार तीन बार से ज्यादा राष्ट्रपति पद पर किसी के ना रहने के नियम को मोरालेस ने जनमत संग्रह करवा कर बदल दिया था। उसके बाद चुनाव में गड़बड़ियों के आरोप लगे। उससे बने माहौल में उनका तख्ता पलट दिया गया। तब देश में एक दक्षिणपंथी सीनेटर के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनी। उसने दो बार नए चुनाव की तय तारीखें स्थगित कर दीं, जिससे देश में संशय का माहौल बना। ऐसी चर्चा रही कि अमेरिका मोरालेस की पार्टी की वापसी नहीं चाहता और अंतरिम सरकार उसके इशारे पर काम कर रही है।

मतदान के दिन तक ये कयास लगते रहे हैं कि क्या अंतरिम सरकार नव-निर्वाचित वामपंथी राष्ट्रपति को सत्ता सौंपेगी। दरअसल, इसको लेकर आशंका तब तक बनी रहेगी, जब तक सचमुच सत्ता का हस्तांतरण नहीं हो जाता। 

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