नई दिल्ली: भारत में सेक्स वर्क को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है. जिसके बाद अब एडल्ट और सहमति से सेक्स वर्क कर रहे लोगों के खिलाफ पुलिस क्रिमिनल एक्शन नहीं ले पाएगी. भारत के इस फैसले से पहले कई देशों ने अपने यहां सेक्स वर्क को लीगल और रेगुलेट कर रखा है.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने सेक्स वर्क को एक प्रोफेशन माना है. कोर्ट ने कहा कि सेक्स वर्कर्स के पास भी अपने 'प्रोफेशन' को फॉलो हुए सम्मान से जीने का अधिकार है. वहीं दूसरे देशों ने सेक्स वर्क को लीगल करने के पीछे संगठित अपराध, मानव तस्करी, हेल्थकेयर और सेफ्टी को वजह बताया था.
नीदरलैंड, सेक्स वर्क को लीगल और रेगुलेट करने वाले दुनिया के पहले देशों में से एक है. साल 2000 से ही यहां सेक्स वर्क को रेगुलेट किया जा रहा है. हालांकि, यहां सेक्स ट्रेड कम या ज्यादा एक दशक पहले से ही चला आ रहा है.
नीदरलैंड में सेक्स वर्क को इसलिए लीगल किया गया था ताकि संगठित अपराध पर काबू पाया जा सके, मानव तस्करी को लिमिट किया जा सके, सेक्स वर्कर को हेल्थकेयर का सही से एक्सेस मिल सके, और सेक्स वर्क सेफ हो सके.
स्विट्जरलैंड में साल 1942 से ही सेक्स वर्क लीगल है. लेकिन देश में पहला कानूनी वेश्यालय साल 1998 में खुला था. आमतौर पर सेक्स वर्कर्स यहां वेश्यालय में काम करते हैं या फिर चिन्हित जगहों पर सेक्स वर्क के लिए रोजाना टिकट खरीदते हैं.
यूरोप का 'सबसे बड़ा वेश्यालय' जर्मनी में है. माना जाता है कि यहां साल 1800 से ही सेक्स वर्क चल रहा है. लेकिन साल 2002 में सरकार ने इसे फॉर्मली लीगल कर दिया था. जिसके बाद यह ट्रेड बहुत तेजी से बढ़ा.
2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तब यहां करीब 1,300 अरब रुपए का सलाना बिजनेस था और करीब 10 लाख सेक्स वर्कर्स काम करते थे.
ग्रीस के रजिस्टर्ड वेश्यालयों में सेक्स वर्क लीगल है. लेकिन एथेंस के ज्यादातर वेश्यालय रजिस्टर्ड नहीं हैं. यहां स्ट्रीट प्रॉस्टीट्यूशन भी लीगल है. इसके बावजूद ज्यादातर महिलाएं गलियों में सेक्स वर्क करती हैं.
बंग्लादेश में साल 2000 से ही सेक्स वर्क लीगल और रेगुलेटेड है. यह फैसला एक बड़े आंदोलन के बाद लिया गया था. दरअसल, 100 सेक्स वर्कर्स को एक साल तक हिरासत में रखा गया था, जिसके बाद महिला की आजादी और समान अधिकार को लेकर वहां एक बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया. फिर सेक्स वर्क को एक खाका तैयार कर लीगल कर दिया गया.