विज्ञानियों ने मलेरिया के रोकथाम के लिए नया तरीका खोजा
विज्ञानियों ने मलेरिया की रोकथाम का एक नया तरीका खोजा है
बाल्टीमोर (अमेरिका), एएनआइ। विज्ञानियों ने मलेरिया की रोकथाम का एक नया तरीका खोजा है। इससे मलेरिया परजीवी को मच्छरों से इंसानों तक पहुंचने से रोकना संभव हो सकेगा। 'पीएलओएस बायोलाजी' में आनलाइन प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, अफ्रीका में मलेरिया के वाहक एनोफिलीज गैंबिया मच्छरों में एक अहम प्रोटीन को ब्लाक करने से मच्छरों से इंसानों में पहुंचने वाले मलेरिया संक्रमण को रोका जा सकता है।
यह अध्ययन जान्स हापकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ के जान्स हापकिंस मलेरिया रिसर्च इंस्टीट्यूट ने किया है। विज्ञानियों ने इस शोध के तहत एनोफिलीज गैंबिया मच्छरों में सीटीएलटी4 नामक प्रोटीन बनाने वाले जीन को एक विशिष्ट जीन एडिटिंग तकनीक के जरिये खत्म कर दिया। इस प्रक्रिया के बाद पाया गया कि मच्छरों में मलेरिया परजीवी के प्रति बहुत ही मजबूत प्रतिरोधी क्षमता विकसित हो गई।
शोधकर्ताओं ने पाया कि सीएलटी4 प्रोटीन के निर्माण को बाधित करने से संक्रमण फैलने में 64 प्रतिशत तक की गिरावट आई। इस कारण उनका मानना है कि सीटीएलटी4 को निशाना बनाकर मलेरिया को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
जान्स हापकिंस मलेरिया रिसर्च इंस्टीट्यूट के डिप्टी डायरेक्टर तथा इस शोध के वरिष्ठ लेखक जार्ज डिमोपोलोस ने बताया कि मलेरिया की रोकथाम के लिए अभी तक जो भी जीनेटिक इंजीनियरिंग की तकनीक अपनाई जा रही है, उसकी तुलना में यह नई विधि ज्यादा क्षमता और संभावनाओं वाली है। इस तकनीक के जरिये किसी खास क्षेत्र में मलेरिया की प्रभावी रोकथाम की जा सकती है।
बता दें कि मलेरिया अभी भी दुनियाभर में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चिंता बनी हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, साल 2020 में मलेरिया के 2.41 करोड़ मामले सामने आए और उनमें से छह लाख 27 हजार लोगों की मौत हो गई।
मलेरिया की रोकथाम के लिए इन दिनों मच्छरदानी, कीटनाशकों जैसे ऐहतियाती उपाय के साथ ही मलेरिया रोधी दवाओं और पिछले साल से टीके का इस्तेमाल किया जा रहा है। अब विज्ञानियों का मच्छरों से इंसानों में संक्रमण चेन तोड़ने पर जोर है और इस क्रम में मच्छरों को ही मलेरिया परजीवी के प्रति ज्यादा प्रतिरोधी बनाने की रणनीति अपनाई जा रही है।
इसके पूर्व के अध्ययनों में सीटीएल4 प्रोटीन की पहचान तो की गई थी, लेकिन एनोफिलीज मच्छरों में उसके कामकाज के बारे में जानकारी कम ही थी। इसलिए उसे निशाना बनाने पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं गया। लेकिन पाया गया है कि एक पुरानी तकनीक आरएनए-इंटरफिरंस (आरएनएआइ) के जरिये सीटीएल4 का स्तर कम किए जाने से एनोफिलीज को मलेरिया परजीवी प्लाजमोडियम बर्घेई के संक्रमण से मजबूत सुरक्षा मिली। यह परजीवी चूहों में मलेरिया जैसा रोग उत्पन्न करता है और इसी माडल का इंसानों के मामले में प्रयोग किया जाता है।
पुराने और नए अध्ययन में फर्क
अध्ययन में यह भी पाया गया कि आरएनएआइ के जरिये एनोफिलीज में सीटीएल4 के स्तर में कमी उसे प्लाजमोडियम फाल्सीपेरम से पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नहीं करता है। जबकि प्लाजमोडियम फाल्सीपेरम इंसानों के लिए मलेरिया का सबसे खतरनाक परजीवी है। इसलिए आरएनएआइ के जरिये सीटीएल4 में कमी किया जाना ठोस उपाय नहीं बन पाया।
नए शोध में डिमोपोलोस तथा उनके सहयोगियों ने सीटीएल4 को पूरी तरह से हटाने के लिए ज्यादा शक्तिशाली सीआरआइपीआर/सीएएस9 जीन-डिलीशन तकनीक का प्रयोग किया। इसमें उन्होंने पाया कि सीटीएल4 के स्तर में कमी में बहुत ज्यादा अंतर आया।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में सीटीएल-4 रहित और सीटीएल-4 युक्त मच्छरों को प्लाजमोडियम फाल्सीपेरम से संक्रमित मानव रक्त फीड कराया। आठ दिनों के बाद पाया कि सीटीएल4 रहित मच्छरों में संक्रमण का स्तर बहुत ही कम था।
जंगलों में सामान्य तौर पर पाए जाने वाले मच्छरों में जिस मात्रा में परजीवी पाया जाता है, उस मात्रा वाले ब्लड फीड कराने पर सीटीएल4 रहित 19.4 प्रतिशत मच्छरों को ही संक्रमण हुआ, जबकि सीटीएल4 युक्त 61.3 प्रतिशत मच्छर संक्रमित हुए। जब रक्त में परजीवी की मात्रा बढ़ाई गई तो सीटीएल4 रहित 45.0 प्रतिशत मच्छरों में संक्रमण हुआ जबकि सीटीएल-4 युक्त मच्छरों में संक्रमण का प्रतिशत 97.3 रहा।