यूक्रेन की सीमा पर तैनात हैं रूसी सैनिक, US ने अपने नागरिकों से कहा- 'वापस लौट आओ'
इस बात का भी है कि बदले में क्रेमलिन अन्य सैन्य और राजनीतिक एक्शन से यूरोप की सुरक्षा और स्थिरता को खतरा पैदा कर सकता है।
यूक्रेन की सीमा पर रूस की सैन्य मौजूदगी बढ़ने के कारण तनाव बढ़ गया है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने यूक्रेन स्थित अमेरिकी दूतावास में कार्यरत सभी अमेरिकी कर्मियों के परिवारों को रूसी हमले के बढ़ते खतरों के बीच रविवार को देश छोड़ने का आदेश दे दिया है। दक्षिणी फ्लोरिडा की यूनिवर्सिटी के तत्सियाना कुलाकेविच के हवाले से जानते हैं क्या है यूक्रेन-रूस विवाद। साथ ही यह भी जानेंगे कि अमेरिका इसमें क्यों हो रहा है शामिल?
सबसे पहले रूस और यूक्रेन के रिश्तों की बात
सोवियत संघ के खत्म होने के बाद 30 साल पहले यूक्रेन को आजादी मिली। हालांकि इसके बाद से वह लगातार भ्रष्टाचार और अंदरूनी विभाजनों को लेकर लगातार संघर्ष कर रहा है। पश्चिमी यूक्रेन पश्चिमी यूरोप के साथ अंतरंगता को समर्थन देता है, वहीं देश का पूर्वी हिस्सा रूस से नजदीकी बनाकर रखने के पक्ष में है। रूस और यूक्रेन के बीच खराब संबंधों का पीक आया फरवरी 2014 में। उस साल रूस समर्थक यूक्रेनी राष्ट्रपति विक्टर जांकोविच के ऑफिस के बाहर हिंसक प्रदर्शन हुए थे। बाद में इन प्रदर्शनों को रिवॉल्यूशन ऑफ डिग्निटी के नाम से जाना गया। ठीक इसी वक्त रूस ने बलपूर्वक क्रीमिया को शामिल कर लिया। यूक्रेन के लिए उस वक्त हालात बेहद संजीदा थे। वह एक अस्थायी सरकार और बिना तैयार सेना के आत्मरक्षा के लिए जूझ रहा था। पुतिन तत्काल पूर्वी यूक्रेन के डोंबास क्षेत्र पर हमले के लिए बढ़ गए। इस दौरान यूक्रेन की सरकारी सेनाओं और रूस समर्थित अलगाववादियों के बीच हुए सशस्त्र संघर्ष में 14 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। हालांकि रूस ने लगातार इस घटना में खुद के शामिल होने से इंकार किया।
क्या चाहते हैं यूक्रेन के लोग?
डोंबास में रूसी सेना की आक्रामकता और क्रीमिया को रूस में शामिल किए जाने की घटना ने यूक्रेन के पश्चिमी यूरोप समर्थकों को और भड़का दिया। वहीं यूक्रेन की सरकार ने कहा कि वह 2024 में यूरोपियन यूनियन सदस्यता के लिए अप्लाई नहीं करेगा। साथ ही उसने नाटो के साथ जुड़ने की महत्वाकांक्षा भी जताई। 2019 में सत्ता में आने वाले यूक्रेनी राष्ट्रपति ब्लादीमीर जेलेंस्की ने भ्रष्टाचार के खिलाफ, आर्थिक सुधार और डोंबास क्षेत्र में शांति के लिए कैंपेन शुरू किया। सितंबर 2021 में 81 फीसदी यूक्रेन के लोगों ने कहाकि उनके मन में पुतिन की नकारात्मक छवि है। यूक्रेनियन समाचार वेबसाइट आरबीसी-यूक्रेन ने इसे प्रकाशित किया था। इससे साफ जाहिर है कि यूक्रेन के लोग रूस के साथ जाने को तैयार नहीं हैं।
पुतिन यूक्रेन हमले की धमकी क्यों दे रहे?
असल में यूक्रेन के खिलाफ सैन्य इस्तेमाल के पीछे पुतिन की उसे दंड देने की मानसिकता है। पुतिन को पश्चिमी राजनेताओं के साथ डील करने का पुराना अनुभव है। उन्हें इस बात का अच्छी तरह से अंदाजा है कि पश्चिम के राजनेता रिटायरमेंट के बाद रूसी कंपनियों से जुड़ना पसंद करते हैं। वहीं अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप के बाद भी पश्चिमी देशों की तरफ से रूस पर प्रतीकात्मक प्रतिबंध ही लगाए गए थे। इन सारी बातों से पुतिन ने अनुमान लगा लिया है कि पश्चिमी देशों का रूस के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर जैसा है। वहीं नतीजों की परवाह किए बिना पुतिन ने बेलारूस के राष्ट्रपति का मिंस्क में विरोध प्रदर्शन के दमन का समर्थन किया था। कुछ अन्य घटनाओं में भी पुतिन ने पश्चिम के बड़े नेताओं को रूस के साथ समर्थक भूमिका में देखा है। उन्हें पता है यह देश और उनके नेता रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के किसी भी गठबंधन से उनका बचाव करेंगे। उदाहरण के तौर पर पूर्व जर्मन चांसलर गेरार्ड ने अपने कार्यकाल के दौरान यूरोप और रूस के बीच रणनीतिक सहयोग की वकालत की थी। बाद में 2017 में उन्होंने रूसी तेल कंपनी रोसनेफ्ट के चेयरमैन के तौर पर ज्वॉइन किया था। इसी तरह पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांकोइस फिलन और पूर्व ऑस्ट्रियाई विदेश मंत्री कैरीन नीजल ने भी रूस के प्रति नरम रवैया दिखाया था। कार्यकाल खत्म होने के बाद इन दोनों ने भी रूस की सरकारी कंपनियों में ज्वॉइन किया था।
आखिर पुतिन का मकसद क्या है?
असल में पुतिन यूक्रेन को एक स्वतंत्र देश के बजाए रूस से जुड़ा हुआ देखते हैं। वह इसे एक प्रभावशाली क्षेत्र के रूप में देखना चाहते हैं। इसी मालिकाना हक से क्रेमलिन यूक्रेन के यूरोपियन यूनियन या नाटो के साथ जुड़ने में अड़ंगा लगाता है। जनवरी 2021 में रूस सरकार ने बरसों में अपने सबसे बड़े जन प्रतिरोध का सामना किया है। इसका नेतृत्व विपक्षी राजनेता एलेक्सी नावेल्नी ने किया था। नावेल्नी को रूस में कैद किया गया था। जर्मनी में रहने के दौरान रूसी सरकार द्वारा उन्हें जहर देने की कोशिश हुई थी। इसके अलावा पुतिन यूक्रेन का इस्तेमाल पश्चिमी शक्तियों से प्रतिबंधों में राहत पाने के लिए भी कर रहे हैं। फिलहाल अमेरिका ने रूस के खिलाफ कई राजनीतिक और आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं। रूस अगर यूक्रेन पर हमला करता है तो यह इस तरह के प्रतिबंधों से ढील के लिए डिप्लोमैटिक बातचीत का रास्ता खोल सकता है। हालांकि यूक्रेन पर पूरी तरह से हमला करना संभव नहीं है। ऐसे में पुतिन यूक्रेनी आर्मी और रूस समर्थक अलगाववादियों के बीच पूर्वी यूक्रेन में युद्ध भड़का सकते हैं।
इस संघर्ष में अमेरिका क्यों होना चाहता है शमिल?
क्रीमिया के विलय और डोंबास संघर्ष को समर्थन देने के साथ रूस ने 1994 में हुई संधि का उल्लंघन किया है। यूक्रेन की सुरक्षा के लिए हुआ यह बुडापेस्ट समझौता, अमेरिका, ब्रिटेन और रूस के बीच हुआ था। इसके तहत यूक्रेन की संप्रुभता के रक्षा का वादा किया गया था। बदले में उसे परमाणु हथियारों को छोड़ना था। अब जबकि पुतिन ने रूसी सेना को बेलारूस की तरफ रवाना कर दिया है, इससे अन्य पड़ोसी देशों के लिए भी खतरा पैदा होने लगा है। ऐसे में अमेरिका के पास रास्ता है कि वह यूक्रेन की सैन्य मदद करके और राजनीतिक और आर्थिक प्रतिबंध लगाकर रूस का रास्ता रोके। लेकिन रिस्क इस बात का भी है कि बदले में क्रेमलिन अन्य सैन्य और राजनीतिक एक्शन से यूरोप की सुरक्षा और स्थिरता को खतरा पैदा कर सकता है।