रूस-यूक्रेन युद्ध: रूस के हमले पर भारत के रुख पर बोला जर्मनी, जताई ये उम्मीद

Update: 2022-03-01 06:06 GMT

Russia Ukraine War: जर्मनी का कहना है कि उसे अब भी उम्मीद है कि भारत संयुक्त राष्ट्र में रूस-यूक्रेन युद्ध पर अपने रुख में बदलाव करेगा. जर्मनी की तरफ से ये बयान भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और जर्मनी की विदेश मंत्री एनालेना बेरबॉक के बीच हुई बातचीत के एक दिन बाद आया है. इस बातचीत के जर्मनी की विदेश मंत्री ने रूस को अलग-थलग करने के महत्व पर जोर दिया था.

अब भारत में जर्मनी के राजदूत वॉल्टर लिंडर ने द हिंदू से बातचीत में कहा है कि उन्हें अब भी भारत को लेकर उम्मीद है. विदेश मंत्रियों की बातचीत के संदर्भ में वॉल्टर लिंडर से पूछा गया कि जर्मनी की विदेश मंत्री ने भारतीय विदेश मंत्री से बात की है. क्या भारत यूक्रेन पर रूसी हमले के खिलाफ जर्मनी के साथ आने को तैयार है?
जवाब में राजदूत ने कहा, 'इस सवाल का जवाब भारतीय कूटनीतिज्ञ ज्यादा अच्छे तरीके से दे सकेंगे क्योंकि वो ही भारत की स्थिति को अच्छे तरीके से बता सकते हैं. लेकिन हमने फोन पर बातचीत से, हस्तक्षेप से, ये बात स्पष्ट कर दी है कि हम सब एक ही नाव में सवार हैं. हम सभी अंतराष्ट्रीय नियमों की वकालत करते हैं और क्षेत्रीय अखंडता के साथ संप्रभुता के उल्लंघन का विरोध करते हैं. भारत भी इन सिद्धांतों पर कायम रहता है.'
उन्होंने आगे कहा, 'हमने ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों ने भारतीय पक्ष से बात की है. निश्चित रूप से अब ये भारत पर है कि वो क्या फैसला लेता है. यूक्रेन भारत से बहुत दूर हो सकता है लेकिन अगर हम यूक्रेन में सभी पीड़ित लोगों के मानवाधिकार उल्लंघन को सहन करते हैं तो ये दुनिया में ये अन्याय कहीं भी हो सकता है, भारत में भी... अगर हम पुतिन को वो सब करने देंगे जो वो चाहते हैं, तो हम सबको उसका खामियाजा भुगतना होगा.'
भारत के रुख से निराश है जर्मनी?
भारत ने अब तक यू्क्रेन पर रूसी आक्रमण को लेकर निष्पक्ष रुख अपनाए रखा है. रूसी आक्रमण के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में दो बार वोटिंग हो चुकी है जहां भारत ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. सोमवार को यूनाइटेड नेशंस ह्यूमन राइट्स काउंसिल (UNHRC) में भी वोटिंग हुई और वहां भी भारत वोटिंग से बाहर रहा. भारत के साथ-साथ चीन और यूएई भी रूस पर अब तक हुई वोटिंग से बाहर रहे हैं.
जर्मन राजनयिक से जब ये पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि जर्मनी भारत के रुख में बदलाव को लेकर अपनी बात को ठीक ढंग से भारत से साथ रख नहीं पाया है और जर्मनी इससे निराश है तो उन्होंने जवाब दिया, 'अब भी वक्त है. अब भी भारत तक हम अपनी बात पहुंचा रहे हैं. अगर रूस को ये सब करने दिया गया तो इसका नुकसान सभी को होगा और हमें उम्मीद है कि भारत में इस पर बात हो रही है और भारत के रुख में कुछ बदलाव होगा, भारत अपने वोटिंग पैटर्न में कुछ बदलाव लाएगा.'
जर्मनी जहां एक तरफ रूसी हमले की आलोचना वाले प्रस्तावों पर रूस के खिलाफ वोटिंग करता आया है वहीं भारत ने संतुलित रुख अपनाए रखा है. कई देशों की तरह जर्मनी भी चाहता है कि भारत रूस के हमले की निंदा करे और उसके खिलाफ वोटिंग करे लेकिन भारत ने ऐसा कुछ नहीं किया है. इसे लेकर जर्मन राजदूत से सवाल किया गया कि क्या इससे भारत-जर्मनी के संबंधों पर क्या कोई प्रतिकूल असर पड़ेगा?
उन्होंने जवाब दिया, 'हम समझते हैं कि विश्वभर में शांति बनाए रखने की वकालत हर कोई करे. जो भी शांति को भंग करता है उसकी आलोचना सबको करनी चाहिए.'
हमला करने को लेकर रूस के तर्कों को राजनयिक ने बताया झूठा बहाना
जर्मन राजदूत से रूस की चिंता पर भी सवाल किया गया. दरअसल रूस पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन नेटो के विस्तार को खतरे के तौर पर देखता है. नेटो पिछले कुछ दशकों में रूस के करीबी देशों तक अपना विस्तार कर चुका है और अब यूक्रेन के नेटो में शामिल होने की बात भी हो रही है जिसे रूस किसी भी कीमत पर रोकना चाहता है.
नेटो और रूस की सुरक्षा चिंता के सवाल पर जर्मन राजदूत ने कहा, 'इसमें कुछ भी सच्चाई नहीं है, ये बस एक झूठा नैरेटिव बनाया गया है. अगर आप अपने पड़ोसी पर हमला करते हैं तो आपको जरूर ही इस तरह के नकली बहाने की जरूरत पड़ती है. ये तर्क झूठ हैं. ये किसी देश का अपना फैसला होता है कि वो नेटो में शामिल होना चाहता है या नहीं. यूक्रेन को नेटो का सदस्य बनाने के लिए तो इस तरह का कोई प्रस्ताव भी नहीं लाया गया था. ये यूरोप की शांति और आजादी पर हमला है.'
क्या पश्चिमी देश दोहरे मानदंड अपना रहे?
जर्मन राजदूत से ये भी पूछा गया कि पश्चिमी देशों को लेकर कहा जा रहा है कि उनके दोहरे मानदंड हैं क्योंकि जब साल 2003 में अमेरिका ने इराक पर हमला किया था तब इस तरह की आलोचना देखने को नहीं मिली थी.
जवाब में उन्होंने कहा, 'हमें लीबिया, इराक में हुई इस तरह की सभी कार्रवाइयों के तह तक जाना होगा और ये देखना होगा कि उनमें और अब के आक्रमण में कोई समानता भी है या नहीं. लेकिन आपको याद होगा कि इराक पर अमेरिकी आक्रमण के पक्ष में जर्मनी और फ्रांस नहीं थे क्योंकि हम अमेरिकी हमले के
तर्कों से आश्वस्त नहीं थे. यूक्रेन के मामले में इतना स्पष्ट है कि ये गलत है और अंतर्राष्ट्रीय कानून और मानवाधिकारों का उल्लंघन है.' 
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