मंगल पर तैयार होगा रॉकेट फ्यूल, जानिए कैसे होगा ईंधन का उत्पादन
मंगल पर तैयार होगा रॉकेट फ्यूल
मंगल ग्रह (Mars Planet) पर एस्ट्रोनोट्स हवा, पानी और सूरज की रोशनी का इस्तेमाल करके लाल ग्रह पर रॉकेट ईंधन (Rocket Fuel) तैयार कर सकेंगे. एक नई स्टडी में इसकी जानकारी दी गई है. इस नई टेक्नोलॉजी के जरिए एस्ट्रोनोट्स पृथ्वी पर आसानी से वापस लौट सकेंगे. वैज्ञानिकों ने कहा कि रॉकेट ईंधन को मंगल ग्रह पर तैयार करने से अरबों डॉलर की बचत होगी. साथ ही ये मंगल पर कई टन ऑक्सीजन पैदा भी करेगा.
NASA की वर्तमान योजना के तहत मंगल ग्रह से पृथ्वी पर आने वाले रॉकेट इंजन मीथेन और लिक्विड ऑक्सीजन के तहत चलने वाले हैं. हालांकि, इनमें से कोई भी ईंधन लाल ग्रह पर मौजूद नहीं है. ऐसे में इन ईंधनों को पृथ्वी से लेकर जाना पड़ेगा. मंगल ग्रह से एस्ट्रोनोट्स को पृथ्वी पर लॉन्च करने में मदद करने के लिए NASA को 30 से ज्यादा टन मीथेन और लिक्विड ऑक्सीजन की जरूरत होगी, जिसकी लागत लगभग 8 बिलियन अरब डॉलर होगी.
NASA ने मंगल ग्रह के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड से लिक्विड ऑक्सीजन का उत्पादन करने के लिए रासायनिक प्रतिक्रियाओं का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव दिया है. हालांकि, इसके लिए अभी भी मीथेन को पृथ्वी से मंगल ग्रह तक पहुंचाने की जरूरत है. लेकिन अब रिसर्चर्स ने एक जैविक रूप से प्रेरित विकल्प का सुझाव दिया है. इसके तहत मंगल ग्रह के संसाधनों से मीथेन और ऑक्सीजन दोनों का उत्पादन किया जा सकता है.
स्टडी के मुताबिक, इस विकल्प के जरिए मंगल पर मानव जीवन को सपोर्ट करने के लिए अतिरिक्त ऑक्सीजन पैदा किया जा सकता है. जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में सिंथेटिक बायोलॉजिस्ट और स्टडी के वरिष्ठ लेखक पामेला पेराल्टा-याह्या ने स्पेस डॉट कॉम को बताया, मंगल ग्रह पर रॉकेट प्रोपलेंट प्रोडक्शन के लिए सिटु यूटिलाइजेशन रणनीति में बायो-टेक्नोलॉजी बहुत दूर नहीं है.
नई टेक्नोलॉजी में मंगल पर दो सूक्ष्मजीव को भेजना शामिल होगा. पहला साइनोबैक्टीरिया होगा, जो मंगल ग्रह के वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड और मंगल ग्रह की बर्फ से लिए गए पानी के बाद प्रकाश संश्लेषण के जरिए शर्करा बनाने के लिए सूरज की रोशनी का इस्तेमाल करेगा. दूसरा जेनेटेकली मोडिफाइड ई. कोलाई बैक्टीरिया होगा, जो उन शर्करा को 2,3-ब्यूटेनडियोल नामक रॉकेट प्रोपलैंट ईंधन में बदलेगा. वर्तमान में इसका इस्तेमाल पृथ्वी पर रबर बनाने में मदद करने के लिए किया जाता है.
हालांकि 2,3-ब्यूटेनडियोल मीथेन की तुलना में एक कमजोर रॉकेट ईंधन है. मंगल ग्रह पर गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी पर महसूस किए जाने वाले गुरुत्वाकर्षण का केवल एक तिहाई है. पामेला पेराल्टा-याह्या ने कहा, मंगल ग्रह पर लिफ्ट-ऑफ के लिए आपको बहुत कम ऊर्जा की जरूरत होती है. जिससे हमें विभिन्न रसायनों पर विचार करने की सुविधा मिलती है. उन्होंने कहा, हमने ग्रह के कम गुरुत्वाकर्षण और ऑक्सीजन की कमी का लाभ उठाने के लिए लॉन्चिंग के लिए अलग-अलग तरीकों पर विचार किया है.