चीन के समर्थक माने जाने वाले सोगावारे ने दावा किया कि 2019 में उन्होंने सोलोमन की कूटनीतिक प्रतिबद्धता ताइवान के बदले चीन के साथ रखने का फैसला किया था, जिससे कई विदेशी ताकतें नाखुश हैं और वही इस हिंसा के पीछे हैं. ऑस्ट्रेलिया के सार्वजनिक समाचार चैनल एबीसी को उन्होंने बताया, "दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह हिंसा अन्य ताकतों द्वारा प्रायोजित है. मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता. हम जानते हैं कि वे कौन हैं." बहुत से लोगों ने इस हिंसा के लिए महामारी के असर से फैली आर्थिक हताशा को जिम्मेदार ठहराया है. कुछ लोग देश के सबसे अधिक आबादी वाले द्वीप मालाइता की एक अन्य केंद्रीय द्वीप ग्वादलकनाल से प्रतिद्वन्द्विता को भी हिंसा की वजह मान रहे हैं. सरकारी अमला ग्वादलकनाल द्वीप पर रहता है जबकि अधिकतर आबादी मालाइता में है. ऑस्ट्रेलिया की गृह मंत्री कैरन ऐंड्रयूज ने कहा कि उनकी तरफ से भेजे गए 100 सैनिक और पुलिस अफसरों का मकसद कानून-व्यवस्था को पुनर्स्थापित करना है. उन्होंने स्काई न्यूज को बताया, "वहां हालत काफी नाजुक है. अभी तो हम यही जानते हैं कि पिछले दो दिन से दंगे बहुत तेजी से भड़के हैं." ऐंड्रयूज ने स्पष्ट किया कि ऑस्ट्रेलियाई सुरक्षाबल एयरपोर्ट और बंदरगाहों जैसी अहम इमारतों की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे.
क्यों भड़की हिंसा लगभग सात लाख लोगों के देश सोलोमन में राजनीतिक और नस्लीय तनाव दशकों पुराना है. ताजा हिंसा तब भड़की जब बुधवार को बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए. उन्होंने संसद को घेर लिया और उसकी एक बाहरी इमारत को आग लगा दी. वे लोग प्रधानमंत्री सोगावारे के इस्तीफे की मांग कर रहे थे. इस प्रदर्शन के बाद लाठियां और अन्य हथियार लिए युवा सड़कों पर निकल गए और दंगा शुरू हो गया. उन्होंने बाजारों में लूटपाट की और पुलिस के साथ झड़पें हुईं. गुरुवार को लोगों ने लॉकडाउन के आदेशों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया और सरेआम लूटपाट शुरू कर दी. चीन ने भी सोलोमन द्वीप के हालात पर चिंता जताई है. वहां के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता जाओ लीजियान ने कहा कहा कि सोलोमन सरकार को चीनी नागरिकों और संस्थाओं की सुरक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाने चाहिए. तनाव का इतिहास 1990 के दशक में ग्वादलकनाल में कुछ उग्रवादियों ने वहां बसे मलाइता के लोगों पर हमले करने शुरू कर दिए थे जिसके बाद देश में गंभीर तनाव फैल गया जो करीब पांच साल तक रहा. यह तनाव तब कम हुआ ऑस्ट्रेलिया के नेतृत्व वाले शांति मिशन 'रीजनल असिस्टेंस मिशन' को तैनात किया गया. 2003 से यह शांति मिशन 2017 तक तैनात रहा.
मलाइता के लोग लगातार यह शिकायत करते रहे हैं कि केंद्र सरकार उनके द्वीप की अनदेखी करती है. सोगावारे के चीन के पक्ष में जाने से तनाव और बढ़ा है. मलाइता के नेता इस बात के खिलाफ हैं और वे अब भी ताइवान के अधिकारियों के साथ संपर्क बनाए हुए हैं. इसके चलते इस द्वीप को अब भी ताइवान और चीन से मदद मिलती है. प्रांत के मुख्यमंत्री डेनियल स्वीदानी ने प्रधानमंत्री सोगावारे पर 'बीजिंग की जेब में रहने' का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री ने सोलोमन के लोगों के हितों के विपरीत विदेशियों के हितों को तरजीह दी. लोग अंधे नहीं हैं और धोखाधड़ी को और ज्यादा सहन नहीं करेंगे." विशेषज्ञों का मानना है कि भू-राजनीतिक तनाव ताजा हिंसा की प्राथमिक वजह नहीं है लेकिन इसने अपना असर जरूर डाला है. ऑस्ट्रेलिया के लोवी इंस्टीट्यूट में प्रशांत मामलों की विशेषज्ञ मिहाई सोरा ने बताया, "किसी नेता के साथ इन विशाल ताकतों की गतिविधियां पहले से नाजुक हालात झेल रहे देश में अस्थिरता तो फैलाती हैं. लेकिन मौजूदा संदर्भ कोविड आपातकाल और महामारी के कारण हुई आर्थिक परेशानियां भी हैं. वीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स) देखेंः चीन-ताइवान झगड़े की जड़.