खुलासा : तीन हजार साल तक जीता है रेगिस्तानी पौधा वेलविचिया

रेगिस्तानी पौधे वेलविचिया को करीब 3-3 हजार वर्ष जीने की क्षमता सख्त मौसम की वजह से जीन में आए बदलाव से मिली।

Update: 2021-08-02 01:34 GMT

रेगिस्तानी पौधे वेलविचिया को करीब 3-3 हजार वर्ष जीने की क्षमता सख्त मौसम की वजह से जीन में आए बदलाव से मिली। यह दावा वैज्ञानिकों ने किया है। इनके अनुसार करीब 20 लाख वर्ष पूर्व इस पौधे की कोशिका विभाजन प्रक्रिया के दौरान सूखे वातावरण और लंबे समय तक चले अकाल ने जीन में लगभग अमरता लाने वाले बदलाव किए।

धरती पर सबसे लंबी उम्र जीने वाले पौधे के रूप में विख्यात वेलविचिया आमतौर पर दक्षिणी अंगोला और उत्तरी नामीबिया में पाया जाता है। यह सूखा व कठोर रेगिस्तानी क्षेत्र है।

वैज्ञानिकों के अनुसार आज भी 3,000 वर्ष से अधिक पुराने वेलविचिया पौधे यहां मौजूद हैं। अध्ययन में शामिल लंदन के क्वीन मैरी विश्वविद्यालय के पादप जीन विज्ञानी एंड्रयू लीच के अनुसार यह पौधा लगातार बढ़ता रहता है, यही इसके जीवन का उसूल है। 1859 में पादप विज्ञानी फ्रेडरिक वेलविच का ध्यान इसके अध्ययन की ओर आकर्षित हुआ था। फ्रेडरिक वेलविच से ही इसे अपना वैश्विक नाम मिला।

8.6 करोड़ वर्ष पहले शुरू हुई प्रक्रिया

इस अध्ययन को करने वाले एंड्रयू लीच और चीन के पादप विज्ञानी ताओ वान के अनुसार करीब 8.6 करोड़ वर्ष पूर्व वेलविचिया की कोशिका विभाजन प्रक्रिया में आई एक गड़बड़ी से इसकी शुरुआत हुई जिसमें इसके जीनोम दोगुने होने लगे। यह पौधा अत्यधिक विकट हालात में रह रहा था जहां जिनोम दोगुना करने का अर्थ ज्यादा अनुवांशिक तत्वों की जरूरत थी।

इसके लिए उसे ज्यादा ऊर्जा की भी जरूरत होती, जो इस वातावरण में मिलना मुश्किल था। इसी दौरान अनुपयोगी होते हुए भी कुछ डीएनए द्वारा खुद को कॉपी करने की प्रक्रिया रेट्रोट्रांसपोसंस का बोझ भी उस पर बना रहा। करीब 20 लाख वर्ष पूर्व यह प्रक्रिया विस्फोटक गति से बढ़ी। इसके पीछे अत्यधिक तापमान को माना जा रहा है।

पौधे ने रेट्रोट्रांसपोसंस रोकने की कोशिश की, जिसे डीएनए मिथाइलेशन प्रक्रिया कहा जाता है। लेकिन इससे जीन में कई परिवर्तन आने लगे। वे जीन विकसित हुए जिन्होंने कम ऊर्जा में भी अस्तित्व बनाए रखने में उसकी मदद करनी शुरू कर दी। और यही इसकी लंबी उम्र की वजह बने।

दो ही पत्तियां, इसलिए भी खास

वेलविचिया अनूठा पौधा है, जिसमें केवल दो ही पत्तियां आती हैं। यही सैकड़ों-हजारों वर्षों तक उसे जीवित रखती हैं। अफ्रकी इसे ट्वीब्लारकानीडूड यानी दो पत्तियां जो कभी नहीं मरती नाम से बुलाते है। वैज्ञानिकों के अनुसार पत्तियां इसके तने का भी काम करती हैं। इनमें ताजा कोशिकाओं का निर्माण होता है।

खेती में मदद करने वाली खोज

इन वैज्ञानिकों के अनुसार जिस तेजी से धरती का वातावरण गर्म हो रहा है, इस पौधे का उदाहरण हमें कुछ नई फसलें विकसित करने में मदद कर सकता है। जो न केवल विकट हालात को सहने में सक्षम हों बल्कि कम पानी और पोषक तत्वों में भी उत्पादन दें।


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