शोधकर्ताओं ने दी सलाह- समयपूर्व जन्मे बच्चों का स्क्रीन पर अधिक समय बिताना नुकसानदेह

शोधकर्ताओं ने दी सलाह

Update: 2021-07-19 15:08 GMT

मोबाइल, कंप्यूटर, टैबलेट आदि पर अधिक समय बिताना किसी के लिए भी अच्छा नहीं है। इससे न केवल आंखों, बल्कि मस्तिष्क को भी कई समस्याओं से जूझना पड़ सकता है। इस दिशा में किया गया एक नवीन अध्ययन समयपूर्व जन्मे बच्चों का स्क्रीन पर अधिक समय बिताने से उन्हें होने वाली समस्याओं के बीच संबंध बताता है।


शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि छह से सात वर्ष की आयु के वे बच्चे, जिनका जन्म साढ़े सात माह या उससे पहले ही हो गया हो, वे यदि दिन में दो घंटे से अधिक समय कंप्यूटर, टेलीविजन आदि पर बिताते हैं तो उनके आइक्यू, एकाग्रता, कामकाज के तरीके आदि प्रभावित होते हैं। साथ ही उन्हें अपने आवेश पर भी नियंत्रण नहीं रहता।

जामा पीडीएट्रिक्स नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि जिन बच्चों के कंप्यूटर, टेलीविजन आदि था, उनमें अपने आवेग को नियंत्रित करने में समस्या देखी गई और उनमें एकाग्रता की भी कमी पाई गई। अध्ययन में सामने आया कि समयपूर्व जन्मे बच्चों द्वारा ज्यादा समय स्क्रीन पर बिताने से उनमें व्यवहार के अलावा ज्ञान संबंधी समस्याएं भी बढ़ सकती हैं।


यह अध्ययन बेट्टी आर. वोहर और उनके सहयोगियों द्वारा किया गया। पूर्व के अध्ययनों में सामने आ चुका है कि स्क्रीन पर अधिक समय बिताने का संबंध बच्चों के विकास, व्यवहार व अन्य प्रकार की समस्याओं से होता है। हालांकि, पूर्व के अध्ययनों को सामान्य बच्चों पर किया गया, लेकिन यह नवीन अध्ययन समयपूर्व जन्मे बच्चों को लेकर किया गया है। इस नवीन अध्ययन में गर्भावस्था में 28 सप्ताह या उससे पूर्व जन्मे 414 बच्चों के डाटा का विश्लेषण किया गया। इनमें से 238 बच्चे दो घंटे से ज्यादा समय स्क्रीन पर बिताते थे, जबकि 266 बच्चों के बेडरूम में टेलीविजन या कंप्यूटर लगा हुआ था।

यह आया सामने

जब इन बच्चों के डाटा की तुलना की गई तो पता चला कि वैश्विक स्तर पर क्रियाकलाप का जो मापदंड तय है उसकी तुलना में इन बच्चों का औसत स्कोर आठ प्वाइंट से कम आया, जो आवेश के मामले में करीब 0.8 होता है। साथ ही एकाग्रता की कमी के मामले में यह स्कोर तीन प्वाइंट अधिक आया। सरल शब्दों में कहें तो अध्ययन में स्पष्ट दिखा कि समयपूर्व जन्मे और स्क्रीन पर अधिक समय बिताने वाले बच्चों का अपने आवेश पर नियंत्रण नहीं होता है। यानी वे अधिक आक्रामक होते हैं। वहीं, उनकी एकाग्रता भी दूसरे बच्चों की तुलना में काफी कम होती है। इस अध्ययन के आधार पर शोधकर्ताओं ने सलाह दी है कि बच्चों को सीमित समय ही स्क्रीन पर बिताना चाहिए। इसमें माता-पिता की भूमिका अहम होती है।
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