राष्ट्रपति अशरफ गनी: अफगानिस्तान को अगले चार सालों तक अंतर्राष्ट्रीय मदद

संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में दो दिन के अफगान शांति सम्मेलन की शुरुआत सोमवार को हुई।

Update: 2020-11-24 11:33 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में दो दिन के अफगान शांति सम्मेलन की शुरुआत सोमवार को हुई। इसके उद्घाटन सत्र को संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने संबोधित किया। आज पूरा हो रहे इस सम्मेलन में अफगानिस्तान के लिए अगले चार साल तक अंतरराष्ट्रीय सहायता जारी रखने पर सहमति बनी है।

लेकिन काबुल में इस सम्मेलन से ज्यादा चर्चा पाकिस्तानी मीडिया में आई इन खबरों की है कि अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन की टीम ने अफगानिस्तान की स्थिति को लेकर संबंधित अधिकारियों से संपर्क किया गया है। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक बाइडन शांति समझौते को उस रूप में आगे बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं, जैसा डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के समय तय किया गया है।

बाइडन तालिबान से और ज्यादा रियायतें लेने के पक्ष में हैं। पाकिस्तान में चर्चा है कि इस वजह से बाइडन के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद पाकिस्तान सरकार पर दबाव बढ़ेगा। आम धारणा यही है कि तालिबान के सूत्र पाकिस्तानी एजेंसियों के हाथ में हैं।

बताया जाता है कि पाकिस्तानी अधिकारियों ने बाइडेन की टीम को अफगान शांति प्रक्रिया के बारे में अपनी समझ बताई है। उन्होंने इस बारे में भी अपनी राय बताई है कि अब आगे कैसे बढ़ा जा सकता है। बाइडन की टीम की तरफ से यह साफ संकेत दिया गया कि इस साल 29 फरवरी को अमेरिका और तालिबान के बीच जो समझौता हुआ था, बाइडन उसे उसी रूप में आगे नहीं बढ़ाएंगे। इसके बदले वे इस समझौते की समीक्षा करेंगे। इसका यह मतलब हो सकता है कि वे तालिबान के ऊपर नई शर्तें लगाएं। इसके अलावा वे जल्दबाजी में अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी नहीं करेंगे। बल्कि शांति कायम होने के साथ क्रमिक रूप से वे इस दिशा मे कदम बढ़ाएंगे।

जानकारों का कहना है कि सेना वापसी के पहले बाइडन प्रशासन अफगानिस्तान में पूरे युद्धविराम पर जोर देगा। साथ ही वह तालिबान से इस बात का आश्वासन मांगेगा कि वहां सबके मानवाधिकारों की रक्षा की जाएगी। डेमोक्रेटिक पार्टी की विदेश नीति में मानव अधिकार और लोकतंत्र हमेशा अहम रहे हैं। अफगानिस्तान के मामले में भी बाइडन प्रशासन इसी के अनुरूप आगे बढ़ना चाहेगा। इसके लिए तालिबान राजी हो, इस मकसद से वह पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा सकता है।

पूरे युद्धविराम की मांग ट्रंप प्रशासन और अफगानिस्तान सरकार की भी रही है। लेकिन तालिबान इस शर्त को मानने से इनकार करता रहा है। उसकी दलील है कि युद्धविराम समग्र समझौते का ही हिस्सा हो सकता है और इसे अलग-अलग अफगान गुटों में बातचीत करके ही हासिल किया जा सकता है। अलग- अलग अफगान गुटों से बातचीत की दिशा में अभी कोई प्रगति नहीं हुई है। तालिबान का कहना है कि ये बातचीत कैसे हो, इसके नियम पर ही अभी सहमति नहीं बनी है।

इस बीच ट्रंप प्रशासन ने 15 जनवरी तक अफगानिस्तान से अपने 2000 सैनिकों को वापस बुलाने का एलान कर दिया है। खबरों के मुताबिक अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सरकारें इसके पक्ष में नहीं हैं। वे चाहती हैं कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी तय कार्यक्रम के मुताबिक व्यवस्थित ढंग से हो। बाइडन प्रशासन सैनिकों की ये वापसी होने के बाद सत्ता संभालेगा। उसके बाद उसकी क्या कार्य योजना होगी, इसको लेकर अभी अफगानिस्तान, पाकिस्तान और सभी संबंधित हलकों में कयास लगाए जा रहे हैं।


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