1945 में अमेरिका ने क्यों गिराया था जापान में दूसरा परमाणु बम?

द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका ने एक बहुत ही बड़ा कदम उठाया था जिस पर आज भी सवाल उठाए जाते हैं

Update: 2021-08-09 10:33 GMT

द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका ने एक बहुत ही बड़ा कदम उठाया था जिस पर आज भी सवाल उठाए जाते हैं, लेकिन उस वक्त के हालात ही कुछ ऐसे थे. 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान (Japan) के हिरोशिमा पर पहला परमाणु बम (Atomic Bomb) गिराया और उसके तीन दिन बाद, 9 अगस्त को नागासाकी (Nagasaki) पर दूसरा परमाणु बम भी गिराया. इनके बाद जापान ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया था. लेकिन आज भी बहुत से लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या अमेरिका के लिए दूसरा परमाणु बम गिराना वाकई जरूरी था.

युद्ध की समाप्ति थी नजदीक
इन बमों को गिराने का नतीजा यह हुआ था कि इसमें लाखों लोग तुरंत मारे गए थे और बाद में उससे भी ज्यादा उस बम के कारण हुए विकिरणों से मरे. इस बम के बाद एशिया में द्वितीय युद्ध औपचारिक तौर पर खत्म हो गया था. इससे पहले यूरोप में तीन महीने पहले ही यह युद्ध खत्म हो चुका था और इसके एक महीने पहले से ही जापानी सेनाओं ने कई जगहों से पीछे हटना शुरू भी कर दिया था
पहला बम हिरोशिमा पर
जापान के खिलाफ यह एक निर्णायक कदम माना जाता है. लेकिन इस पर भी काफी विवाद है. पहले 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा में अमेरिका के बी29 बॉम्बर एनोला गे से लिटिल बॉय नाम का परमाणु बम गिराया था जिसमें 20 हजार टन के टीएनटी से भी अधिक बल था, जिससे 80 हजार लोग मारे गए थे और इतने ही घायल हुए थे.
तीन दिन बाद एक और बम
इसके तीन दिन बाद ही बी29 बॉम्बर बोकस्कारने एक हजार पाउंड का एक प्लूटोनिक परमाणु बम, जिससे फैट मैन कहा जाता है, नागासाकी के ऊपर सुबह 11 बजे गिराया जिसमें 40 हजार लोग मारे गए. लेकिन हैरानी की बात यह है कि नागासाकी इस हमले का मूल लक्ष्य नहीं था. इसे कोकुरा पर गिराया जाना था जो जापान के एक खास सैन्य ठिकाना था, लेकिन वहां बादल होने के लिए कारण दूसरे लक्ष्य नागासाकी पर बम गिराया गया.
चेतावनी दी थी, पर पूरी तैयारी के साथ
उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रयूमैन ने जापान को चेताया था कि अगर जापान ने समर्पण नहीं किया तो अमेरिका जापान के किसी भी शहर को पूरी तरह से नेस्तोनाबूद करने के लिए तैयार है. अगर जापान ने उनकी शर्तों को नहीं माना तो वे हवा में बर्बादी की बारिश देखने के लिए तैयार रहे. उन हालातों में जापान ने कोई समझौता नहीं किया. 9 अगस्त को नागासाकी पर परमाणु बम गिरा दिए. इसके बाद 15 अगस्त को जापान ने बिना शर्त समर्पण कर दिया.
एक नहीं कई कारण थे
इस मामले कुछ और मत भी हैं जो अमेरिका के जापान पर परमाणु बम गिराने का अलग कारण बताते हैं. इतिहासकार गार एलपरोजित्ज ने 1965 में अपने किताब में दलील दी है कि जापान तो उस समय हार ही रहा था, लेकिन अमेरिका युद्ध के बाद सोवियत संघ से शक्ति के मामले में आगे निकलना चाहता था. इसीलिए उनसे यह एक तरह का 'शक्ति प्रदर्शन' किया. यह भी कहा जाता है कि यह मत उस समय सोवियत संघ ने प्रचलित किया था.
केवल प्रयोग के लिए
परमाणु बम, बल्कि दोनों ही बमों के उपयोग के लिए यूं तो केवल उस समय के हालात को जिम्मेदार ठहराया गया था जिसमें अमेरिकी नागरिकों को लंबे खिचने वाले युद्ध से बाने की दलील प्रमुखता से दी गई थी. कई इतिहासकार मानते हैं कि ये दोनों ही बम अमेरिका के लिए युद्ध का कदम कम और प्रयोग ज्यादा थे. यहां तक कहा जाता है कि वैज्ञानिक इन परमाणु बम के व्यावहारिक असर को देखना चाहते थे.
पाकिस्तान में क्यों बढ़ रहा है तालिबान के लिए सपोर्ट
यह विवाद का विषय इसलिए भी बना कि कई अमेरिकी सैन्य अधिकारियों ने बाद में इस बात को खुलेआम स्वीकार किया कि परमाणु बम गिराए बिना भी युद्ध खत्म किया जा सकता था जिसकी काफी उम्मीद भी थी. यहां तक इतना भी कहा गया कि परमाणु बम को गिराने का युद्ध से कोई लेना देना नहीं था. लेकिन बम गिराने के पक्षधर यही दलील देते हैं कि हालात ने ऐसा फैसला लेने पर मजबूर किया जो बहुत ही भारी मन से लिया गया था.


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