हवा में घुला जहर: WHO के अनुसार फॉसिल फ्यूल है वजह, 74 देशों के 3976 शहरों से मिला डेटा

मतलब अब दुनिया के 6 हजार शहरों को पता है कि उनके शहर की हवा में जहर की मात्रा कितनी है लेकिन उसे सुधारने के लिए वो कुछ कर नहीं पाए.

Update: 2022-04-04 16:09 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने सोमवार 4 अप्रैल को जो डाटा जारी किया है उसके मुताबिक दुनिया में एयर क्वालिटी की मॉनिटरिंग तो पिछले 10 सालों में 6 गुना बढ़ी है. कई देशों ने एयर क्वालिटी (air quality) की निगरानी करने पर काम किया है और मॉनिटरिंग स्टेशन लगाए हैं. लेकिन इससे एयर पॉल्यूशन कम नहीं हुआ. मतलब अब दुनिया के 6 हजार शहरों को पता है कि उनके शहर की हवा में जहर की मात्रा कितनी है लेकिन उसे सुधारने के लिए वो कुछ कर नहीं पाए.

कैसे लगेगी जहरीली हवा पर लगाम?
WHO के अनुसार फॉसिल फ्यूल (fossil fuel) पर लगाम लगाने की जरूरत है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायु प्रदूषण पर अब तक का सबसे बड़ा डाटा जारी किया है. WHO के मुताबिक हर साल प्रदूषण से 70 लाख लोगों की जान चली जाती है. इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए WHO ने सभी देशों से पीएम 10 और पीएम 2.5 यानी Particulate matter यानी हवा में मौजूद धूल के कणों का डाटा मांगा था. नाइट्रोजन डाईऑक्साइड (Nitrogen Dioxide) का स्तर 2017 के डाटा के आधार पर नापा गया है.
ये जहरीली गैस है वजह
पहली बार ये आंका गया है कि नाइट्रोजन डाईऑक्साइड (NO2) का औसत स्तर जमीन पर कितना रहा है. आमतौर पर इनडोर एयर pollution में इस गैस की मात्रा ज्यादा होती है. नाइट्रोजन डाईऑक्साइड (NO2) शहरों की प्रदूषित हवा में बहुत ज्यादा मौजूद रहती है. ये जहरीली गैस ही PM 10 और PM 2.5 के बढ़ने का एक बड़ा कारण बनती है और इसी की वजह से पर्यावरण में मौजूद ओजोन की परत भी कमजोर पड़ रही है.
जहरीली हवा से होती हैं ये बीमारियां
नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैस कोयला, तेल, डीजल और दूसरी गैसों के तेज तापमान पर जलने की वजह से बनती है. नाइट्रोजन डाईऑक्साइड (NO2) के ज्यादा बनने से फेफड़ों में सूजन होती है. सांस की नलियां सूज जाती हैं. खांसी और अस्थमा की समस्या बढ़ सकती है और फेफड़ों के काम करने की क्षमता कम हो जाती है. इसी तरह से पार्टिकुलेट मैटर यानी हवा में मौजूद धूल के कणों से भी बहुत नुकसान होता है. गाड़ियों का धुंआ, पावर प्लांट, खेती से निकलने वाला वेस्ट, इंडस्ट्री से निकलने वाला धुंआ – ये सब मिलकर किसी भी शहर की हवा को जहर बनाने का काम करते हैं. इसी को आप PM 10 और pm 2.5 के नाम से जानते हैं. धूल के ये कण इतने बारीक होते हैं कि फेफड़ों में और यहां तक कि खून में भी घुल जाते हैं. इन कणों के शरीर में जमा होने से दिल की बीमारियां, ब्रेन स्ट्रो और सांस की गंभीर बीमारियां होती हैं.
117 शहरों से लिया डेटा
WHO ने ये डाटा 117 देशों के 6743 शहरों से लिया है. इन शहरों की कुल आबादी के अनुसार नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का डाटा 74 देशों के 3976 शहरों से मिल पाया है. हालांकि सबसे ज्यादा डाटा एकत्र करने वाले देश चीन, भारत, उत्तरी अमेरिका और यूरोप हैं. सबसे कम पीएम यूरोप में पाया गया जबकि सबसे कम नाइट्रोजन डाईऑक्साइड (NO2) अमेरिका में पाया गया. इस डेटा को ठीक से समझाने के लिए WHO ने इस मैप के जरिए सबसे ज्यादा जहरीली हवा वाले स्थानों पर लाल निशान लगाया है. देखिए ये मैप...
दिल्ली में है खतरनाक हवा
2018 से 2022 के बीच जब उन महानगरों की तुलना की गई जहां प्रदूषण का स्तर ज्यादा है तो ये पाया गया कि केवल दिल्ली की एयर क्वालिटी में थोड़ा सुधार हुआ है. हालांकि दिल्ली, बीजिंग और ढाका इन सभी शहरों में बेहद खतरनाक स्तर का वायु प्रदूषण है. इन शहरों में नाइट्रोजन का स्तर भी बहुत ज्यादा है. जिन शहरों का डाटा WHO ने आंका है उनकी केवल 10 प्रतिशत आबादी ऐसी है जहां प्रदूषण के मामले में वार्षिक औसत के हिसाब से हवा ठीक रही. केवल 23 प्रतिशत आबादी को बिना नाइट्रोजन डाईऑक्साइड वाली हवा में सांस लेना नसीब हुआ. दक्षिण एशिया के 398 शहरों का डाटा जांचा गया है, जिसमें लगभग हर शहर में PM 10 का स्तर तय मानकों से 10 गुना ज्यादा पाया गया.
दक्षिण एशिया है सबसे आगे
दक्षिण एशिया के देशों में सबसे ज्यादा प्रदूषण है, ये है प्रदूषण का औसत स्तर
PM 10 - 92.0
PM 2.5 - 59.0
नाइट्रोजन - 27.3
कैसे नापें कि कितनी शुद्ध है हवा?
WHO की 2021 की एयर क्वालिटी गाइडलाइंस के हिसाब से ये है साफ और शुद्ध हवा के मानक ये हैं-
1. PM 2.5 – 24 घंटे का औसत 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक ना हो.
2. साल का औसत 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक ना हो.
3. PM10 – 24 घंटे का औसत 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक ना हो.
4. एक वर्ष का औसत 45 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक ना हो.
5. NO2 – नाइट्रोजन डाइऑक्साइड 24 घंटे का औसत 25 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक ना हो.
6. एक वर्ष का औसत 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक ना हो
अगर आपके शहर में प्रदूषित कणों और गैसों का स्तर इतना या इससे कम रहता है तभी उस शहर की हवा को साफ माना जा सकता है.


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