UV Light से गलेगा प्लास्टिक का कचरा, पॉलीमर्स को मात्र 6 घंटो में 40% तक गलाना हुआ संभव

डॉ एंटोनी के अनुसार प्लास्टिक उद्योग द्वारा इस तकनीक का इस्तेमाल बहुत कारगर साबित हो सकता है.'

Update: 2022-05-28 02:06 GMT

हमारे रोजाना के जीवन में प्लास्टिक का उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है. इससे होने वाले प्रदूषण से हम सभी वाकिफ हैं लेकिन फिर भी इसका इस्तेमाल को रोकना फिलहाल तो संभव नहीं है. प्लास्टिक को बायोडिग्रेडेबल बनाने के लिए दुनियाभर में कई प्रयोग जारी हैं. कई ऐसे प्लास्टिक हैं जिन्हें खाद बनाने के लिए कुछ औद्योगिक परिस्थितियों की जरूरत होती है जो कि हमेशा संभव नहीं है. ऐसे में बाथ विश्वविद्यालय की नई खोज ने केवल यूवी प्रकाश का उपयोग करके प्लास्टिक को गलाने का एक आसान तरीका खोज लिया है.

क्या है बाथ विश्वविद्यालय की नई रिसर्च में?
बाथ विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर सस्टेनेबल एंड सर्कुलर टेक्नोलॉजीज (CSCT) के वैज्ञानिकों का दावा है कि ऐसे छोटे कण जो धरती से कभी खत्म नहीं हो पाते हैं. उन्हें भी पूरी तरह से UV किरणों के माध्यम से खत्म किया जा सकता है. वैज्ञानिकों की टीम ने अपने शोध के दौरान पाया कि वे चुटकी भर चीनी की मदद से अलग-अलग मोलेक्युल्स से प्लास्टिक की डिग्रेडिबिलिटी को कम कर सकते हैं. कम से कम 3 प्रतिशत चीनी के पॉलीमर की अलग इकाइयों को अगर PLA Polymers (Polylactic Acid) के साथ मिला कर UV की रोशनी के संपर्क में लाएं तो 6 घंटे के भीतर इन पॉलीमर्स को 40% तक गलाया जा सकता है.
कितना प्लास्टिक जमा है धरती पर?
दुनिया में पहला सिंथेटिक प्लास्टिक 'बैकेलाइट' 1907 में बनाया गया था. इस आविष्कार को शुरुआती दौर में ज्यादा पहचान नहीं मिली. लेकिन सस्ती कीमत और मजबूती की वजह से दुनियाभर में 1950 के बाद के 65 सालों में प्लास्टिक का सालाना उत्पादन 2015 तक 200 गुना बढ़कर 381 मिलियन टन हो गया. आकड़ों के मुताबिक धरती पर 2021 तक दुनिया में लगभग 8.3 बिलियन टन प्लास्टिक जमा हो गया है. इसमें से 6.3 बिलियन टन यानी 80 फीसदी कचरा है.
हमारे शरीर में घुल रहा है प्लास्टिक
प्लास्टिक हमारी प्लेट से ले कर हमारी सांसों तक पहुंच गया है. Dalberg और University of Newcastle in Australia की 2019 में जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक एक आदमी हर हफ्ते औसतन एक Lego brick (बच्चों के खेलने में इस्तेमाल लाए जाने वाली ब्रिक) के बराबर प्लास्टिक अपने शरीर के अंदर डाल लेता है. हर साल एक इंसान औसतन प्लास्टिक के 100,000 छोटे टुकड़े किसी न किसी माध्यम निगल लेता है. इतना ही नहीं प्लास्टिक पॉलीमर्स हमारे खून तक में घुल चुके हैं.
बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का सच
हाल ही में चीनी में फेरमेंटशन से लैक्टिक एसिड का उपयोग करके बनाया गया पीएलए (पॉलीलैक्टिक एसिड) अब व्यापक रूप से कच्चे तेल उत्पादों से प्राप्त प्लास्टिक को गलाने के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है. कप टी-बैग्स से लेकर 3D प्रिंटिंग और पैकेजिंग तक में इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक के लिए ये तकनीक उपयोगी साबित हुई है. लेकिन अभी भी विज्ञान में कोई ऐसी तकनीक नहीं खोज सका था जिससे प्लास्टिक को पूरी तरह से नष्ट कर पाए. जिस प्लास्टिक को हम अक्सर बायोडिग्रेडेबल कहते हैं वो प्राकृतिक वातावरण में घुल जाता है पर पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाता.
उदाहरण के तौर पर कोई भी पॉलीमर मिट्टी या समुद्री जल या ज्यादा तापमान में नष्ट तो हो जाती है पर इसके छोटे कण मिट्टी में या पानी में मिलकर भी पूरी तरह से खत्म नहीं होते.
नई तकनीक करेगी प्लास्टिक का कचरा कम
रासायनिक वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि आने वाले समय में प्लास्टिक उद्योग को प्लास्टिक कचरे को और ज्यादा सड़ने योग्य बनाने में मदद करने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल बहुत कारगर साबित होगा. रॉयल सोसाइटी यूनिवर्सिटी रिसर्च फेलो, डॉ. एंटोनी बुचार्ड का मानना है, 'प्राकृतिक वातावरण प्लास्टिक को और अधिक बायोडिग्रेडेबल बना सकता है. डॉ एंटोनी के अनुसार प्लास्टिक उद्योग द्वारा इस तकनीक का इस्तेमाल बहुत कारगर साबित हो सकता है.'


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