नई दिल्ली: श्रीलंका में रानिल विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति चुने जाने के बाद सरकार विरोधी प्रदर्शन और तेज हो गए हैं. बुधवार को प्रदर्शनकारी वापस कोलंबो लौट आए और उन्होंने राष्ट्रपति सचिवालय पर डेरा डाल दिया. वहीं देश को नया राष्ट्रपति मिलने के बाद श्रीलंकाई सुरक्षा बलों ने शुक्रवार को प्रदर्शनकारियों को राष्ट्रपति सचिवालय से हटा दिया.
श्रीलंका में प्रदर्शन कर रहे लोगों ने रानिल विक्रमसिंघे को नए राष्ट्रपति के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया. उन्होंने विक्रमसिंघे को देश के अभूतपूर्व आर्थिक और राजनीतिक संकट के लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार ठहराया. प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के आवास और पीएमओ को 9 जुलाई को खाली कर दिया था. वे अभी भी गॉल फेस में राष्ट्रपति सचिवालय के कुछ कमरों पर कब्जा किए हुए थे. पुलिस और स्पेशल टास्क फोर्स के जवानों ने शुक्रवार को उन्हें बाहर जाने के लिए मजबूर किया, जब उनमें से 100 से कम प्रदर्शनकारी मौजूद थे.
पुलिस ने बताया कि गॉल फेस में तनावपूर्ण हालात के दौरान कम से कम नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया और कई प्रदर्शनकारी इस दौरान घायल हो गए. सुरक्षा बलों ने इस दौरान प्रदर्शनकारियों को राष्ट्रपति सचिवालय के पास से हटा दिया. पुलिस ने तीन सशस्त्र बलों और एसटीएफ की मदद से राष्ट्रपति सचिवालय कार्यालय, इसके मुख्य प्रवेश द्वार में कार्यालय के आसपास रह रहे प्रदर्शनकारियों को बाहर निकाला.
बीते सप्ताह सोशल मीडिया पर प्रदर्शनकारियों की ओर से पोस्ट किया गया कि वे 22 जुलाई को दोपहर दो बजे तक अपना विरोध खत्म करने की योजना बना रहे थे. उसमें लिखा गया था कि हमें संविधान का सम्मान करना चाहिए और इस आंदोलन को रोकना चाहिए. उनकी ओर से कहा गया कि वे विक्रमसिंघे के इस्तीफा देने तक अपना संघर्ष जारी रखेंगे.
गुरुवार को श्रीलंका के आठवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने वाले विक्रमसिंघे ने कल रात कहा कि सरकारी भवनों पर कब्जा अवैध था. उन्होंने चेतावनी दी कि कब्जा करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी. नए राष्ट्रपति ने कहा कि वह शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को समर्थन देंगे, लेकिन उन लोगों पर सख्त होंगे जो शांतिपूर्ण विरोध की आड़ में हिंसा को बढ़ावा देने की कोशिश करते हैं.
श्रीलंका की 225 सदस्यों वाली संसद में रानिल विक्रमसिंघे के पक्ष में 134 वोट पड़े. वहीं उनके विरोधी दुल्लास अलहप्परुमा को 82, वामपंथी नेता अनुरा कुमार दिसनायके को मात्र 3 वोट मिले.
श्रीलंका में संकट की शुरुआत विदेशी कर्ज के बोझ के कारण हुई. कर्ज की किस्तें चुकाते-चुकाते श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त होने की कगार पर पहुंच गया. हालात ऐसे हो गए कि श्रीलंका में डीजल-पेट्रोल और खाने-पीने की चीजों की कमी हो गई. जरूरी दवाएं खत्म हो गईं. सरकार को पेट्रोल पंपों पर सेना तैनात करने की जरूरत पड़ गई. कोरोना महामारी के कारण पर्यटन के प्रभावित होने और ऑर्गेनिक फार्मिंग को लेकर सरकार के अदूरदर्शी फैसलों ने संकट को विकराल बनाने में योगदान दिया.