पेंगुइन बनी वैज्ञानिकों के शोध का हिस्सा, इस खास प्रजाति से मिलेगी हेल्प
इस नुकसान के लिए जलवायु परिवर्तन कारण था.
अंटार्कटिकाः कहा जाता है कि जीव-जंतुओं को दुनिया में होने वाली प्राकृतिक घटनाओं का अहसास पहले ही हो जाता है. अब वैज्ञानिक इनकी इसी खूबियों का का इस्तेमाल शोध के लिए करना चाह रहे हैं. दक्षिणी ध्रुव में जलवायु परिवर्तन पर शोध कर रहे वैज्ञानिक अब पेंगुइन को इस्तेमाल यहां हो रहे जलवायु परिवर्तन के लिए संकेतक के तौर पर कर रहे हैं.
पेंगुइन को ट्रैक करना होता है आसान
पेंगुइन पृथ्वी में बर्फ से जमे हुए दक्षिण ध्रुव के प्रतीक चिह्न के तौर पर पहचाने जाते हैं. शोध में पता चला है कि कुछ पश्चिमी क्षेत्रों जैसे कि अंटार्कटिक प्रायद्वीप में तेजी से गर्मी बढ़ रही है. जबकि, पूर्वी अंटार्कटिका हमेशा ठंडा और बर्फ से ढका रहता है. अंटार्कटिका के सुदूर और बर्फीले इलाकों में कुछ भी आसान नहीं है. ऐसे में पेंगुइन के जरिए यहां शोध में मदद मिल सकती है. पेंगुइन को अन्य प्रजातियों की तुलना में ट्रैक करना आसान है, क्योंकि वे जमीन पर घोंसला बनाते हैं और उनके काले पंख और कमर को सफेद बर्फ में आसानी से देखा जा सकता है.
बायोइंडिकेटर के रूप में इस्तेमाल
न्यूयॉर्क के स्टोनी ब्रुक यूनिवर्सिटी के बोरोविज़ ने कहा कि हम यह समझने के लिए पेंगुइन के घोंसलों की गिनती कर रहे हैं कि वहां कितने पेंगुइन हैं. ये हर साल कितने चूजे पैदा करते हैं और क्या इनकी संख्या वहां के पर्यावरण की परिस्थितियों की वजह से बढ़ रही है या घट रही है. स्टोनी ब्रुक के वेथिंगटन ने कहा कि हम पेंगुइन को वहां के पारिस्थितकी तंत्र को समझने के लिए बायोइंडिकेटर के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. अलग-अलग पेंगुइनों की गिनती के लिए सेटेलाइट तस्वीरों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इनसे पता चला कि कुछ पेंगुइन 'विजेता' होती हैं, जो जलवायु परिवर्तन के बावजूद नए घर बनाती हैं. जबकि, कुछ अधिक ठंडे इलाके में जाने को मजबूर हैं.
अंटार्कटिक में तेजी से बदल रहा मौसम
जेंटू पेंगुइन की चमकीली नारंगी चोंच होती है और इसके सिर पर खास सफेद निशान होता है. ये बर्फीले खुले पानी को पसंद करती है. 20वीं शताब्दी के मध्य में अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर तापमान दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ने लगा, जिससे जेंटू की आबादी दक्षिण की तरफ चले गई, जिसे अंटार्कटिका के "जेंटोफिकेशन" के रूप में जाना जाता है. प्रायद्वीप के पश्चिमी छोर पर समुद्री बर्फ की कमी ने जेंटू को फलने-फूलने में सक्षम बनाया है. वहीं, प्रजनन और खाने के लिए समुद्री बर्फ पर निर्भर रहने वाले एडेलीज पेंगुइन को इन पस्थितियों ने और खराब स्थिति में पहुंचा दिया.
बर्फ कम होने पर पेंगुइन की आबादी में गिरावट
वेथिंगटन ने कहा कि एडेली पेंगुइन के बारे में आम तौर पर जाना जाता है कि ये समुद्री बर्फ पास रहते हैं. जब भी समुद्री बर्फ को कम होते देखा गया, तब एडली पेंगुइन की आबादी में काफी गिरावट आई है. कुल मिलाकर एडेली पेंगुइन की आबादी बढ़ रही है, लेकिन कुछ की आबादी में 65 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है. इसको लेकर स्टोनी ब्रुक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने जनवरी में इस क्षेत्र में एक अभियान चलाया और पाया कि पिछले एक दशक में अभी भी बर्फीले वेडेल सागर के आसपास एडेली की कॉलोनियां स्थिर बनी हुई हैं. उनके लिए यह प्रायद्वीप शायद एक सुरक्षित स्थान है.
सेलेलाइट तस्वीरों का इस्तेमाल
एमवी आर्कटिक सनराइज अभियान के लीडर हीदर लिंच का मानना है कि ये निष्कर्ष बताते हैं कि क्षेत्र को रिजर्व रखने की जरूरत है. सेटेलाइट तस्वीरों का इस्तेमाल करते हुए ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे की एक टीम ने 2020 में 11 नए एंपरर पेंगुइन कॉलोनियों की खोज की, इससे पता चला कि पहले से बनी हुई कॉलोनियों में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. वेडेल सागर के सबसे पूर्वी हिस्से में हैली बे कॉलोनी दुनिया में एंपरर पेंगुइन की दूसरी सबसे बड़ी प्रजनन कॉलोनी का घर है, जिसमें हर साल लगभग 25 हजार जोड़े प्रजनन के लिए इकट्ठा होते हैं.
अल नीनो से पड़ा फर्क
शोधकर्ताओं का मानना है कि 2016 में हुई अल नीनो घटना ने क्षेत्र में समुद्री बर्फ इलाके को बदल दिया है. इससे पेंगुइन की प्रजाति खतरे में हैं, क्योंकि जलवायु परिवर्तन से अल नीनो का प्रभाव और बढ़ जाता है. चूजों की मौत का जलवायु परिवर्तन से सीधा संबंध नहीं होने के बावजूद ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के भौगोलिक सूचना वैज्ञानिक पीटर फ्रेटवेल ने कहा कि इस नुकसान के लिए जलवायु परिवर्तन कारण था.