पाकिस्तान की शरई अदालत ने कहा, लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र निर्धारित करना इस्लाम के खिलाफ नहीं

लड़की दोनों की आयु निर्धारित की गई है, वह गैर इस्लामिक नहीं है।

Update: 2021-10-29 10:40 GMT

पाकिस्तान की सर्वोच्च इस्लामिक अदालत ने कहा कि निकाह के लिए लड़कियों की न्यूनतम आयु तय करना इस्लाम की शिक्षा के खिलाफ नहीं है। कोर्ट ने पाकिस्तान में बाल विवाह की रोकथाम के लिए एक अहम फैसला लिया है। मुख्य न्यायाधीश मुहम्मद नूर मेस्कंजाई के नेतृत्व वाली संघीय शरई अदालत (एफएससी) की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने विगत गुरुवार को बाल विवाह रोधी अधिनियम (सीएमआए), 1929 की कुछ धाराओं को चुनौती देने वाली याचिका पर यह दूरगामी फैसला सुनाया है। इस फैसले से उस विवाद के थमने के आसार हैं, जिसमें पाकिस्तान के कट्टरपंथी मुसलमानों का कहना है कि इस्लाम में शादी की उम्र को तय नहीं किया जा सकता है।

डान अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार शरई अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही क्रमबद्ध तरीके से यह घोषित किया कि किसी इस्लामिक देश की ओर से लड़कियों की शादी के लिए न्यूनतम आयु तय करना इस्लाम के खिलाफ नहीं है। जस्टिस डा.सैयद मुहम्मद अनवर ने अपनी टिप्पणी में कहा, 'याचिका को परखने के बाद उसे उपयुक्त नहीं पाया गया है। इसलिए इसे खारिज किया जा रहा है।' दस पेज के फैसले में शरई अदालत ने कहा कि कानून की जिन धाराओं में लड़के और लड़की दोनों की आयु निर्धारित की गई है, वह गैर इस्लामिक नहीं है।


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