भारत के खिलाफ पाकिस्तान की नई साजिश, जानें- ग्वादर पोर्ट को लेकर क्या सोचता है ड्रैगन
इसके लिए मिले ऋण को उतारने के लिए भी पाकिस्तान को दूसरों पर निर्भर रहना होगा।
चीन के एशिया में पांव फैलाने और विशेष रूप से भारत पर निगाह रखने और दबाव में लाने की नीयत किसी से छिपी नहीं है। अब यही बात विशेषज्ञ भी मान रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का इस्तेमाल अपने मिलिट्री बेस के लिए करना चाहता है। बता दें कि ग्वादर पोर्ट चीन के मल्टी बिलियन प्रोजेक्ट चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कारिडोर का ही एक हिस्सा है। इस बात में कोई शक नहीं है कि चीन की इस मंशा के बारे में जानकार पहले से ही आशंका जताते रहे हैं। जानकारों का मानना है कि चीन इस पोर्ट के जरिए व्यापार तो करना ही चाहता है, लेकिन साथ ही वो इसको मिलिट्री बेस बनाकर इस क्षेत्र में अपनी रणनीतिक बढ़त बनाना चाहता है।
यूरोपीयन फाउंडेशन फार साउथ एशियन स्टडीज के डायरेक्टर जुनैद कुरैशी और स्कूल आफ अफ्रीकन एंड आरियंटल स्टडीज के प्रोफेसर मैथ्यू मैककार्टने ने एक इंटरव्यू के दौरान चीन की वन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से जुड़े कई मुद्दों पर बात की। उनका कहना था कि यह अवश्यंभावी है कि चीन कुछ बिंदुओं पर ग्वादर में बंदरगाह का उपयोग सैन्य अड्डे के रूप में करना चाहता है, ताकि विदेशी संसाधन लगातार बिना रोक-टोक के मिल सकें। लेकिन चीन इस बात को भी अच्छी तरह से जानता है कि उसके यहां पर मिलिट्री बेस बनाने का बड़े पैमाने पर विरोध हो सकता है। इसलिए वो इसके लिए भी बेहद सावधान रहेगा।
गौरतलब है कि वर्ष 2015 में चीन ने 46 बिलियन डालर की लागत से इकोनॉमिक प्रोजेक्ट की घोषणा की थी। सीपैक का मकसद पाकिस्तान में अपनी भूमिका को बढ़ाना और सेंट्रल एशिया और दक्षिण एशिया में अमेरिका और भारत के प्रभाव को कम करना था। सीपैक के अतंर्गत ग्वादर पोर्ट के आने के बाद चीन का सीधेतौर पर कराची से लिंक हो गया। ग्वादर पोर्ट से सामान की आवाजाही दूसरे रास्ते से चीन में सामान पहुंचाने से कहीं अधिक सस्ती है। वहीं, इस तरह से कराची सीधीतौर पर चीन के शिंजियांग प्रांत से भी जुड़ गया। चीन की योजना इसके लिए ट्रेन और सड़क मार्ग तैयार करना है। इसके अलावा वो एक पाइपलाइन भी डालना चाहता है, जो चीन तक तेल की सप्लाई सीधे कर सकेगी।
ड्रैगन फ्राम द माउंटेन- द सीपैक फ्राम काशघर टू ग्वादर में मैककार्टने ने लंबे समय तक चलने वाले इस प्रोजेक्ट के पाकिस्तान पर प्रभाव का भी जिक्र किया है। उनका मानना है कि इससे पाकिस्तान को फायदा तो होगा, लेकिन ये किसी भी तरह से इकोनॉमिक गेम चेंजर के रूप में सामने नहीं आ सकेगा। न ही इसका असर पाकिस्तान की खराब होती अर्थव्यवस्था में सुधार को लेकर होगा। बढ़ती बेरोजगारी पर भी इससे कोई लगाम नहीं लगाई जा सकेगी। मैक का यहां तक कहना है कि इसके लिए मिले ऋण को उतारने के लिए भी पाकिस्तान को दूसरों पर निर्भर रहना होगा।