पाकिस्तान के CJP ने इमरान खान सरकार की कड़ी आलोचना की, कहा- विकास की राह में रोड़ा है कट्टरता

इस तरह की प्रवृत्ति अब विधि के जानकार वर्ग सहित विभिन्न संस्थानों में भी बढ़ रही है।

Update: 2022-01-15 11:39 GMT

पाकिस्तान के चीफ जस्टिस (सीजेपी) गुलजार अहमद ने गुरुवार को देश की इमरान खान सरकार की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से संवैधानिक व्यवस्था और शासन के प्रतिमान के रूप में इस्लाम को स्थापित किए जाने के प्रयासों के कारण याचिकाओं के रूप में अदालत पर छोटे-छोटे मुद्दों का बोझ बढ़ रहा है। धर्म के प्रति आस्था विकास की राह में रोड़ा बन गई है।

सीजेपी ने खेद प्रकट करते हुए कहा, 'नागरिकों के अधिकारों को लागू करने की क्षमता में इजाफा नहीं हो रहा है। इसके कारण देश के असहाय लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।' 'पाकिस्तान के संविधान का अध्ययन : अनुच्छेदवार चर्चा, मामले, कानून व इतिहास पर निष्पक्ष टिप्पणी' नामक पुस्तक के विमोचन समारोह में सीजेपी ने सरकार को जनता की चिंताओं का सही से समाधान नहीं करने के लिए फटकार लगाई।
उन्होंने कहा कि लोगों को सड़कों की सफाई, कूड़ा उठाने, पाकरें और खुले स्थानों के रख-रखाव, खेल के मैदानों की व्यवस्था व नियमानुसार निर्माण कार्य सुनिश्चित करने जैसे छोटे-छोटे मसलों को अदालत के समक्ष उठाना पड़ रहा है। ये सरकार के प्रमुख और बुनियादी कार्य हैं, लेकिन इन मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने सरकार से आसपास की स्थिति पर ध्यान देने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि संविधान सार्वजनिक जीवन के सभी पहलुओं पर लागू हो।
समारोह में पूर्व चीफ जस्टिस आसिफ सइद खोसा ने देश के सामने आने वाले पांच मुद्दों को सूचीबद्ध किया और कहा कि जबतक इनकी पहचान नहीं की जाती व समाधान नहीं खोजा जाता, तबतक देश असुरक्षा का सामना करता रहेगा। उन्होंने कहा, 'इस कठिन परिस्थिति का मुकबला प्रत्यक्ष रूप से करना होगा।'
द डान की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व चीफ जस्टिस खोसा ने कहा कि उन्हें (सरकार को) हमेशा के लिए यह तय करना होगा कि इस्लामी शासन में राज्य की क्या भूमिका थी और उन्हें संवैधानिक व्यवस्था व शासन के प्रतिमान में इस्लाम को कहां रखना था। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी बाधा विकास की थी, क्योंकि हमारी निष्ठा राज्य की तुलना में हमारे कबीले या जनजाति के प्रति थी। इस तरह की प्रवृत्ति अब विधि के जानकार वर्ग सहित विभिन्न संस्थानों में भी बढ़ रही है।
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