फलस्तीन का 'रखवाला' बना फिरता है पाकिस्तान, जिया-उल-हक को भेजा गया जॉर्डन
इस घटना के बाद यासिर अराफात ने यहां तक कह दिया था कि वह कभी पाकिस्तान के दौरे पर नहीं जाएंगे.
मध्यपूर्व में सात दशकों से इजरायल-फलस्तीन (Israel-Palestine) के बीच संघर्ष चल रहा है. इसमें फलस्तीनी अरबों को इजरायली सेना का सामना करना पड़ा है. लेकिन करीब 51 साल पहले एक ऐसा युद्ध हुआ, जिसमें फलस्तीन की आजादी के लिए मैदान में उतरने वाले मुल्क मुस्लिम देश जॉर्डन (Jordan) से युद्ध लड़ पड़े. लेकिन बहुत ही कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि इस युद्ध में एक पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. दरअसल, हम बात कर रहे हैं, 'ब्लैक सितंबर' युद्ध की, जो 1970 में 16 सितंबर से 27 सितंबर तक लड़ा गया था.
इस युद्ध के बाद लिखी गईं कई किताबों और रिपोर्ट्स में इस बात का जिक्र है कि इस युद्ध में पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक (Zia-ul-Haq) की ही भूमिका थी. वह जॉर्डन के शासक शाह हुसैन को युद्ध को लेकर जानकारी दे रहे थे. जिया-उल-हक की वजह से ही जॉर्डन को इस युद्ध में जीत मिली. ऐसे में सवाल उठता है कि जिया-उल-हक आखिर जॉर्डन में क्या कर रहे थे. दरअसल, 1967 में छह दिवसीय युद्ध को हारने के बाद जॉर्डन बेहाल हो चुका था. दूसरी ओर, फलस्तीनी फिदायीन को इजरायल पर हमला करने से धीरे-धीरे लोकप्रियता मिलने लगी थी.
जिया-उल-हक को भेजा गया जॉर्डन
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, मध्यपूर्व में हालात बिगड़ रहे थे और अब जॉर्डन के प्रमुख शाह हुसैन ने पाकिस्तानी मित्र ब्रिगेडियर जिया-उल-हक से मदद मांगी. दरअसल, सीरिया और जॉर्डन के बीच युद्ध छिड़ गया था. हक को पाकिस्तान और जॉर्डन की सेनाओं के बीच संबंध बढ़ाने और जॉर्डन में हो रही घटना की जानकारी पाकिस्तान को भेजने का काम सौंपा गया. सीरिया की सेना ने टैंकरों को लेकर जॉर्डन पर चढ़ाई कर दी. दूसरी ओर अमेरिका ने भी जॉर्डन की तरफ मदद का हाथ नहीं बढ़ाया. ऐसे में शाह हुसैन चिंतित हो गए.
जिया-उल-हक की सलाह से जॉर्डन ने जीता युद्ध
ऐसे विपरीत हालात को देखकर जॉर्डन पहुंचे जिया-उल-हक को शाह हुसैन ने कहा कि वह सीरियाई मोर्चे पर जाएं और हालात की जानकारी दें. इसके जवाब में जिया-उल-हक ने अधिकारियों से पूछा तो पता चला कि हालात बेहद खराब हैं. इसके बाद हक ने शाह हुसैन से कहा कि वह अगर युद्ध जीतना चाहते हैं तो वायुसेना को मैदान में उतार दें. हक की इस सलाह पर अमल किया गया और इसका नतीजा ये हुआ कि जॉर्डन को इस युद्ध में जीत हासिल हुई. बताया जाता है कि जिया-उल-हक सीधे तौर पर जॉर्डन की सेना का नेतृत्व कर रहे थे.
हालांकि, जिया-उल-हक की इस उपलब्धि के बाद भी पाकिस्तान में अधिकारी उनसे इस बात लेकर नाराज थे कि उन्होंने अपनी राजनियक जिम्मेदारियों और आदेशों का पालन नहीं किया. लेकिन शाह हुसैन ने पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो से हक की तारीफ की. इसके बाद हक को ब्रिगेडियर से मेजर जनरल का पद दिया गया. हालांकि, भुट्टो के इस फैसले को गलत माना जाता है, क्योंकि लोगों का मानना है कि अगर हुसैन ने तारीफ नहीं की होती तो शायद हक ब्रिगेडियर के रूप में ही अपना करियर खत्म कर लेते.
फलस्तीनी नरसंहार में शामिल थे जिया-उल-हक!
'ब्लैक सितंबर' युद्ध को लेकर कहा जाता है कि इसमें तीन से चार हजार फस्तीनी फिदायीन भी मारे गए. वहीं, सीरिया के मरने वाले सैनिकों की संख्या 600 थी. फलस्तीनी नेता यासिर अराफात ने बताया कि इस युद्ध में 20 से 25 हजार की संख्या वाले फिदायीन को बड़ा नुकसान हुआ. भले ही आज पाकिस्तान फलस्तीन के साथ खड़ा नजर आता है. लेकिन इसका दूसरा पहलू ये है कि शाह हुसैन ने 11 दिनों के इस युद्ध में जितने फलस्तीनियों को मौत के घाट उतारा, उतना इजरायल 20 साल में भी नहीं कर पाया.
इस युद्ध में जिया-उल-हक की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. इस बात का भी जिक्र है कि शाह हुसैन ने फलस्तीनियों को हराने के लिए खानाबदोश सेना भेजी. इस खानाबदोश सेना ने फलस्तीनियों का जमकर नरसंहार किया. जहां अमेरिका और इजरायल के दबाव में सीरिया की सेना पीछे हट गई, लेकिन फलस्तीनी फिदायीन वहीं फंस गए. इसके बाद जॉर्डन की सेना ने जमकर नरसंहार किया, जिसका नेतृत्व हक के हाथों में था. इस घटना के बाद यासिर अराफात ने यहां तक कह दिया था कि वह कभी पाकिस्तान के दौरे पर नहीं जाएंगे.