पाकिस्तान : भारत के लिए सिरदर्द साबित होगी अफगानिस्तान की नई सरकार

पिछले महीने 15 अगस्त को अफगानिस्तान में तालिबान के काबिज होने के बाद एक तबका प्रचारित करने में लगा था

Update: 2021-09-08 06:31 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पिछले महीने 15 अगस्त को अफगानिस्तान में तालिबान के काबिज होने के बाद एक तबका प्रचारित करने में लगा था कि तालिबान बदल गया है और उसका रवैया उदारवादी हो गया है। हालांकि, पिछले तीन सप्ताह में जमीन पर ऐसा कुछ दिखा नहीं। तालिबान की अंतरिम सरकार में जिन चेहरों को जगह मिली है, उससे साफ हो गया है कि भारत की मुश्किलें बढ़ने वाली है। दोहा में तालिबान के जिस ग्रुप ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वार्ता शुरू की थी और भारत से भी संपर्क साधा था, उसे सरकार में करीब-करीब किनारे कर दिया गया है।

नई कैबिनेट में 33 में से 20 कंधार केंद्रित तालिबान गुट और हक़्कानी नेटवर्क के कट्टरपंथी हैं। इन लोगों पर पाकिस्तान का असर जगजाहिर है। पाकिस्तानी अखबार 'इंटरनेशनल द न्यूज' के पत्रकार जियाउर रहमान ने ट्वीट कर बताया है कि तालिबान की अंतरिम सरकार में कम-से-कम छह ऐसे मंत्री हैं, जिन्होंने पाकिस्तान के जामिया हक़्कानिया सेमीनरी यानी अकोरा खट्टक से तालीम हासिल की है।
ISI के इशारे पर किनारे हुए बरादर
उम्मीद जताई जा रही थी कि तालिबान की राजनीतिक विंग के प्रमुख और दोहा में अमेरिका से वार्ता करने वाले अब्दुल गनी बरादर को अफगानिस्तान सरकार की कमान मिल सकती है, लेकिन अंतरिम सरकार का प्रधानमंत्री बनाया गया कट्टरपंथी और रहबरी-शूरा काउंसिल के प्रमुख मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को। मुल्ला अखुंद ने वर्ष 2001 में बामियान में बुद्ध की मूर्तियां तुड़वाई थीं। अफगानिस्तान में इससे पहले के तालिबान शासन में मुल्ला अखुंद उप-विदेश मंत्री थे और इनका नाम संयुक्त राष्ट्र की ब्लैकलिस्ट में था।
विश्‍लेषकों का मानना है कि अमेरिका के करीबी माने जाने वाले मुल्‍ला बरादर को पाकिस्‍तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख मोहम्‍मद फैज हामिद के इशारे पर किनारे लगाया गया है। कहा जा रहा है कि मुल्ला बरादर पर पाकिस्तान को भरोसा नहीं है। उसे लगता है कि मुल्‍ला बरादर अमेरिकी दबाव में काम कर सकते हैं। गौरतलब है कि तालिबान के नेतृत्व में सरकार बनाने पर जब सहमति नहीं बन पा रही थी तो फैज हामिद काबुल पहुंचे और उनके पहुंचने के चौथे दिन सरकार की घोषणा कर दी गई।
हक्कानी भारत के लिए सिरदर्द
भारत के लिए चिंता का सबब सरकार में कट्टरपंथी हक्कानी नेटवर्क का दबदबा होना भी है। हक्कानी नेटवर्क का मुखिया सिराजुद्दीन हक्कानी गृह मंत्री बन गया है। हक्कानी नेटवर्क आईएसआई का पसंदीदा है और भारत के खिलाफ कई आतंकी हमलों में इस संगठन का नाम आ चुका है। काबुल में वर्ष 2008 में भारतीय दूतावास पर हमले के लिए भी इसी संगठन को जिम्मेदार बताया गया था।
भारत के लिए चिंता की बात यह है कि बतौर गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी न सिर्फ अफ़गानिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालेगा बल्कि 34 प्रांतों में गवर्नरों की नियुक्तियां भी करेगा। ऐसे में प्रांतों के गर्वनरों की नियुक्तियां भी आईएसआई के इशारे पर होगी। सिराजुद्दीन हक्कानी ग्लोबल आतंकवादियों की लिस्ट में भी है और अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने उस पर 50 लाख अमेरिकी डॉलर का इनाम घोषित कर रखा है।
भारत के रक्षा विशेषज्ञ सुशांत सरीन ने ट्वीट कर कहा है कि यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई आतंकवाद के मसले पर कैसे मोस्ट वॉन्डेट सिराजुद्दीन हक़्कानी से सूचनाओं का आदान-प्रदान करेगी। इसी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने लिखा है, ''एफबीआई ने जिसके ऊपर 50 लाख डॉलर का इनाम रखा था, उसके साथ आतंकवाद रोकने पर कैसे काम करेगी? अमेरिका और ब्रिटेन के मुंह पर यह एक और तमाचा है।" उन्होंने कहा कि ये नियुक्तियां आईएसआई ने कराई हैं और यह बात बिल्कुल बकवास थी कि तालिबान बदल गया है।


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