कारगिल युद्ध kargil war के वक्त सेना प्रमुख रहे जनरल वेद प्रकाश मलिक ने कहा कि उस समय पाकिस्तान के सेना प्रमुख रहे परवेज मुशर्रफ भले ही एक अच्छे कमांडो थे लेकिन वह अच्छे रणनीतिकार नहीं थे। उन्होंने कहा कि कारगिल युद्ध का खामियाजा पाकिस्तान को international अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भुगतना पड़ा। युद्ध हारन के बाद पाकिस्तान ने जब एलओसी के पार से अपने सैनिकों को हटाने की बात कही तो यह स्पष्ट हो गया कि यही सही सीमा रेखा है।
इस प्रयास में पाकिस्तान के कई सैनिक मारे गए थे। इसके बाद Pervez Musharraf परवेज मुशर्ऱफ को गहरी चोट पहुंची थी। उसे लगा कि मिशन भी नाकाम रहा और कई सैनिकों की मौत भी हो गई। इसके बाद जब परवेज मुशर्रफ मेजर जनरल बने तो उन्होंने पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो से फिर से भारतीय इलाके में हमले की इजाजत मांगी। हालांकि भुट्टो ने इसे मूर्खतापूर्ण काम बताते हुए इनकार कर दिया। जनरल मलिक ने बताया कि 1998 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने उन्हें आर्मी चीफ बना दिया। आर्मी चीफ बनने के बाद परवेज मुशर्रफ ने सोचा कि यह समय है जब सियाचिन की पोस्ट को वापस लिया जा सकता है। फरवरी 1999 में पाकिस्तानी सेना ने भारत के इलाके में पट्रोलिंग शुरू कर दी। हालांकि हिमस्खलन और तूफानों की वजह से उसके कई सैनिक मारे गए। बाद में मुशर्रफ ने कहा कि वह भारत से बातचीत में शरीफ की मदद करेंगे।
पाकिस्तान Pakistan की सरकार तक को यह जानकारी नहीं थी कि परवेज मुशर्रफ क्या प्लान बना रहे हैं। जनरल मलिक ने बताया कि कि ठंडे इलाकों में सेना को पर्याप्त उपकरण और अन्य सामग्री नहीं मिल पाती थी। सरकार ने कहा था कि दो-तीन साल तक शांत रहें और उसके बाद सारी जरूरतें पूरी की जाएंगी। 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भी कई प्रतिबंध थोप दिए थे। युद्ध शुरू होने पर बाहर से मदद की उम्मीदें नहीं दिखाई दे रही थीं। जब हमसे पूछा गया कि हथियारों और उपकरणों की कमी के बीच क्या होगा, तो हमारा जवाब था, हमारे पास जो कुछ है हम उससे ही युद्ध लड़ेंगे। जनरल मलिक ने बताया कि पहले पाकिस्तान की तरफ से तोलोलिंग के रास्ते सैनिक भेजे गए। इसके बाद कश्मीर घाटी के इस इलाके की कमान 8वीं माउंटेन डिविजन को सौंप दी गई। उन्होंने बताया कि जून के मध्य तक हमारे सैनिक शहीद होते रहे लेकिन जब तोलोलिंग और तीन पिंपल रिज लाइन पर हमारा नियंत्रण हो गया तो साफ हो गया कि अब पाकिस्तान कुछ नहीं कर सकता। कारगिल के युद्ध ने बता दिया कि दो देश परमाणु संपन्न होने के बाद भी साधारण युद्ध लड़ सकते हैं।
जनरल मलिक ने कहा कि वे सीजफायर पर सहमत नहीं हो रहे थे लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री PRIME MINISTER अटल बिहारी वाजपेयी इसके लिए दबाव बना रहे थे। 11 और 12 जुलई को हुई बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे बहुत सारे सैनिक शहीद हुए हैं। हमारे अपने लोग हमसे सवाल पूछेंगे। अगर युद्ध खिंचता गया तो और भी सैनिक शहीद होंगे। उन्होंने कहा कि यह अंतरिम सरकार है और चुनाव भी कराने हैं। इसके बाद हम भी इस बात पर सहमत हो गए कि शर्त के मुताबिक पाकिस्तान पीछे हटेगा। उस समय तक हमने 90 फीसदी इलाकों पर फिर से कब्जा कर लिया था। मुशर्रफ नहीं थे अच्छे रणनीतिकार जनरल मलिक ने कहा कि हो सकता है कि परवेज मुशर्रफ अच्छे कमांडो रहे हों लेकिन वह एक खऱाब रणनीतिकार थे। कश्मीर में युद्ध लड़कर परवेज मुशर्रफ दुनिया का ध्यान इस ओर खींचना चाहते थे। लेकिन उस वक्त अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत का समर्थन कर रहा था। चीन खुलकर भारत का समर्थन नहीं कर रहा था लेकिन उसका भी मौन समर्थन प्राप्त था। इसके बाद शरीफ ने अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ एक समझौते पर साइन किए और कहा कि एलओसी पार से वह अपने सैनिकों को पीछे हटाएंगे। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस ओर सोचना शुरू कर दिया कि एलओसी एक सही सीमा है और पाकिस्तान को उधर जाने का कोई अधिकार नहीं है।