इमरान से गुप्त समझौते के बाद छोड़े गए प्रतिबंधित टीएलपी के एक हजार कार्यकर्ता, रोक हटाने के प्रस्ताव को मंजूरी

पुलिस व खुफिया विभाग के पास पर्याप्त जानकारी नहीं थी। इसीलिए ज्यादा नुकसान हुआ और सरकार की फजीहत हुई।

Update: 2021-11-05 18:12 GMT

पाकिस्तान में पंजाब के मुख्यमंत्री उस्मान बुजदार ने कट्टरपंथी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) पर से प्रतिबंध (रोक) हटाने के प्रस्ताव पर अंतरिम सहमति दे दी है। इमरान खान के नेतृत्व वाली संघीय सरकार और टीएलपी के बीच पिछले हफ्ते हुए गुप्त समझौते के बाद कट्टरपंथी संगठन से प्रतिबंध हटाने की प्रक्रिया शुरू हुई है। उसके करीब एक हजार कार्यकर्ता भी विभिन्न जेलों से रिहा किए जा चुके हैं।

केंद्रीय कैबिनेट के पास भेजा जाएगा प्रस्‍ताव
टीएलपी के हफ्ते भर के हिंसक आंदोलन के बाद सरकार उसके साथ समझौता करने के लिए बाध्य हुई। पता चला है कि पंजाब के गृह मंत्रालय ने टीएलपी पर से प्रतिबंध हटाने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री के पास भेजा था। प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री की स्वीकृति मिलने के बाद अब इसे संघीय कैबिनेट के पास इस्लामाबाद भेजा जाएगा। कैबिनेट इस प्रस्ताव पर राय लेने के लिए उसकी प्रति बाकी की प्रांतीय सरकारों के पास भेजेगी। अंत में संघीय कैबिनेट प्रस्ताव पर विचार करेगी।
18 मंत्रियों के समर्थन की होगी जरूरत
टीएलपी पर से प्रतिबंध हटाने के लिए प्रस्ताव को कम से कम 18 मंत्रियों के समर्थन की जरूरत होगी। पंजाब सरकार ने टीएलपी के 90 कार्यकर्ताओं को भी प्रतिबंध की सूची से बाहर कर दिया है। ये सभी हिंसक और आतंक फैलाने वाली गतिविधियों में शामिल रहे हैं।
पहले रिहा हो चुके हैं 800 से ज्यादा कार्यकर्ता
पाकिस्तान में चौथी अनुसूची में उन्हीं लोगों के नाम डाले जाते हैं जो आतंकी गतिविधियों में शामिल होते हैं या जिन पर उन गतिविधियों में शामिल होने का शक होता है। इस आशय का फैसला कानून मंत्री राजा बशारत की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिया गया। बैठक में टीएलपी के 100 अन्य कार्यकर्ताओं को भी जेलों से रिहा करने का फैसला किया गया। 800 से ज्यादा कार्यकर्ता पहले ही रिहा किए जा चुके हैं।
30 पुलिस अफसरों के तबादले
प्रतिबंधित संगठन टीएलपी के आंदोलन के दौरान भूमिका में खरे नहीं उतरने वाले 30 पुलिस अधिकारियों को पंजाब सरकार ने स्थानांतरित कर दिया है। पंजाब में करीब हफ्ते भर चले हिंसक टकराव में आठ पुलिसकर्मियों समेत 19 लोग मारे गए थे, जबकि 400 से ज्यादा घायल हुए थे। घायलों में ज्यादातर पुलिसकर्मी थे। सरकार ने माना है कि आंदोलन की तैयारी और उसमें शामिल लोगों के पास घातक हथियार होने की पुलिस व खुफिया विभाग के पास पर्याप्त जानकारी नहीं थी। इसीलिए ज्यादा नुकसान हुआ और सरकार की फजीहत हुई।


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