धर्मनिरपेक्ष बनाम इस्लामिक राज्य पर शुरू हुई बहस
बांग्लादेश में एक बार फिर धर्मनिरपेक्ष बनाम इस्लामिक राज्य पर बहस छिड़ गई है। दरअसल, इसकी शुरुआत उस वक्त हुई जब बांग्लादेश के सूचना मंत्री मुराद हसन ने 1972 के धर्मनिरपेक्ष संविधान की वापसी की योजना बनाई। सरकार की ओर से उन्होंने कहा कि हमें हिंदुओं की रक्षा के लिए 1972 के धर्मनिरपेक्ष संविधान की ओर लौटना होगा। खास बात यह है कि सरकार ने यह पहल ऐसे वक्त की है, जब दुर्गा पूजा के समय हिंदू विरोधी हिंसा में आठ लोगों की मौत हो गई। सैकड़ों हिंदुओं के घर और दर्जनों मंदिर में तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आई। उधर, कट्टरपंथी ताकतों ने अवामी लीग सरकार को धमकी देते हुए कहा है कि अगर 1972 के धर्मनिरपेक्ष संविधान को वापस लाने के लिए प्रस्तावित विधेयक को संसद में पेश किया तो और अधिक हिंसा होगी। गौरतलब है कि साल 1988 में सैन्य शासक एचएम इरशाद ने इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म घोषित किया था। अगर ऐसा हुआ तो आने वाले वक्त में 90 फीसद से अधिक मुस्लिम आबादी वाले बांग्लादेश का राजकीय धर्म इस्लाम नहीं होगा।
आजादी के चार साल धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश इस्लामिक राष्ट्र में तब्दील
1- प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि दरअसल, 1971 में जब बांग्लादेश एक नए राष्ट्र के रूप में वजूद में आया तो उसकी पहचान एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में बनी। इसका आधार बंगाली सांस्कृतिक और भाषाई राष्ट्रवाद रहा। इसने पाकिस्तान की रूढ़िवादी इस्लामी प्रथाओं को समाप्त किया। 1972 में लागू हुए बांग्लादेश के संविधान ने सभी धर्मों की समानता को सुनिश्चित किया गया। उन्होंने कहा कि हालांकि, पाकिस्तान से आजादी के चार साल बाद यहां एक खूनी तख्तापलट हुआ। देश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की उनके परिवार के साथ हत्या कर दी गई। उनकी केवल दो बेटियां वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनकी बहन शेख रेहाना बची रह गईं।
2- सैन्य शासन के दो दशक के दौरान और सत्ता में बीएनपी और जमात ए इस्लामी गठबंधन सरकार की अवधि के दौरान हिंदुओं पर भारी जुल्म हुआ। हजारों हिंदुओं ने भारत में शरण ली। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बांग्लादेश की 22 फीसद आबादी वाले हिंदू वर्ष 2010 की जनगणना में महज 10 फीसद से कम रह गए। हालांकि, अवामी लीग के शासन के दौरान पिछले 10 वर्षों में हिंदुओं की आबादी 12 फीसद हो गई। बांग्लादेश सांख्यिकी विभाग के अनुसार अवामी लीग के सत्ता में रहते हुए हिंदुओं का पलायन कम हो गया है। बांग्लादेश में 2023 में आम चुनाव होने हैं। इस घटना को इससे जोड़कर देखा जा रहा है।
3- प्रो. पंत का कहना है कि हिंदू विरोधी हिंसा को इस कड़ी से जोड़कर देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि शेख हसीना की अवामी लीग की हिंदू अल्पसंख्यक के मतों पर नजर है। इसलिए आवामी लीग का यह धर्मनिरपेक्ष संविधान का फैसला हिंदुओं को लुभा सकता है। यह अवामी लीग के प्रति हिंदुओं की धारणा को बदल सकता है। हाल में पूजा पंडाल में हुई हिंसा के चलते अवामी लीग की साख को धक्का लगा था, इस बहस से उसकी छवि में जरूर सुधार होगा।
बांग्लादेश के सूचना मंत्री ने किया ऐलान, धर्मनिरपेक्ष बनेगा देश
दरअसल, बांग्लादेश के सूचना मंत्री मुराद हसन ने घोषणा की है कि बांग्लादेश एक धर्मनिरपेक्ष देश है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान द्वारा बनाए गए 1972 के संविधान की देश में वापसी होगी। भारत के अथक प्रयास के बाद बांग्लादेश आजाद हुआ था। इसलिए भारत के प्रभाव में आकर मुजीबुर्रहमान ने एक धर्मनिरपेक्ष देश की कल्पना की थी। उन्होंने इस्लामिक राष्ट्र की परिकल्पना का त्याग किया था।
हसन ने आगे कहा कि हमारे शरीर में स्वतंत्रता सेनानियों का रक्त है, हमें किसी भी हाल में 1972 के संविधान की ओर वापस जाना होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि संविधान की वापसी के लिए मैं संसद में बोलूंगा। सूचना मंत्री ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इस्लाम हमारा राष्ट्रीय धर्म है। उन्होंने कहा कि जल्द ही हम 1972 के धर्मनिरपेक्ष संविधान को फिर अपनाएंगे। हम 1972 का संविधान वापस लाएंगे। इस बिल को हम पीएम शेख हसीना के नेतृत्व में संसद में अधिनियमित करवाएंगे।
कट्टरपंथियों ने किया जबरदस्त विरोध
उधर, कट्टरपंथियों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठनों जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत ए इस्लाम समूहों के मौलवियों ने धमकी दी कि अगर ऐसा कोई बिल पेश किया गया तो देश में एक खूनी अभियान शुरू हो जाएगा। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में इस्लाम राज्य धर्म था, यह राज्य धर्म है, यह राज्य धर्म रहेगा। इस देश को मुसलमानों ने आजाद किया और उनके धर्म का अपमान नहीं किया जा सकता। इस्लाम को राजकीय धर्म बनाए रखने के लिए हम हर बलिदान देने को तैयार हैं।