नई दिल्ली: यूक्रेन पर रूसी हमले के खौफ का असर अब यूरोप में दिखने लगा है. रूस से सटे फिनलैंड ने अब अपनी सीमा को और मजबूत करने का फैसला लिया है. फिनलैंड ऐसा रूस के संभावित हमले से बचने के लिए कर रहा है.
यूक्रेन जंग के बाद फिनलैंड NATO में शामिल होना चाहता है और रूस ने उसे अंजाम भुगतने की धमकी दी है. रूस के साथ फिनलैंड की 1300 किमी लंबी सीमा लगती है. अपनी सीमा को मजबूत करने के लिए फिनलैंड यहां पर फेंसिंग करने जा रहा है. इसके लिए फिनलैंड ने सीमा से जुड़े अपने कानून में बदलाव भी किया है. इससे उसे सीमा पर बैरियर लगाने की छूट मिल गई है.
दरअसल, फिनलैंड अमेरिका और यूरोपीय देशों के सैन्य संगठन NATO में शामिल होना चाहता है. फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मारिन ने पिछले महीने NATO में शामिल होने का ऐलान किया था. उसी समय रूस ने फिनलैंड को अंजाम भुगतने की धमकी दी थी. रूस के विदेश मंत्रालय ने उस समय कहा था कि अगर फिनलैंड NATO का सदस्य बनता है तो इससे रूस-फिनलैंड के रिश्तों के साथ-साथ उत्तरी यूरोप में स्थिरता और सुरक्षा को गंभीर नुकसान होगा.
NATO यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन को 1949 में शुरू किया गया था. उस समय सोवियत संघ (अब रूस) की विस्तारवादी नीति को रोकने के लिए अमेरिका और यूरोपीय देशों ने इस सैन्य गठबंधन को बनाया था. इसका मकसद था कि अगर कोई बाहरी देश किसी NATO देश पर हमला करता है, तो बाकी सदस्य देश इसे अपने ऊपर हुआ हमला मानेंगे और उसकी रक्षा के लिए सभी मदद करेंगे.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन NATO से चिढ़ते हैं. रूस को लगता है कि NATO अपना विस्तार कर रहा है और उसकी सीमा के पास सैनिक और ठिकाने बना रहा है. यूक्रेन भी NATO में शामिल होना चाहता था. पुतिन ने बार-बार धमकाया था कि यूक्रेन ऐसा न करे. लेकिन यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की NATO की सदस्यता की मांग कर रहे थे. आखिरकार पुतिन ने 24 फरवरी को यूक्रेन के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया. रूस और यूक्रेन के बीच जंग को 100 दिन से ज्यादा बीत गए हैं, लेकिन अब तक सिवाय तबाही के और और कुछ भी हासिल नहीं हुआ.
महज 55 लाख की आबादी वाला फिनलैंड हमेशा न्यूट्रल रहा है, लेकिन यूक्रेन जंग के बाद अब वो NATO में शामिल होना चाहता है. पिछले महीने रूस ने धमकाते हुए कहा था कि उसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए उभरते खतरों का मुकाबला करने के लिए सैन्य और तकनीकी जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर किया जा रहा है. रूस ने धमकी देते हुए कहा था कि इतिहास तय करेगा कि फिनलैंड को रूस के साथ सैन्य टकराव करने की जरूरत क्यों पड़ी?
अब चूंकि फिनलैंड ने NATO में शामिल होने की प्रक्रिया तेज कर दी है, ऐसे में उसे रूस के संभावित हमले का खतरा बना हुआ है. यही वजह है कि फिनलैंड ने अब अपनी सीमाओं को और मजबूत करने का फैसला लिया है. रूस के साथ फिनलैंड की 1300 किमी लंबी सीमा लगती है. फिनलैंड इस सीमा पर फेंसिंग करने जा रहा है.
फिनलैंड ने ऐसा इसलिए भी किया है क्योंकि उसे डर है कि रूस उसकी सीमा पर शरणार्थियों को भेजकर उस पर दबाव बना सकता है. पिछले साल यूरोपियन यूनियन ने बेलारूस पर भी ऐसा आरोप लगाया था. तब यूरोपियन यूनियन ने दावा किया था कि मिडिल ईस्ट, अफगानिस्तान और अफ्रीका से आए प्रवासियों को बेलारूस पोलैंड की सीमा पर भेज रहा है.
यूरोपियन यूनियन के मौजूदा नियमों के मुताबिक, प्रवासियों को किसी भी यूरोपीय यूनियन देश के किसी भी एंट्री प्वॉइंट पर शरण मांगने की इजाजत है. लेकिन फिनलैंड सरकार का संशोधित कानून कहता है कि अब सिर्फ चुनिंदा एंट्री प्वॉइंट पर ही प्रवासियों को शरण दी जाएगी.
संशोधित कानून के तहत फिनलैंड अपनी सीमा पर फेंसिंग कर सकता है, साथ ही पेट्रोलिंग के लिए अपनी ओर सड़क भी बना सकता है. फिनलैंड की आतंरिक मंत्री ने न्यूज एजेंसी को बताया कि अभी रूस से सटी सीमा पर फेंसिंग की जाएगी और बाद में पूर्वी सीमा के क्रिटिकल जोन में बैरियर लगाने का फैसला लिया जाएगा.
फिनलैंड ही नहीं, बल्कि स्वीडन भी NATO में शामिल होना चाहता है. दोनों देशों ने NATO में शामिल होने की प्रक्रिया तेज कर दी है. हालांकि, दोनों को NATO में शामिल होने के लिए सभी 30 सदस्य देशों की मंजूरी जरूरी है.
स्वीडन 200 साल से भी ज्यादा लंबे समय से किसी भी सैन्य संगठन में शामिल होने से बचता रहा है. वहीं, दूसरे विश्व युद्ध में सोवियत सेना से हारने के बाद से फिनलैंड ने तटस्थ रूख अपनाया हुआ था. इसके अलावा फिनलैंड पूरब और पश्चिम के बीच है, इसलिए वो NATO में शामिल होकर रूस से दुश्मनी नहीं लेना चाहता था और अमेरिका से भी अच्छे रिश्ते बनाए रखना चाहता था.
इससे पहले स्वीडन और फिनलैंड के NATO में शामिल होने की चर्चा कभी नहीं हुई, लेकिन 24 फरवरी के बाद से चर्चा बढ़ गई है. 24 फरवरी को ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के खिलाफ जंग का ऐलान किया था. फिनलैंड और स्वीडन, दोनों ही रूस के संभावित हमलों से बचने के लिए NATO में शामिल होना चाहते हैं.
जॉर्जिया और यूक्रेन, ये दो ऐसे देश हैं जो NATO में शामिल होना चाहते थे. 2008 में रूस ने जॉर्जिया पर हमला कर उसके दो टुकड़े कर दिए थे और अभी यूक्रेन से भी जंग लड़ रहा है.
जॉर्जिया 2008 में NATO में शामिल होना चाहता था. उस समय रूस ने उसे धमकाया था, लेकिन जब जॉर्जिया नहीं माना तो रूसी सेना जॉर्जिया में घुस गई. रूसी सेना ने महज 5 दिन की जंग में जॉर्जिया के साउथ ओसेशिया और अबकाजिया को अलग कर दिया और स्वतंत्र देश की मान्यता दे दी. आखिरकार जॉर्जिया को अपनी जिद छोड़नी पड़ी.
वहीं, पिछले साल से ही यूक्रेन भी NATO की सदस्यता मांग रहे थे. यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कई बार इसकी मांग की. जेलेंस्की इधर मांग करते रहे और दूसरी ओर रूसी सेना आगे बढ़ती गई. आखिरकार रूस ने यूक्रेन पर जंग का ऐलान कर दिया. दोनों के बीच 107 दिन से जंग चल रही है.