उत्तर कोरिया के तानाशाह ही नहीं बल्कि, दुनियाभर के ये टॉप नेता भी सार्वजनिक तौर पर बहा चुके आंसू
अपने खूंखार तौर-तरीकों के लिए जाने जाते उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग ने हाल में पूरी दुनिया को चौंका दिया.
अमेरिकी राष्टपति रोने के लिए ख्यात
अमेरिका का वाइट हाउस जनता के सामने रो पड़ने वाले लीडरों का गढ़ साबित हो चुका है. भूतपूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अपने एक इंटरव्यू में माना था कि वे यहां आने के बाद से काफी रो चुके हैं. उन्होंने कहा था कि वे इतने आंसू गिरा चुके हैं, जो कोई गिन नहीं सकता. यही हाल वाइट हाउस के बहुत से लीडरों का है. जैसे पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को ही लें तो वे साल 2012 में पब्लिक में रो पड़े थे. वे कनेक्टिकट में छोटे बच्चों के स्कूल में हुई गोलाबारी का जिक्र कर रहे थे, जिसमें 26 बच्चों की जान चली गई. इसके अलावा भी वे कई बार सबके सामने रोते देखे गए.
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भी साल 1994 में जनता के सामने रो पड़े थे. तब हेल्थ को लेकर एक प्रोग्राम हो रहा था. इसके वक्ता की पत्नी का हफ्तेभर पहले ही कैंसर से निधन हुआ था. कैंसर के बारे में जानकारी के बाद भी ये कपल डॉक्टर के पास नहीं जा सका क्योंकि उनके पास कोई हेल्थ इंश्योरेंस नहीं था.
पुतिन भी रेस में
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपनी फिजिकल फिटनेस के अलावा सख्ती के लिए भी जाने जाते हैं. वैसे भी रूस के लोग आमतौर पर अपनी भावनाएं जाहिर नहीं करते हैं. हालांकि पुतिन इस मामले में अलग माने जाते हैं. वे एक नहीं, बल्कि कई बार सार्वजनिक तौर पर आंसू बहा चुके हैं.
जब रो पड़े थे पीएम मोदी
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जनता के सामने रो पड़े हैं. पहली बार उन्हें प्रधानमंत्री चुना जाने के बाद रोता हुआ देखा गया. तब वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवानी ने पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा था कि उन्होंने पार्टी पर उपकार किया है. इसे सुनते ही पीएम मोदी विचलित दिखे और कुछ रुककर उन्होंने कहा कि अपने देश के काम कोई उपकार नहीं.
फेसबुक सीईओ मार्क जुकरबर्ग से बात करते हुए भी पीएम मोदी एक बार भावुक दिखे थे. असल में वे अपनी मां का जिक्र कर रहे थे कि उन्होंने कितनी परेशानियां झेलने के बाद भी चुनौतियों से हार नहीं मानी और मेहनत करती रहीं.
कितना अच्छा है नेताओं का रोना
वैसे नेताओं के रोने को मनोवैज्ञानिक खास अच्छा नहीं मानते. पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान की प्रोफेसर एलिशिया ग्रांडे कहती हैं कि हम सभी अपने नेता को आत्मविश्वास से भरा हुआ और मजबूत देखना चाहते हैं. ऐसे में जनता के सामने रो पड़ने पर उनकी छवि कमजोर इंसान की बन सकती है, जो उन्हीं के लिए बेहतर नहीं. इसी तरह से दफ्तरों में रोने को काफी बुरी नजर से देखा जाता रहा है. कोई शख्स काम के दौरान रो पड़े तो उसे सहकर्मियों से कमजोर माना जाता है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी सख्त छवि के लिए जाने जाते हैं
ट्रंप कभी नहीं रोते
मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी सख्त छवि के लिए जाने जाते हैं. साल 2015 में पीपल मैगजीन से इंटरव्यू के दौरान ट्रंप ने कहा था कि वे रोते हुए पुरुषों को कमजोर मानते हैं. साथ ही अपने बारे में ट्रंप ने कहा था कि आखिरी बार मैं तब रोया था, जब छोटा बच्चा था.
न रोने वाले पुरुषों को माना जाता था खराब
ट्रंप की तरह ही समाज का बड़ा तबका पुरुषों के रोने को खराब मानता है. दूसरी ओर ऐसे भी तथ्य मिले हैं, जो बताते हैं कि पुरुषों का न रोना उनकी क्रूरता की निशानी था. 18वीं सदी में ये बात प्रचलित थी कि अगर कोई पुरुष कभी नहीं रोया तो वो क्रूर होगा और उसके साथ रहना ठीक नहीं.
टॉम ने अपनी किताब Crying: The Natural and Cultural History of Tears में उस दौर का जिक्र किया है. 19वीं सदी में रोने वाले पुरुषों को कमजोर माना जाने लगा. और धीरे-धीरे ये बात इतनी बढ़ गई कि अब लड़कों को बचपन से ही न रोने की सीख दी जाने लगी है.