नए अध्ययन: शुक्र ग्रह के वायुमंडल में सल्फर के असामान्य व्यवहार के कारण जीवन की संभावना कम
विज्ञानियों का कहना है कि यह सिर्फ शुरुआत है। इस दिशा में लगातार शोध की जरूरत है।
मंगल समेत सौरमंडल के अन्य ग्रहों पर जीवन की संभावना तलाशने में (possibility of life on other planets) जुटे विज्ञानी लगातार शोध कर रहे हैं। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि शुक्र ग्रह के वायुमंडल में सल्फर के असामान्य व्यवहार के कारण जीवन की संभावना कम हो जाती है। समाचार एजेंसी एएनआइ के अनुसार, यूनिवर्सिटी आफ कैंब्रिज के शोधकर्ताओं ने बादलों में जीवन की परिकल्पना के परीक्षण के लिए जैव रसायन और वायुमंडलीय रसायन विज्ञान के संयोजन का उपयोग किया।
खगोलविदों ने दशकों से अनुमान लगाया और पाया है कि शुक्र के वातावरण की संरचना में जीवन के प्रमाण नहीं मिले हैं। जीवन की मौजूदगी के लिए कई रासायनिक तत्वों की जरूरत होती है। जीवन की सक्रियता में भोजन का उपभोग किया जाता है और अपशिष्ट को बाहर किया जाता है। लेकिन इसके बारे में कोई सुबूत नहीं मिले।
नेचर कम्यूनिकेशन जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में विज्ञानियों ने बताया कि भले ही शुक्र ग्रह पर जीवन के निशान नहीं मिले, लेकिन आकाशगंगा में समान ग्रहों के वायुमंडल का अध्ययन करने और हमारे सौरमंडल के बाहर जीवन का पता लगाने में यह अध्ययन उपयोगी हो सकता है।
डा. पाल रिमर ने बताया-
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के पृथ्वी विज्ञान विभाग से जुड़े और रिसर्च के सह लेखक डा. पाल रिमर बताते हैं कि हमने करीब दो वर्ष तक शुक्र ग्रह के वायुमंडल का लगातार अध्ययन किया। यहां के बादलों में दिखाई देने वाले सल्फर रसायन को समझने में टीम ने काफी समय व्यतीत किया। कई तथ्यों के आधार पर विज्ञानी इस पड़ताल में जुटे रहे कि आखिर यहां की की संभावना कितनी है। शुक्र के वातावरण में रासायनिक ऊर्जा के ज्ञात स्रोतों को देखते हुए शोधकर्ताओं ने रासायनिक प्रतिक्रिया का अध्ययन करने के लिए जैव रसायन और वायुमंडलीय रसायन विज्ञान का संयोजन का उपयोग किया।
सीन जार्डन ने कहा-
कैंब्रिज के इंस्टीट्यूट आफ एस्ट्रोनामी के सीन जार्डन ने बताया कि हमने शुक्र के वातावरण में उपलब्ध सल्फर आधारित भोजन को देखा। यह कुछ ऐसा नहीं है जिसे कोई खाना चाहेगा, लेकिन यह ग्रह पर उपलब्ध ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। जीवन के लिए भोजन जरूरी है। इस लिहाज से अध्ययन में यह देखने का प्रयास किया गया कि विशिष्ट रसायनों में क्या बदलाव हो रहा है।
इस अध्ययन माडल में देखा गया कि शुक्र के वातावरण में सल्फर डाइआक्साइड (एसओटू) की प्रचुरता है। हालांकि पृथ्वी के वायुमंडल में सल्फर डाइआक्साइड ज्वालामुखी उत्सर्जन से आता है। शुक्र ग्रह पर सल्फर डाइआक्साइड निचले बादलों में उच्च मात्रा में होता है। अधिक ऊंचाई पर यह कम हो जाता है।कैंब्रिज के पृथ्वी विज्ञान विभाग और खगोल विज्ञान संस्थान के सह लेखक डा. ओलिवर शार्टल कहते हैं कि अगर जीवन मौजूद है तो यह वायुमंडलीय रसायन शास्त्र को प्रभावित कर रहा है। शुक्र ग्रह पर सल्फर डाइआक्साइड की मात्रा कम होने का कारण जीवन ही तो नहीं है।
जार्डन द्वारा विकसित माडल में चयापचय प्रतिक्रियाओं की एक सूची शामिल है, जो जीवन रूपों को अपना भोजन बनाने और अपशिष्ट बनाने में मदद करती है। विज्ञानियों ने इसी माडल का उपयोग कर यह समझने का प्रयास किया कि चयापचय प्रतिक्रियाओं द्वारा एसओटू की कमी होती है या नहीं। यह पाया गया कि इस विधि से एसओटू के स्तर में कमी लाई जा सकती है। लेकिन इसके लिए अन्य अणुओं का बहुत बड़ी मात्रा में उत्पादन करना होगा।
जार्डन कहते हैं कि हम चाहते थे कि शुक्र ग्रह पर जीवन की संभावना तलाशने के लिए रासायनिक प्रतिक्रियाओं को समझने की कोशिश जारी है। इस दिशा में हबल दूरबीन का उत्तराधिकारी जेडब्लूएसटी जब इस साल के अंत तक अन्य ग्रह प्रणालियों की छवि को भेजना शुरू करेगा तब गहन अध्ययन को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। वर्तमान अध्ययन में ग्रह पर मौजूद सल्फर अणुओं को जेडब्लूएसटी से देखना संभव है। अत: सौरमंडल के बाहर अन्य ग्रहों के रासायनिक व्यवहार को समझने में विज्ञानियों को मदद मिल सकती है। शार्टल कहते हैं कि कुछ ग्रह जिंदा हैं, यह समझने के लिए जानना जरूरी है कि अन्य ग्रह क्यों मृत हैं। अगर जीवन किसी तरह शुक्र के बादलों में घुसने में कामयाब हो जाता है तो पूरी तरह से बदल जाएगा कि हम अन्य ग्रहों पर रासायनिक संकेतों की खोज कैसे करते हैं। विज्ञानियों का कहना है कि यह सिर्फ शुरुआत है। इस दिशा में लगातार शोध की जरूरत है।