नई स्टडी में हुआ खुलासा- नींद और जागने के बीच का 'समय' बढ़ा सकता है क्रिएटिविटी
नींद और जागने के बीच के समय पर ही उम्दा अंतर्दृष्टि आते हैं. एक नई स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है.
आप सबसे ज्यादा क्रिएटिव कब हो सकते हैं? या फिर आप सबसे बेहतर क्रिएटिव आइडिया कब ला सकते हैं? कोई कहता है उसे क्रिएटिव आइडिया पॉटी के समय आता है. किसी को चलते-फिरते, किसी को सोचते समय या फिर किसी को किसी से बात करते समय. लेकिन वैज्ञानिकों ने हाल ही में दावा किया है कि क्रिएटिविटी यानी रचनात्मकता नींद और जागने के बीच का जो समय होता है, उसमें सबसे बेहतर होती है.
नींद और जागने के बीच के समय पर ही उम्दा अंतर्दृष्टि (Insight) आते हैं. एक नई स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है. वैज्ञानिकों का दावा है कि नींद और जागने के बीच का समय रचनात्मकता के हिसाब से सबसे बेहतरीन समय होता है. हाल ही में साइंस एडवांसेस जर्नल में यह स्टडी प्रकाशित हुई है. जिसमें बताया गया है कि जो लोग हल्की नींद में होते हैं, वो जगते ही किसी बड़ी समस्या का समाधान आसानी से खोज सकते हैं.
कहा जाता है कि मशहूर वैज्ञानिक थॉमस एडिसन नींद और जागने के बीच के समय में आए आइडिया को पकड़ लेते थे. वो एक मेटल के प्लेट में दो स्टील बॉल्स को रखते थे, उसे हाथ में पकड़कर सोते थे. जैसे ही उन्हें नींद आती थी, मेटल प्लेट झुकने लगता था. बॉल्स जमीन पर गिर जाते थे. इससे उनकी नींद टूट जाती थी. बस ठीक इससे पहले ही उनके दिमाग में आइडिया आता था, जो रचनात्मक होता था.
पेरिस ब्रेन इंस्टीट्यूट के कॉग्निटिव न्यूरोसाइंटिस्ट डेल्फिन ऑडिटे और उनके साथियों को थॉमस एडिसन का इस तरह से सोने का आइडिया बेहतरीन लगा. उन्होंने सोचा क्यों न हम इस तकनीक के जरिए रचनात्मकता की फसल उगाएं. डेल्फिन और उनके साथियों ने 103 स्वस्थ लोगों को जुटाया. उन्हें गणित के कुछ ट्रिकी सवाल दिए. उन्हें कहा गया था कि संख्याओं की एक सीरीज को छोटे सिक्वेंस में बदलना है.
इस गणित की पहेली को सुलझाने के लिए दो नियमों का पालन करना है. पहला- सिक्वेंस का दूसरा नंबर हमेशा ही सही अंतिम संख्या होगी. दूसरा- जो इसे खोज लेगा वो इस पहेली को बेहद जल्द सुलझा लेगा. 60 बार कंप्यूटर पर इस पहेली को सुलझाने का प्रयास करने के बाद वॉलंटियर्स को 20 मिनट का ब्रेक दिया गया. इन लोगों को अंधेरे और शांत कमरे में आराम करने को कहा गया. साथ ही उनके हाथ में हल्के वजन की एक बोतल पकड़ा दी गई. दिमाग को मॉनिटर करने के लिए इलेक्ट्रोड लगा दिए गए थे.
इनमें से आधे वॉलंटियर तो जगते रहे. 24 सो गए और ये हल्की नींद की अवस्था में थे. इन्हें N1 नाम दिया गया. लेकिन 14 लोग गहरी नींद में चले गए. इन्हें N2 नाम दिया गया. आराम करने के बाद वॉलंटियर्स को वापस संख्या वाली समस्या को सुलझाने को कहा गया. इसके बाद जो परिणाम आए वो हैरान करने वाले थे. डेल्फिन ने कहा कि हमने दिमाग से निकलने वाली रचनात्मक तरंगों के ढेर सारे रिकॉर्ड मिले.
हल्की नींद में सोने वालों ने गणित की समस्या को सुलझाने में 2.7 गुना क्षमता हासिल की. वहीं, गहरी नींद से जागने वाले लोगों ने इस समस्या को सुलझाने के लिए 5.8 गुना क्षमता हासिल की. डेल्फिन ने कहा कि इतना अंतर देखकर हम हैरान रह गए. हमने देखा कि कैसे हल्की नींद की अल्फा तरंगें और गहरी नींद की डेल्टा तरंगें किसी समस्या के समाधान को पूरा करने में मदद करती हैं. इनका कॉकटेल ज्यादा प्रभावी होता है. यानी गहरी नींद की डेल्टा तरंगे जगते समय हल्की नींद की अल्फा तरंगों से मिल जाएं तो किसी भी समस्या का समाधान चुटकियों में हो सकता है.
फिलाडेल्फिया स्थित ड्रेक्सेल यूनिवर्सिटी के कॉग्निटिव न्यूरोसाइंटिस्ट जॉन कोउनियोस ने कहा कि इस स्टडी में यह नहीं बताया गया है कि N1 वाले वॉलंटियर्स कितनी देर हल्की नींद में थे. या N2 वाले कितनी देर गहरी नींद में थे. ऐसा भी हो सकता है कि दोनों समूहों के वॉलंटियर्स को सोने से पहले समस्या दिमाग में भटक रही हो. उसका समाधान सोचते-सोचते वो सो गए हों, और दिमाग सोते समय भी उसी पर काम कर रहा हो. इसलिए गहरी नींद वालों को ज्यादा बेहतर अंतर्दृष्टि (Insight) मिली, जबकि हल्की नींद वालों को कम स्तर की.
जॉन कोउनियोस ने कहा कि वैज्ञानिकों को अभी N1 के परिणाम और अंतर्दृष्टि (Insight) के बीच के संबंध को स्थापित करने के लिए और रिसर्च करने की जरूरत है. क्योंकि थॉमस एडिसन ने अपनी नींद और समस्याओं को सुलझाने की काबिलियत को किस तरह से जोड़ा था, यह बता पाना अभी मुश्किल है. यह एक तरह की उनकी साधना थी, जिसमें वो पारंगत हो चुके थे.