किडनी की बीमारियों के खतरे का पता लगाएगा नया एल्गोरिदम, रोकी जा सकेंगी परेशानियां
अन्य मूल के लोगों में हजारों ऐसे जीन पाए गए, जिनसे किडनी की बीमारी होती है।
वर्तमान में बड़ी संख्या में लोग किडनी की बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं। यदि इसके जोखिम का पता चल जाए तो पहले ही उचित कदम उठाकर इससे बचने के प्रयास किए जा सकते हैं। इस दिशा में शोधकर्ताओं को एक बड़ी कामयाबी मिली है। उन्होंने एक ऐसा एल्गोरिदम खोजा है, जिसकी मदद से ऐसे व्यक्तियों की पहचान की जा सकती है, जिन्हें किडनी की बीमारियों का जोखिम हो।
शोधकर्ताओं ने जो एल्गोरिदम खोजा है वह जीनोम के हजारों प्रकार का विश्लेषण कर सकता है और किसी व्यक्ति के क्रोनिक किडनी रोग के विकास के जोखिम का सटीक अनुमान लगा सकता है। यह शोध जर्नल नेचुरल मेडिसिन में प्रकाशित किया गया है। एमडी, मेडिसिन के एसोसिएट प्रोफेसर और कोलंबिया यूनिवर्सिटी वैगेलोस कालेज आफ फिजिशियन एंड सर्जन्स के नेफ्रोलाजी विभाग में विज्ञानी करजिस्तोफ किरिलुक के मुताबिक, इस पालीजेनिक पद्धति के जरिये हम किडनी की बीमारी की शुरुआत से दशकों पहले जोखिम वाले व्यक्तियों की पहचान कर सकते हैं और उच्च जोखिम वाले लोग उस जोखिम को कम करने के लिए सुरक्षात्मक जीवनशैली में बदलाव कर सकते हैं। इससे लोगों को समय रहते बीमारी से बचाव करने का मौका मिलेगा।
रोकी जा सकेंगी परेशानियां : किरिलुक के मुताबिक, किडनी की बीमारियों का पहले से ही पता लगने से किडनी फेल होने के कई मामलों को रोका जा सकता है। इसके साथ ही किडनी प्रत्यारोपण और डायलिसिस की आवश्यकता को भी कम किया जा सकता है। बड़ी समस्या यह है कि इस बीमारी का तब पता चलता है, जब किडनी को काफी नुकसान पहुंच चुका होता है। हालांकि, आनुवंशिक परीक्षण के जरिये आप किसी इंसान में किडनी की बीमारी के जोखिम का अनुमान लगा सकते हैं। पर ज्यादातर आबादी में हम एक या दो आनुवंशिक वैरिएंट को देखकर नहीं कह सकते हैं कि क्या जोखिम है।
इस तरह तैयार किया एल्गोरिदम: किरिलुक और उनकी टीम ने अपनी पद्धति का 15 अलग-अलग समूहों पर परीक्षण किया। इन समूह में यूरोपीय, अफ्रीकन, एशियाई और लैटिन मूल के लोग शामिल थे। इनमें एल्गोरिदम एपीओएल-1 जीन का विश्लेषण किया गया। यह जीन अफ्रीकन मूल के लोगों में किडनी की बीमारी का एक सामान्य कारण माना गया। वहीं, अन्य मूल के लोगों में हजारों ऐसे जीन पाए गए, जिनसे किडनी की बीमारी होती है।