नासा (NASA) के हबल स्पेस टेलीस्कोप (Hubble Space Telescope) ने हाल ह में शनि ग्रह (Saturn) पर बड़े मौसमी बदलाव देखे हैं. ये बदलाव उस समय हुए जब शनि का उत्तरी गोलार्द्ध की गर्मियों का मौसम पतझड़ में बदल रहा था. यहां उत्तरी गोलार्द्ध की ओर जाने पर भूमध्य रेखा और ध्रुव पर ये बदलाव दिखाई दिए हैं. ये बलदाव वैसे तो बहुत बड़़े नहीं हैं, लेकिन तेजी से होते हुए ये लंबा असर दिखा रहे हैं.
बदलाव का समय बहुत कम
हैरानी की बात यह है कि ये बदलाव बहुत ही कम समय में हो रहे हैं. मैरीलैंड के ग्रीनबेल्ट में नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर की ग्रह वैज्ञानिक एमी सिमोन का कहना है कि जो उनकी टीम ने खोजा है वह साल दर साल रंग, शायद बादलों की ऊंचाई और हवाओं में भी जरा सा बदलाव है.
अगले मौसमों तक जाता है असर
सिमोन ने बताया कि यह अजीब बात नहीं है कि ये बदलाव बहुत बड़े नहीं हैं. हम मौसमी समय में बहुत ज्यादा बदलाव की उम्मीद नहीं करते हैं. इसलिए यह अगले मौसम की ओर होने वाले बदलावों को दर्शाता है. हबल के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 से 2020 तक शनि की भूमध्यरेखा 5 से 10 प्रतिशत ज्यादा चमकीली हो रही है.
शनि में कहां हो रहे हैं ये बदालव
हबल ने यह भी पाया है कि भूमध्य रेखा के पास हवाओं में भी बदलाव हो रहे हैं. ये हवाएं 1699 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से बह रही हैं. यह रफ्तार साल 2004 से लेकर 2009 में नासा के कैसीनी यान द्वारा मापी गति से बहुत ज्यादा है. उस समय ये 1300 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलती थीं लेकिन 2019 और 2020 में वे कैसीनी द्वारा मापी गति पर वापस आ गईं.
और रंग में कैसे बदलाव
जहां तक भूमध्य रेखा आसपास रंग के बदलाव का सवाल है. शोधकर्ताओं का कहना है कि ये बदलाव शनि के छल्लों के कारण हो रहा है. नए छल्ले बनने से कुछ इलाके जो पहले से चमकीले थे, गहरे रंग के हो जाते हैं. वहीं ग्रह के उत्तरी ध्रुव पर गहरे रंगों के इलाके फैले हुए दिखने लगते हैं.
हवा के साथ ऊंचाई में भी बदलाव
शनि ग्रह की हवाओं में ऊंचाई के साथ भी बदलाव आते हैं. हवाओं की गति में बदलाव का मतलब 2018 में बादल कैसीनी द्वारा मापे गए बादलों से 60 किलोमीटर ज्यादा गहरे थे. पूरी प्रक्रिया को समझने के लिए और ज्यादा अवलोकनों की जरूरत है. शनि को सूर्य का एक चक्कर लगाने में पृथ्वी के 29 साल लगते हैं. इससे वहां का एक मौसम सात साल लंबा होता है
अक्ष पर झुकाव भी हो सकता है कारण
जहां पृथ्वी अपनी अक्ष पर झुकी हुई है. जिससे गोलार्द्धों पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी में अंतर आ जाता है और इस विविधता के कारण है मौसमी परिवर्तन होते हैं. शनि भी झुका हुआ है और इसमें भी इसी तरहसे बदलाव देखने को मिलते हैं. इसीलिए सूर्य की रोशनी में हो रहे बदलाव की वजह से शनि में भी बदलाव हो रहे होंगे.
तीन सालों के लिहाज से भी ये बड़े बदालव हैं. शोधकर्ताओंका कहना है कि इन सारे बदलावों का कारण वायुमंडल के भीतर हो रहे बदलाव हैं. लेकिन फिलहाल बड़ी समस्या यही है कि हमारे पर ऐसे उन्नत उपकरण नहीं है जो शनि या गुरु ग्रह के अंदर के बारे में जानकारी दे सकें. वहीं इतना तय है कि ये पथरीले ग्रह नहीं हैं.