NASA: अंटार्कटिका की झील तीन दिन में हो गई थी गायब , सैटेलाइट ने बताया कैसे

अंटार्कटिका की झील तीन दिन में हो गई थी गायब

Update: 2021-07-07 15:29 GMT

अंटार्कटिका (Antarctica) की बर्फ तेजी से पिघल रही है. जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का सबसे अधिक असर अगर पृथ्वी (Earth) पर कहीं हो रहा है तो वह यहीं हो रहा है. इससे हमारे वैज्ञानिक बहुत चिंतित हैं. उनकी चिंता दो साल पहले भी बढ़ गई थी. साल 2019 में अंटार्कटिका में एक झील हवा में गायब हो गई जिसेस वैज्ञानिक समुदायों में काफी चिंता फैल गई. शोधकर्ताओं के अनुसार यह झील उस साल के ठंड के मौसम में पूर्व अंटार्कटिका के अमेरी आइस शेल्फ से गायब हो गई थी. इस झील के इतनी जल्दी गायब होने की गुत्थी सैटेलाइट की तस्वीरों ने सुलझा ली है. (तस्वीर: NASA)

शुरू में वैज्ञानिकों को भी समझ नहीं आया आखिर यह अचानक कैसे हो गया आंकलन का दावा है कि करकीब 60 से 75 करोड़ क्यूबिक मीटर का पानी महासागरों (Oceans) में बह गया. एक बार झील के नीचे कीNASA, Antarctica's lake had disappeared in three days, satellite, scientists, researchers, oceans, study, University of Tasmania, lead author, ice rock, (Ice Self) से रास्ता मिला, पानी तीन दिन में ही पूरा बह गया है. यह बात सैटेलाइट (Satellite) से किए गए अवलोकनों से पता चली. उन्हें लग ही रहा था कि पानी को नीचे से बहने का कोई रास्ता मिला है.
इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और तस्मानिया यूनिवर्सिटी के ग्लेसियोलॉजिसट रोनाल्ड वार्नर ने बयान में कहा कि झील के पानी के भार से इसके नीचे की बर्फ की चट्टान (Ice Self) में दरार आ गई थी जिससे पानी नीचे के महासागर (Oceans) में बह गया. इस प्रक्रिया को हाइड्रोफ्रैक्चरिंग (Hydro Fracturing) कहा जाता है. यह परिघटना तब होती है जब बर्फ की चादर के ऊपर सघन और भारी पानी आ जाता है. और बर्फ की चादर में इसके दबाव से दारार आ जाती है और पानी के बहने के लिए रास्ता खुल जाता है.
मापन के लिए शोधकर्ताओं ने नासा (NASA) के ICESat-2 सैटेलाइट की अवलोकनों की मदद ली जिससे वे इस घटना का मूल कारण समझ सके. इन घटनाओं के बाद बर्फ की चादर (Ice Sheets) को बहुत नुकसान होता है और एक विशाल दरार पीछे छूट जाती है. जितना वैज्ञानिक समझ पा रहे थे, जलवायु परिवर्तन (Climate change) उससे कहीं ज्यादा तेजी से ऊपरी बर्फ की चादर को पिघला रहा है. इससे दुनिया के कई तटीय शहरों और इलकों के डूबने का खतरा बढ़ गया है.
वैज्ञानिकों को डर है जितना ज्यादा सतह का पानी पिघलेगा हाइड्रोफ्रैक्चर (Hydro fracture) की और घटनाएं देखने को मिलेंगी. यह उस तेजी से होगा जो अभी तक देखने को नहीं मिला है. इसके साथ ही ताजे पानी का महासागरों (Oceans) में बहाव तेज हो जाएगा. वैज्ञानिक पहले से ही केवल बर्फ पिघलने के कारण समुद्र तल (Rise in Sea Levels) के तेजी से बढ़ने की आशंका से परेशान हैं. हाइड्रोफ्रैक्चर से इसकी गति और ज्यादा तेज हो जाएगी. 
जाहिर है ऐसे में दुनिया भर में महासागरों (Oceans) का जलस्तर पिछले अनुमान के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ेगा. यह अध्ययन पिछले महीने जियोफिजिकल रिसर्च लैटर्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है. लेखकों का दावा है कि अंटार्कटिका (Antartica) की सतह पिघलने की दर साल 2050 में दोगुनी हो जाएगी. इससे बर्फ की चट्टानों को नुकसान पहुंचने की संभावना बहुत अधिक हो जाएगी. इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि हाइड्रोफ्रैक्चर अभी तक बहुत कम अध्ययन किया विषय है इससे इसकी नतीजे पता लगा पाना मुश्किल हो जाता है.
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