म्यांमार का सबसे बड़ा खूनी दिन: आंसू गैस और बंदूक से लोगों को चुप करा रही सेना, 38 लोगों की गई जान, हिंसा जारी
पहले भी पोप फ्रांसिस म्यांमार की सेना से राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की अपील कर चुके हैं।
म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली के लिए देश भर में आंदोलनों का दौर जारी है। पिछले महीने से सैन्य तख्तापलट के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों का बुधवार को सबसे हिंसक दिन रहा। शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे लोगों के खिलाफ सेना और पुलिस की हिंसक कार्रवाई में 38 और लोगों की मौत हो गई है। तख्तापलट के बाद से अब तक लगभग 60 लोगों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा सैकड़ों आंदोलनकारियों को जेलों में डाला गया है। प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि पुलिस और सेना के जवानों ने चेतावनी देने के बाद प्रदर्शनकारियों पर सीधी फायरिंग शुरू कर दी।
उधर, एक वकील ने कहा है कि म्यांमार की सेना ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया एजेंसी के एक पत्रकार समेत मीडिया से जुड़े पांच अन्य लोगों के खिलाफ कानून के उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। अगर आरोप साबित हो जाता है तो इन्हें तीन वर्ष तक की कैद हो सकती है।
लोगों की उम्मीदों को हिंसा से नहीं दबाया जा सकता
पोप फ्रांसिस ने बुधवार को कहा कि म्यांमार के लोगों की उम्मीदों को हिंसा से दबाया नहीं जा सकता। उन्होंने सेना से राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की भी अपील की। वर्ष 2017 में म्यांमार का दौरा करने वाले ईसाई धर्मगुरु ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी दखल देने की गुहार लगाई। उन्होंने कहा, 'म्यांमार के युवा बेहतर भविष्य के हकदार हैं। जहां पर नफरत और घृणा का कोई स्थान नहीं हो।' पहले भी पोप फ्रांसिस म्यांमार की सेना से राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की अपील कर चुके हैं।