बैरेट का कहना है कि अभी इस उल्कापिंड (Meteroite) के 43 आधिकारिक टुकड़े पाए गए हैं. वहीं करीब सौ टुकड़े अब भी जमीन में दबे हैं या फिर उनका रिकॉर्ड नहीं बन सका है. सबसे बड़ा टुकड़ा एक आदमी की मुठ्ठी जितना बड़ा है. ईसी 002 दिखने में हरे भूरे रंगा का लगता है लेकिन यह बहुत ही दुर्लभ वस्तु है. अभी तक पृथ्वी (Earth) पर 65 हजार उल्कापिंडों का दस्तावेज बना है. इनमें से केवल 4 हजार में ही अलग तरह के पदार्थ हैं जो ऐसे खगोलीय पिंड से आए है जो इतने बड़े है कि उनमें टेक्टोनिक गतिविधियां हो सकती है. इन चार हजार में से 95 प्रतिशत केवल दो ही क्षुद्रग्रह (asteroids) से आई हैं. लेकिन ईसी 002 पांच प्रतिशत में से हैं.
बैरेट का कहना है कि यह उल्कापिंड (Meteorites) उन 65 हजार उल्कापिंडों में से एक है. इस तरह की चट्टानें सौरमंडल (Solar System) के इतिहास के शुरुआती समय में बहुत आम हुआ करती थीं. ईसी 002 के बहुत कम होने की दो वजह हो सकती हैं. जिस प्रोटोप्लैनेट (Protoplanet) (ग्रहों के मूल रचनाखंड) ये निकला था उसी तरह के प्रोटोप्लैनेट से ही ये सौरमंडल के ग्रह बने थे. बाकी तरह के प्रोटोप्लैनेट सौरमंडल की खगोलीय घटनाओं में छोटे छोटे होते गए.
चंद्रमा (Moon) के बारे में कहा जाता है कि वहां पर बहुत से क्षुद्रग्रह (Asteroids) टकराए हैं लेकिन इसमें हाल ही में दूसरे तरह के प्रोटोप्लैनेट (Protoplanet) गिरे हैं. अध्ययन में कहा गया है कि किसी भी क्षुद्रग्रह में ईसी002 के जैसी विशेषताएं नहीं हैं. इससे यह पता चलता है कि सभी तरह के प्रोटो प्लैनेट गायब हो गए थे. वे या तो बड़े ग्रहों के निर्माण में खर्च हो गए या फिर खत्म हो गए. शोधकर्ताओं का अनुमान है कि ईसी 002 का मूल पिंड कम से कम 100 किलोमीटर बड़ा होना चाहिए
शोधकर्ताओं का कहना है कि ईसी 002 सौरमंडल (Solar System) के बनने के दस लाख साल के भीतर बना था. धातु के उल्कापिंड (Meteorite) प्रोटोप्लैनेट (Protoplanet) के केंद्रक से आते हैं, लेकिन ईसी 002 की उत्पत्ति ज्वलामुखी से हुई थी इसका साफ मतलब है कि यह किसी प्रोटोप्लैनेट क्रोड़ का नहीं बल्कि उसकी पर्पटी का हिस्सा था. विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी खास संरचना कई संयोगी घटनाओं का नतीजा थी.
प्रोटो प्लैनेट (Protoplanet) में लावा सतह पर जमा हो गया होगा जो क्रोड़ के एल्यूमीनियम से गर्म हो गया होगा. उल्कापिंड वाली पर्पटी थोड़ी ठोस हुई होगी क्योंकि इसमें तेजी से ठंडे होने के संकेत मिले हैं. लेकिन बाकी का पिंड उतनी तेजी से ठंडा नहीं हुआ होगा. इसके बाद ज्वालामुखी जैसे किसी बल से यह अंतरिक्ष (Space) में फेंक दिया गया होगा. यह पिंड 4.65 अरब साल पहले बना था. यह युगों तक यात्रा करता था और 2.6 करोड़ साल पहले इसका टुकड़ा अलग होकर यात्रा करता रहा जब तक कि पृथ्वी (Earth) से टकरा नहीं गया.