मंगल: लाल ग्रह की चट्टान से मिटे प्राचीन जीवन के निशान, वैज्ञानिकों को और बड़ी खोज की उम्मीद

अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA की नई स्टडी ने पाया है कि मंगल पर कभी मौजूद रहे जीवन के संकेत अब नष्ट हो चुके हैं

Update: 2021-07-18 14:35 GMT

कैलिफोर्निया : अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA की नई स्टडी ने पाया है कि मंगल पर कभी मौजूद रहे जीवन के संकेत अब नष्ट हो चुके हैं। गेल क्रेटर में लैंडिंग साइट के पास क्ले-मिट्टी की सेडिमेंटरी चट्टानों को स्टडी करने के दौरान यह खोज की गई। गेल क्रेटर को ऐसी झील माना जाता है जो 3.6 अरब साल पहले ऐस्टरॉइड के टकराने से बनी है। दिलचस्प बात यह है कि सबूतों के गायब होने से जीवन की नई संभावना की ओर इशारा भी मिला है।


क्ले-मिट्टी क्यों जरूरी?
क्ले जीवन की मौजूदगी के संकेत देती है क्योंकि आमतौर पर पानी के असर से चट्टानी खनिजों के टूटने और सड़ने पर यह बनती है। यानी इससे पानी की मौजूदगी पता चलती है जो जीवन के लिए अहम है। क्ले में सूक्ष्मजीवियों के अवशेष भी सुरक्षित रहते हैं। NASA के Curiosity रोवर ने ऐसे दो सैंपल्स को टेस्ट किया तो पाया कि एक में सिर्फ आधे खनिज रह गए थे। इसमें जंग जैसे दिखने वाले आयरन ऑक्साइड्स ज्यादा थे।

अनैलेसिस करने वाली टीम का मानना है कि इसके पीछे बेहद खारे पानी brine का हाथ हो सकता है। यह क्ले मिट्टी में जाकर उसे अस्थिर करता है और बहा देता है। हो सकता है इससे जीवन के निशान मिलना मुश्किल हो जाए।

चट्टान से मिट रहा इतिहास
NASA के Ames रिसर्च सेंटर के रिसर्चर और स्टडी के लीड लेखक टॉम ब्रिस्टॉ के मुताबिक पहले माना जाता था कि गेल क्रेटर के तले में जमा क्ले-मिट्टी के खनिज वैसे ही स्थिर रहते हैं और इससे, जब अरबों साल पहले वे बने थे, उस वक्त के बारे में हमें पता चलता है लेकिन brine इन्हें तोड़ रहा है और चट्टान के इतिहास को खत्म कर रहा है।

Aurora वह रोशनी होती है जो धरती के मैग्नेटोस्फीयर में सोलर विंड के हाई-एनर्जी पार्टकिल्स के टकराने से पैदा होती है। ये पार्टिकल हवा में मौजूद पार्टिकल्स में एनर्जी ट्रांसफर करते हैं और इससे रोशनी पैदा होती है। धरती पर चुंबकीय क्षेत्र मौजूद है जिसकी वजह से ये Aurora ध्रुवों पर बेहद साफ दिखते हैं लेकिन मंगल पर ऐसा नहीं है। इस पर कभी मैग्नेटिक फील्ड हुआ करती थी और उसके कुछ हिस्से अभी बाकी हैं और यहां ऐसे Aurora बनते हैं जिन्हें डिस्क्रीट ऑरोरा कहते हैं। इन्हें पहले कभी विजिबल लाइट में नहीं देखा गया।

मिशन टीम में शामिल यूनिवर्सिटी ऑफ कोलराडो बोल्डर के जस्टिन डेगन का कहना है कि सभी मंगल पर विजिबल लाइट के लिए सेंसिटिव उपकरण दिन की कंडीशन्स में तस्वीरें लेने के लिए डिजाइन किए गए हैं। Hope ने तस्वीरें अल्ट्रावॉइलट रोशनी में ली हैं जिसकी वेवलेंथ दूसरे स्पेसक्राफ्ट से ली गईं तस्वीरों से कम होती है। इसकी वजह से Aurora ज्यादा डीटेल में दिखे हैं। डेगन का कहना है कि इनकी मदद से यह समझा जाएगा कि कैसे मंगल का वायुमंडल बदला है।

Hope का लक्ष्य है मंगल का पहला ग्लोबल वेदर मैप भी तैयार करना। यह मिशन इसलिए खास है क्योंकि इससे पहले के रोवर मंगल के चक्कर ऐसे काटते थे कि वह दिन के सीमित वक्त में ही उसके हर हिस्से को मॉनिटर कर पाते थे। इससे अलग होप का ऑर्बिट अंडाकार है जिसे पूरा करने में इस रोवर को 55 घंटे लगेंगे। इसकी वजह से यह मंगल के हिस्सों पर दिन और रात में ज्यादा समय के लिए नजर रख सकेगा। मंगल के एक साल में यह हर हिस्से पर पूरे दिन नजर रखेगा।

...पर वैज्ञानिकों को उम्मीद
Curiosity में लगे केमिस्ट्री और मिनरलॉजी इंस्ट्रुमेंट CheMin ने मंगल की चट्टानों को ड्रिल किया और फिर सैंपल्स की जांच की। दिलचस्प बात यह है कि प्राचीन जीवन के सबूत मिटाने से बनीं नई परिस्थितियों से नया जीवन पनपा हो, इसकी भी संभावना है। स्टडी के सह-लेखक और कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी के जियॉलजी प्रफेसर जॉन ग्रोजिंगर के मुताबिक जीवन की खोज और संभावना के लिए ये जगहें बेहतरीन हैं।
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