गरीबी की लहर से लड़ने के लिए अमेरिका के कई शहरों ने निकाला एक नया तरीका

केंद्र सरकार को तैयार कर पाएंगे और नेशनल बेसिक इनकम जैसी योजनाएं शुरू हो सकेंगी. वीके/एए (रॉयटर्स).

Update: 2021-12-22 08:48 GMT

कोरोना वायरस महामारी के कारण आई गरीबी की लहर से लड़ने के लिए अमेरिका के कई शहरों ने एक नया तरीका निकाला है. यहां लोगों को कैश दिया जा रहा है. बिना किसी शर्त.अमेरिका में कम से कम 16 शहर ऐसे हैं जहां कम आय वाले लोगों को बिना किसी शर्त नकद पैसा दिया जा रहा है. यह कदम तेजी से अपनाया जा रहा है और आने वाले महीनों में कम से कम 31 और शहर ऐसा ही करने की योजना बना रहे हैं. अब तक अमेरिका में गरीबों की मदद के लिए वैकल्पिक तरीके अपनाए जाते रहे हैं जैसे कि खाने-पीने का सामान देना, किराया देने में मदद करना या काम खोजने में मदद करना. लेकिन अब इस तरह की मदद के बारे में अधिकारियों का रवैया बदल रहा है. इस योजना के समर्थकों का कहना है कि पैसा कैसे खर्च करना है, यह बात अधिकारी नहीं लोग ज्यादा अच्छी तरह जानते हैं इसलिए उन्हें चीजें नहीं धन दिया जाना बेहतर है. कैश बड़ी मदद है माइकल टब्स 2019 में कैलिफॉर्निया के स्टॉक्टन शहर के मेयर थे जब उन्होंने देश का पहला 'बेसिक इनकम' प्रोग्राम शुरू किया था. वह बताते हैं, "यह उस विचार को पूरी तरह खारिज करता है कि हमें लोगों को गरीबी से निकालने के लिए बड़े भाई की भूमिका निभाने की जरूरत है.

" 37 साल के जोनाथन पेड्रो को ऐसी ही योजना का लाभ हुआ है. मैसाचुसेट्स के केंब्रिज में रहने वाले पेड्रो को शहर प्रशासन से 500 डॉलर मासिक मिलते हैं. इस धन से उन्होंने अपना कर्ज काफी हद तक चुका दिया है और अपने 11 साल के बेटे के लिए हॉकी का साज-सामान भी खरीदा है. पेड्रो कहते हैं, "मैं अपनी स्थिति सुधारने की बहुत बहुत कोशिश कर रहा हूं और यह धन उसमें बड़ा मददगार साबित हुआ है." नई नहीं है योजना वैसे अमेरिका में पहले भी गरीबों को धन देने की योजनाएं चली हैं. खासकर 20वीं सदी में ऐसी योजनाएं खासी लोकप्रिय थीं. लेकिन इन योजनाओं की यह कहते हुए तीखी आलोचना होती थी कि बिना काम किए पैसा मिलेगा तो लोग काम नहीं करना चाहेंगे. इस आलोचना का असर यह हुआ कि योजनाएं धीरे धीरे खत्म होती चली गईं. डेमोक्रैटिक राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने इन योजनाओं में काफी कटौती की और 1996 में यह शर्त जोड़ दी कि जो काम करेगा उसे ही मदद मिलेगी.
अब स्थिति यह है कि एक चौथाई से भी कम गरीब परिवार मदद पाने योग्य हो पाते हैं. पिछले कुछ सालों में 'यूनिवर्सल बेसिक इनकम' के लिए समर्थन बढ़ा है. खासतौर पर ऑटोमेशन के चलते कम होतीं नौकरियों ने इस विचार को मजबूती दी है कि लोगों को एक निश्चित धन मिलना चाहिए, फिर चाहे वे काम करें या नहीं. इस विचार के साथ यह अवधारणा भी जुड़ी है कि काम करने के मौके सभी के लिए बराबर नहीं हैं क्योंकि नस्ली, जातीय या अन्य भेदभाव लोगों को बराबर नही रहने देते. 2020 में राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रैटिक उम्मीदवारी के दावेदार रहे ऐंड्रयू यंग ने इस योजना को अपना मुख्य मुद्दा बनाया था. कोरोना वायरस के कारण काम-धंधे बंद हो जाने के बाद अमेरिका के अलावा भी बहुत से देशों की सरकारों ने अपने नागरिकों की मदद के लिए अलग-अलग तरीके से धन जारी किया. अमेरिका में तो तीन बार पैकेज जारी किए गए जिनकी कुल लगात 800 अरब डॉलर से ज्यादा थी. छोटे स्तर पर है काम मिनेसोटा के शहर सेंट पॉल के मेयर मेल्विन कार्टर कहते हैं, "60 साल से हम गरीबी खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं. और आज भी, लोगों को कैश देने की बात नई सी लगती है.
शायद यही समस्या है." कार्टर अपने शहर में पिछले साल से यह योजना चला रहे हैं. वैसे, अभी जो योजनाएं चल रही हैं, उन सभी का आकार बहुत छोटा है. हर शहर में कुछ सौ परिवार ही इस योजना का लाभ पा रहे हैं. जैसे कि सेंट पॉल में नए जन्म बच्चों वाले परिवारों को ही मदद दी जा रही है. अब तक दो सौ परिवारों को मदद मिली है जिनमें आधे से ज्यादा अश्वेत महिलाएं हैं. नॉर्थ कैरोलाइना के डरहैम में जेल से छूटने वाले लोगों को कैश मदद दी जा रही है जबकि मिसीसिपी के जैकसन में सरकारी घरों में रहने वालीं अश्वेत मांओं को कैश दिया जा रहा है. लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि इन कोशिशों के सकारात्मक नतीजे केंद्र सरकार को तैयार कर पाएंगे और नेशनल बेसिक इनकम जैसी योजनाएं शुरू हो सकेंगी. वीके/एए (रॉयटर्स).


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