PM इमरान खान के पास पहुंची नामों की सूची, चुनेंगे एक नाम
सेठी ने यह भी कहा कि नागरिक और सैन्य नेतृत्व के बीच इस प्रकार का गतिरोध अक्सर दोनों पक्षों को ऐसे मोड़ पर ले जाता है जहां से लौटना मुश्किल होता है। यह प्रकरण नागरिक-सैन्य संबंधों को प्रभावित कर सकता है।
इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के नए प्रमुख को लेकर पीएम इमरान खान और पाक सेना के बीच टकराव की खबरें हैं। इमरान खान ने सेना से कहा है कि वे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के प्रमुख फैज हमीद को बदलने का निर्णय लेने वाली प्रक्रिया का हिस्सा नहीं थे। इमरान खान अभी हमीद को ही प्रमुख बनाए रखना चाहते हैं। इस बीच नए ISI चीफ को चुनने की भी प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसके लिए पीएम इमरान के पास नामों की सूची भी पहुंची है। बताया गया कि नियुक्ति के मुद्दे पर अपने सेनाध्यक्ष (सीओएएस) जनरल बाजवा के साथ मतभेद के बीच पीएम इमरान को देश के सबसे शक्तिशाली पदों में से एक के लिए उम्मीदवारों के नामों का लेखा जोखा मिला है।
डान की रिपोर्ट के मुताबिक, आईएसआई के डीजी की नियुक्ति को लेकर असैन्य और सैन्य नेतृत्व के बीच गतिरोध के बाद ऐसा हुआ है। सोमवार को, पाकिस्तान सेना की मीडिया विंग, इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस ने लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अहमद अंजुम को डीजी आईएसआई के रूप में नियुक्ति के संबंध में एक अधिसूचना जारी की, लेकिन इस तथ्य से उलट कि उनकी नियुक्ति पीएम खान के कार्यालय द्वारा जारी नहीं की गई थी।
पाकिस्तान के कानून के तहत आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति सीओएएस के परामर्श से प्रधानमंत्री के निर्णय के अंतर्गत आती है। डान की रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से आने वाले आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई है।
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार नजम सेठी ने एक टीवी शो में कहा कि नए आइएसआइ प्रमुख की घोषणा के बाद पीएम हाउस से अब कोई पुष्टि नहीं हुई है। घोषणा में यह देरी असामान्य है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अब यह बात सामने आई है कि इस फैसले से पीएम और सेना के बीच तनाव पैदा हो गया है। सेठी ने कहा कि पेशावर कोर कमांडर के रूप में लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद की पोस्टिंग और नए डीजी आइएसआइ के रूप में जनरल नदीम अंजुम की नियुक्ति की घोषणा पीएम हाउस से होनी चाहिए थी, क्योंकि सामान्यत: पीएम ही आइएसआइ प्रमुख की नियुक्ति करते हैं।
सेठी ने कहा कि नए नाम की घोषणा रावलपिंडी से हुई न कि इस्लामाबाद से। सेठी ने यह भी कहा कि नागरिक और सैन्य नेतृत्व के बीच इस प्रकार का गतिरोध अक्सर दोनों पक्षों को ऐसे मोड़ पर ले जाता है जहां से लौटना मुश्किल होता है। यह प्रकरण नागरिक-सैन्य संबंधों को प्रभावित कर सकता है।