बीजिंग (आईएएनएस)। भारत के विवेक मणि त्रिपाठी चीन में 12 साल से रह रहे हैं। वे भारत के बिहार प्रदेश के हैं। वर्तमान में वे चीन के क्वांगतुंग यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज में हिन्दी भाषा पढ़ाते हैं। उनका चीनी नाम चीह्वेई है, जिसका मतलब होता है बुद्धि की किरण।
चीन के बारे में विवेक की सबसे पहली छाप उनके पिता द्वारा चीन के थांग राजवंश के एक प्रतिष्ठित भिक्षु ह्वेन त्सांग के बारे में बताई गई कहानी से आई थी।
उन्होंने कहा कि बचपन में मेरे पिता जी अकसर मुझे ह्वेन त्सांग की कहानी सुनाते थे। इसलिये इसके बारे में मेरा बड़ा शौक पैदा हुआ।
बिहार में एक नालन्दा मंदिर है। पुरातन समय में महान भिक्षु ह्वेन त्सांग यहां आये और इस मंदिर में उन्होंने संस्कृत भाषा और भारतीय संस्कृति की जानकारी हासिल की। बाद में ह्वेन त्सांग ने 600 से अधिक धर्मग्रन्थों को चीन में वापस लाये, और चीनी भाषा में उनका अनुवाद किया।
विवेक के दादा जी और पिता जी दोनों शिक्षक हैं। अब वे भी एक शिक्षक बने। चीन में प्राप्त अनुभव से वे “शिक्षक” की पहचान को गहन रूप से समझते हैं। वे अकसर अपने छात्रों को बताते हैं कि भारत और चीन दोनों पुरातन सभ्यता वाले देश हैं, और पड़ोसी देश भी हैं।
इतिहास, संस्कृति और राष्ट्र समेत विभिन्न पक्षों में दोनों की बहुत समानताएं होती हैं। निरंतर आदान-प्रदान और आपसी समझ से दोनों देशों के संबंध ज्यादा से ज्यादा घनिष्ठ हो सकते हैं।
विवेक ने भारत के कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा की शिक्षा व विकास, भारत-चीन संबंधों से जुड़े भाषण दिये। जिसका लक्ष्य भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है।
उन्हें यह भी उम्मीद है कि अधिक भारतीय युवा चीन का दौरा करेंगे और चीन के बारे में और अधिक सीखेंगे।