यूक्रेन बॉर्डर पर रूस के लाखों जवान और टैंक तैनात, हो रहा ये फायदा

Update: 2022-02-15 03:58 GMT

नई दिल्ली: यूरोप (Europe) में पिछले कुछ दिनों से जंग का माहौल बना हुआ है. यूक्रेन (Ukraine) की सीमा पर रूस (Russia) ने बड़े पैमाने पर सैनिकों की तैनाती कर दी है. इसके जवाब में अमेरिका (US) की अगुवाई वाले सैन्य संगठन नाटो (NATO) ने भी पूर्वी यूरोप में गतिविधियां तेज कर दी है. अमेरिका और उसके सहयोगी पश्चिमी देशों का मानना है कि रूस कभी भी यूक्रेन पर हमला कर सकता है. जंग के इस खतरे का असल खामियाजा इकोनॉमी (Economy) को भुगतना पड़ रहा है, जिसकी हालत कोविड-19 महामारी ने पहले ही खराब कर दी है.

Cebr की एक रिपोर्ट की मानें तो जंग का माहौल सबसे ज्यादा तकलीफ यूक्रेन और यूरोप को दे रहा है. रूस की अर्थव्यवस्था (Russian Economy) भले ही सुस्त पड़ी हो, लेकिन आर्थिक मोर्चे पर वह अब भी यूक्रेन से बहुत आगे है. Trading Economics के अनुसार, इस साल यूक्रेन की जीडीपी (Ukraine GDP) का साइज 184.92 बिलियन डॉलर हो जाने का अनुमान है. दूसरी ओर रूस की अर्थव्यवस्था (Russia GDP) इस साल 1,700 बिलियन डॉलर की हो सकती है. World Bank के आंकड़ों की मानें तो 2013 में रूस की जीडीपी का साइज करीब 2,300 बिलियन डॉलर का था. इसके बाद रूस की जीडीपी कम भले हुई, लेकिन यह अब भी यूक्रेन की तुलना में करीब 10 गुना बड़ा है.
सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च (Cebr) की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2014 से यूक्रेन का रूस के साथ विवाद शुरू हुआ है और तब से यूक्रेन को 280 बिलियन डॉलर का नुकसान हो चुका है. इसका मतलब हुआ कि रूस के साथ विवाद के चलते महज 6 साल में यूक्रेन की जीडीपी का साइज आधे से भी कम रह गया है. 2014 में क्रीमिया (Crimea) को लेकर हुई जंग ने अकेले यूक्रेन को 58 बिलियन डॉलर का नुकसान दिया. क्रीमिया फिलहाल रूस के नियंत्रण में है.
सैन्य विवाद से यूक्रेन को हर मोर्चे पर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. 2014 से 2020 के दौरान यूक्रेन को इन्वेस्टमेंट के मोर्चे पर 72 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है. इससे पता चलता है कि विवाद के चलते यूक्रेन में इन्वेस्टर्स का भरोसा कम हो रहा है. निर्यात के मामले में देखें तो इन 6 सालों में यूक्रेन को 162 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा है. क्रीमिया और डोनबस (Donbas) विवाद में यूक्रेन की काफी संपत्तियां भी बर्बाद हुई हैं और Cebr के आकलन के अनुसार यहां यूक्रेन को 117 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है.
दूसरी ओर रूस की बात करें तो उसके लिए यह विवाद फायदे का सौदा साबित हो रहा है. रूस की अर्थव्यवस्था के लिए तेल (Crude Oil) सबसे जरूरी चीज है. रूस के बजट में करीब 40 फीसदी रेवेन्यू का सोर्स अकेले तेल है. रूस के निर्यात की बात करें तो इसमें करीब 60 फीसदी हिस्सा तेल का है. जब-जब कच्चा तेल सस्ता होता है, रूस की इकोनॉमी का साइज तेजी से गिरता है. वहीं कच्चा तेल के महंगा होते ही रूस की इकोनॉमी उड़ान भरने लगती है. 2014 में कच्चा तेल का भाव टूटने पर महज 6 महीने में रूस की करेंसी रूबल की वैल्यू (डॉलर की तुलना में) 59 फीसदी गिर गई थी.
कच्चा तेल का भाव अभी यूक्रेन संकट के चलते अपने सर्वकालिक उच्च स्तर के आस-पास है. ब्रेंट क्रूड (Brent Crude) सितंबर 2014 में 96.78 डॉलर प्रति बैरल के रिकॉर्ड हाई पर था. अभी यह 96.48 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच चुका है. एनालिस्ट इस बात की आशंका जाहिर कर रहे हैं कि यूक्रेन और रूस के जारी विवाद के चलते कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल के लेवल को पार कर सकता है. अगर ऐसा होता है तो यह रूस की इकोनॉमी के लिए बूस्टर डोज का काम करेगा. वहीं रूस के तेल पर निर्भर यूरोपीय देशों की हालत खराब होगी.
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